मातृभाषा सिन्धी हमारी आत्मा है- निरंजन शर्मा

मातृभाषा सिन्धी हमारी आत्मा है- निरंजन शर्मा

मातृभाषा सिन्धी हमारी आत्मा है- निरंजन शर्मामातृभाषा सिन्धी हमारी आत्मा है- निरंजन शर्मा

– सिन्धी भाषा मान्यता दिवस पर संगोष्ठी का आयोजन

अजमेर, 10 अप्रैल। स्वतंत्रता मिलने पर अखण्ड भारत से सिन्ध प्रान्त अलग हो गया और समाज बन्धु देश के अलग अलग हिस्सों में बस गये। सिन्ध प्रान्त भारत में नहीं होने पर भी मातृभाषा सिन्धी हमारी आत्मा है। भारत सरकार ने भी प्राथमिक अध्ययन मातृभाषा में करवाने के लिये नई शिक्षा नीति लागू की है। ये विचार भारतीय सिन्धु सभा की ओर से सिन्धी भाषा मान्यता दिवस पर स्वामी सर्वानन्द विद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता निरंजन शर्मा ने व्यक्त किये।

शर्मा ने कहा कि हमारी पहचान पांच भ – भाषा, भूषा, भवन, भोजन व भ्रमण से होती है, जो हमें भाषा के साथ सभ्यता से जोड़ते हैं। 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ, परन्तु सिन्ध प्रदेश से अलग हुए समाज की मातृभाषा सिन्धी को नहीं जोड़ा गया। मान्यता के लिए लगातार संघर्ष करते हुए 10 अप्रैल 1967 को संविधान की आठवीं अनुसूची में जुड़वाने में सफलता प्राप्त हुई।

प्रदेश भाषा एवं साहित्य मंत्री डॉ. प्रदीप गेहाणी ने कहा कि सरकार भाषा का विस्तार व बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत है। राज्यों में भाषा के लिये अकादमियों का गठन व केन्द्र स्तर पर राष्ट्रीय सिन्धी भाषा विकास परिषद का गठन किया गया है। भारतीय सिन्धु सभा की ओर से बाल संस्कार शिविरों के अतिरिक्त अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों के माध्यम से बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने व ज्ञान बढ़ाने की सेवा समाज से मिलकर हो रही है।

केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के सहायक कमाण्डेंट मनोज भम्भाणी ने कहा कि वे आत्मरक्षा के लिये बाल संस्कार शिविरों में प्रशिक्षण देने के लिये तत्पर हैं।

सुधार सभा के संरक्षक ईश्वर ठाराणी ने कहा, यह गर्व की बात है कि भारत सरकार ने राज्य नहीं होने पर भी सिन्धी भाषा की दो लिपियों को मान्यता दी है और हम विद्यालयों में बच्चों को निरंतर भाषा व संस्कृति से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। सिन्ध व हिन्द के साहित्यकार व शिक्षाविद् भाषा के माध्यम से आपसी जुड़ाव की बात कर रहे हैं। सिन्ध एक दिन अवश्य भारत में मिलेगा।

अप्रवासी भारतीय एच.आर. आसवाणी ने कहा, प्रसन्नता है कि हमारी युवा पीढ़ी सिन्धी भाषा का ज्ञान रखती है और सोशल मीडिया के माध्यम से सिन्धु संस्कृति से भी जुड़ी हुई है।
कार्यक्रम का शुभारंभ आराध्यदेव झूलेलाल, भारत माता व सिन्ध के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर किया गया। आभार अध्यक्ष नरेन्द्र बसराणी ने प्रकट किया। समापन सामूहिक राष्ट्रगान से हुआ।

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