मठ-मंदिर समाज के शक्ति केन्द्र, इन्हें तोड़ने का अर्थ है, हिन्दू धर्म को नष्ट करना- संदीप सिंह

मठ-मंदिर समाज के शक्ति केन्द्र, इन्हें तोड़ने का अर्थ है, हिन्दू धर्म को नष्ट करना- संदीप सिंह

मठ-मंदिर समाज के शक्ति केन्द्र, इन्हें तोड़ने का अर्थ है, हिन्दू धर्म को नष्ट करना- संदीप सिंहमठ-मंदिर समाज के शक्ति केन्द्र, इन्हें तोड़ने का अर्थ है, हिन्दू धर्म को नष्ट करना- संदीप सिंह

प्रथम सत्र – मठ मंदिर व भारतीय समाज

मठ मंदिरों के कारण बची हैं चावल की कुछ प्रजातियाँ

काशी शब्दोत्सव के प्रथम चर्चा सत्र में मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक संदीप सिंह ने कहा कि मठ मंदिर के कारण देश में चावल की कुछ प्रजातियां बची हैं। मठों और मंदिरों ने भारत को एकता के सूत्र में जोड़ा है। मंदिर को टेम्पल कहना उचित नहीं है, यह पश्चिमी कुप्रभाव के कारण हुआ है। मठ-मंदिर का देश की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत के मठ-मंदिरों में प्रतिदिन करोड़ों लोग भोजन करके जीवन यापन करते हैं। मठ-मंदिर समाज के शक्ति केन्द्र हैं। मठ-मंदिर को तोड़ने का अर्थ है, हिन्दू धर्म को नष्ट करना।

प्रथम सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि काशी में जो बात उठती है, उसे पूरे देश में सुना जाता है। पहले मठ शासक को परामर्श देते थे। शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों पीठ भारत वर्ष की रक्षा कर रहे हैं। मठों द्वारा परामर्श एवं धार्मिक निर्णय लिये जाते है। जहां देवता की स्थापना होती है वह मंदिर है, जहां छात्र सन्यासी रहते हैं, वह मठ कहलाता है।

विश्वनाथ मंदिर के अध्यक्ष प्रो. नागेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि काशी में पूरा भारत प्रतिबिंबित है। सभी संप्रदायों में मतभेद दिखाई पड़ते थे। परन्तु आज समन्वय का युग है। सत्र का संचालन संम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी ने किया।

द्वितीय सत्र – आध्यात्मिकता, धर्म और विज्ञान

शास्त्र के विचारों को विज्ञान की दृष्टि से परिभाषित करना आवश्यक

द्वितीय सत्र में विशिष्ट अतिथि मिथिलेशनन्दिनी शरण ने कहा कि हमारा अधिकांश जीवन स्वभाव नहीं, प्रभाव के अनुशासन में जिया जाता है। शास्त्र की अवधारणा विज्ञान की दृष्टि से परिभाषित करना चाहिए। धर्म का तात्पर्य प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर लेकर जाना है।

मुख्य अतिथि प्रो. संजीव शर्मा ने कहा कि हम जिस अमृत काल में हैं, वहां हम संप्रेषक हो सकते हैं। दुनिया में जब लोगों को प्रकृति को देखने की निरर्थकता सिद्ध हो गयी, तब लोग भारत की दृष्टि से देखने को बाध्य हो जाते हैं। इस कड़ी में प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि शब्दोत्सव विचारों का उत्सव है। वस्तु जगत को बदलने का साधन नहीं है।

तृतीय सत्र – तकनीक की सीमा क्या हो

वेदान्त बताता है कि द्रव्य के अन्दर ऊर्जा कहाँ से आयी

तकनीकी सत्र के मुख्य अतिथि एवं वक्ता सुशांत श्रीवास्तव ने कहा कि काशी ज्ञान विज्ञान की धरती है। यह वेदान्त दर्शन का केन्द्र है। वेदान्त दर्शन बताता है कि द्रव्य के अन्दर ऊर्जा कहां से आयी। आनन्द का प्रारम्भ अन्दर से होता है. जहां विज्ञान तकनीक झुक जाती है। वहां प्रकाश नहीं अन्धकार होता है।

सत्र के अध्यक्ष नीरजा माधव ने कहा कि तकनीक विकास की अतियों से बचे। भारत में तकनीक सदियों से रही है। तकनीक को हमेशा मानवता की सीमा में रखकर प्रयोग करता रहा है। मोबाइल का सकारात्मक प्रभाव कोरोना काल में देखा गया। जहां पूरी दुनिया में तकनीकी का युद्ध चल रहा है। हम उस युद्ध के बारे में तकनीक के कारण जान पा रहे हैं। परन्तु तकनीक मानव अहित में न हो, यह भी ध्यान रखना है।

चतुर्थ सत्र – रामायण और महाभारत के शाश्वत मूल्य तथा जीवन-दर्शन

हमें अपने जीवन को कृष्ण के दर्शन से जोड़ना चाहिए

रामायण और महाभारत के शाश्वत मूल्य तथा जीवन-दर्शन सत्र की विशिष्ट अतिथि प्रो. नीरा मिश्रा ने कहा कि सनातन पुरातन नहीं है। हमें बदलते मूल्यों के बीच सनातन क्या है, इसे पहचानने की आवश्यकता है। उन्होंने करुणा की कथा के रूप में सनातन संस्कृति और रामायण, महाभारत के ग्रंथों की परंपरा की बात कही। उन्होंने कहा कि नीति शास्त्र पढ़ने से नैतिकता नहीं आती। रामायण और महाभारत में नीतिवान और गुणवान की बात कही गई है, जिसको केन्द्रित करके सत्य और धर्म का आख्यान करना चाहिए। धर्म सत्य है, कर्म है, सत्ता है और कर्ता भी है। उन्होंने कहा कि जिन गुणों के लिए राम की पहचान होती है, वे प्रजा हित और प्रजा रंजन हैं। उन्होंने कहा कि रामायण कोई काल्पनिक कथा नहीं है। वेदों और उपनिषदों में जिन मूल्यों को व्याख्यायित किया गया है, राम की कथा उससे इतर है।

आज जो भ्रम पैदा हुआ है, उसे दूर करने के लिए हमें अपने भ्रम को जानने का प्रयास करना चाहिए। हमें श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन से जोड़कर महाभारत को जीना चाहिए। हमें अपने इतिहास को जानना चाहिये, नहीं तो लोग भ्रम फैलाएंगे। हमें अध्यात्म के साथ जो ज्ञान है, उसका सही मायने में प्रयोग करना है। गीता कर्म प्रधान ग्रंथ है। हमें गीता से कर्मयोग का ज्ञान सीखना चाहिए। सत्र का संचालन डॉ. हेमन्त कुमार ने किया।

पंचम सत्र –

सनातन हिन्दू समाज को बांटने के षड्यंत्रों को रोकना हमारा कर्तव्य

पंचम सत्र प्रख्यात गीतकार एवं वक्ता मनोज मुन्तशिर के उद्बोधन एवं कविता पाठ के साथ संपन्न हुआ। उन्होंने कार्यक्रम के उपरान्त पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वर्तमान समय में हिन्दू समाज को बांटने का प्रयास हो रहा है। इसे रोकना हमारा कर्तव्य है। गोस्वामी तुलसीदास ने किसी भी समाज या वर्ग के विरुद्ध कुछ भी नहीं लिखा है। यह केवल राजनीति का भाग है। गोस्वामी तुलसीदास पर आरोप लगाने वाले शिक्षा की दृष्टि से शून्य हैं। नगरों का नाम बदलना उचित है क्योंकि पहले आतताइयों ने बदले थे। अब उसे ठीक करना उचित है।

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