मनुष्य के सीखने की कोई सीमा नहीं होती – डॉ. मोहन भागवत
उज्जैन, 23 फरवरी। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित विद्या भारती मालवा के प्रशिक्षण, शैक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत के करकमलों तथा श्री श्री 108 श्री महंत श्यामगिरी जी महाराज (राधे-राधे बाबा) तथा पवन सिंघानिया (मैनेजिंग डायरेक्टर, मोयरा सरिया, इन्दौर) के विशेष आतिथ्य एवं डी. रामकृष्ण राव (अखिल भारतीय अध्यक्ष, विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।
सरसंघचालक ने कहा कि ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ का निर्माण सभी के लिए आनन्ददायी है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज व्यक्ति किराये का मकान लेकर भी बच्चों को शिक्षा देता है। विद्या भारती वर्तमान शिक्षा के साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान देती है। पशु-पक्षी भी अपना जीवन चलाने के लिए ज्ञान प्राप्त करते हैं, किन्तु उनके सीखने की सीमा होती है। मनुष्य के सीखने की कोई सीमा नहीं होती। मनुष्य देवता भी बन सकता है। रावण भौतिक व आध्यात्मिक क्षेत्र की विद्याओं का ज्ञाता था, किन्तु उसके समाज विरोधी होने के कारण आज भी भगवान श्रीराम की ही पूजा होती है। सोने की लंका से अयोध्या अच्छी मानी जाती है।
उन्होंने कहा कि पश्चिम के लोग मानते हैं कि मनुष्य सृष्टि का उपभोगकर्ता है। हमारा मानना है कि अपनी गुणवत्ता का उपयोग सब के लिये हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मनुष्य को सबके लिये उपयोगी बनाना चाहती है, उपद्रवी नहीं। विद्या भारती का लक्ष्य स्पष्ट है, अपने गुणों के साथ सब का विकास करना। आचार्यों को प्रशिक्षित करने से ही शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। सीखने वाले के स्तर पर जाकर ही सीखने की प्रेरणा दी जा सकती है। छोटे बच्चों के रोने पर प्रोफेसर द्वारा फिजिक्स की बड़ी बातें करने से वह चुप नहीं हो सकता, उसे तो रोचक तरीके से कुछ बताने पर ही चुप कराया जा सकता है।
शिक्षक के व्यवहार पर कहा कि अलग-अलग स्तर पर शिक्षा देते हुए संतुलित व्यवहार प्रयोग सिद्ध प्रत्यक्ष आचरण दिखना आवश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार हमें आधुनिक तकनीक का उचित उपयोग करते हुए, साथ ही अपनी दिशा और लक्ष्य को न भूलते हुए अगली पीढ़ियों का निर्माण करना है। एक बंगाली कविता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा ‘‘विधि तोहे छोडबे ना‘‘ अर्थात यदि तुम दिशा और सही तरीका नहीं छोड़ोगे तो तुम्हारा भाग्य तुम्हें कभी नहीं छलेगा।
डॉ. मोहन भागवत ने सम्राट विक्रमादित्य भवन को केवल विद्या भारती ही नहीं, अपितु सामाजिक विकास का केन्द्र बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर समाज को अपनी छत्रछाया बनाए रखना होगी।
विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष डी. रामकृष्णराव ने कहा कि इस भवन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सहायता मिलेगी। एनईपी में सीखने की पद्धति एवं बच्चों का सामर्थ्य बढ़ाने पर जोर दिया गया है। शिक्षकों का सशक्तिकरण एवं शिक्षा में पूर्व छात्रों की भूमिका तय करने से हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी। यह भवन सामाजिक विकास के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध होगा।
इस अवसर पर तीन पुस्तकों कनकश्रृंगा (स्मारिका), बालगीतांक (देवपुत्र), अमर क्रांतिवीर उमाजी राजे (श्री अभय मराठै) का विमोचन भी सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत एवं मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।
सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा के प्रदेश सचिव प्रकाशचंद्र धनगर ने बताया कि चिंतामण गणेश मंदिर मार्ग पर बने ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन में विद्यार्थियों का भविष्य संवारने, आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कार देने के उद्देश्य से विद्या भारती द्वारा प्रशिक्षण, शैक्षिक अनुसंधान केन्द्र प्रांतीय कार्यालय में सम्पूर्णं प्रांत से प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार स्कूली शिक्षक, प्रशिक्षण प्राप्त करने आएंगे। प्रत्येक शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं कार्यकर्ताओं को 15 दिवसीय आवसीय प्रशिक्षण दिया जाएगा।
भवन में चार संस्थान सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा, ग्राम भारती शिक्षा समिति मालवा, वनवासी सेवा न्यास और माता शबरी अनुसूचित जनजाति सेवा न्यास की प्रांतीय गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।
सम्राट विक्रमादित्य भवन में प्रशिक्षण केन्द्र का भी निर्माण किया गया है, जिसमें 200 कार्यकर्ताओं के आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था के साथ स्मार्ट क्लासरूम, टीएलएम एवं लेंग्वेज, गणित व कम्प्यूटर की प्रयोगशालाएं, अनुसंधान की व्यवस्था है। 400 व्यक्ति की क्षमता का सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम भी बनाया गया है।
यह भवन निजी क्षेत्र की पहली ग्रीन बिल्डिंग है। चार मंजिला भवन ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट पर आधारित है। इसका निर्माण इस तरह से किया गया है कि दिन में बिजली जलाने और एसी चलाने की आवश्यकता नहीं होगी। बिजली के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग होगा। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के साथ पानी के दोबारा उपयोग की व्यवस्था भी की गई है, जिससे भवन के आसपास हरियाली रहेगी।
समिति मीटिंग एवं कार्यकर्ता मीटिंग रूम, आईसीटी एवं मीडिया रूम, ओपन एयर थियेटर, मंदिर एवं पिरामिड आकार का ध्यान केंद्र रखा गया है। इसके निर्माण में महेश्वर किले की शैली का उपयोग किया गया है। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन हरिशंकर मेहता ने किया। आभार संस्था के अध्यक्ष डॉ. कमलकिशोर चितलांग्या ने व्यक्त किया। कार्यक्रम वन्दे मातरम् के साथ संपन्न हुआ।