संचार क्रांति से व्यापक हुई मातृभाषा हिन्दी
मातृभाषा दिवस: 21 फरवरी
बीरेन्द्र पाण्डेय
सूचना प्रौद्योगिकी के इस प्रभावशाली दौर में मातृभाषा के वर्चस्व में बढ़ोतरी हुई है। डाटा क्रांति के कारण जो बदलाव हुए हैं, उनका साक्षी बनने का सुनहरा अवसर इस पीढ़ी को मिला है। यह युग तकनीक एवं तेज बदलाव का है, एक तकनीक अपना असर दिखाती नहीं कि दूसरी उसे अपदस्थ कर देती है। किसी भी देश के लिए सबसे बड़ी सम्पदा उसकी शिक्षित, सभ्य, देशप्रेमी बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था के साथ ‘स्व’ का बोध कराती उसकी मातृभाषा होती है। भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है, इसलिए युवाओं की सोच, विचार, आचार व्यवहार और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
मानव सभ्यता सदियों में विकसित हुई है। हर पीढ़ी की अपनी सोच और विचार होते हैं जो समाज के विकास की दिशा में योगदान देते हैं। हालांकि एक तरफ मानव मन और बुद्धि समय गुज़रने के साथ काफी विकसित हो गई है, वहीं लोग भी काफी बेसब्र हो गए हैं। आज का युवा प्रतिभा और क्षमता वाला है। आज का युवा सीखने और नई चीजों को तलाशने के लिए उत्सुक है। इन सभी बातों को पूरा करने के लिए एक संवाद माध्यम की आवश्यकता होती है। अभिव्यक्ति का माध्यम उसकी मातृभाषा होने से व्यक्ति सहज संवाद स्थापित कर लेता है।
आज प्रौद्योगिकी संचार के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हर न्यूज़ चैनल अनेकों संवाद माध्यमों के द्वारा हर व्यक्ति को लक्ष्य किये हुए है। समाज के बदलते स्वरूप के साथ मातृभाषा का तादात्म्य उसे समृद्ध कर रहा है। ट्विटर के स्पेस और क्लब हाउस ने एक बड़ा मंच हिन्दी भाषा को उपलब्ध कराया है। यह हिन्दी भाषा की समृद्ध होती पहचान का प्रभाव है कि युवा होती पीढ़ी हिन्दी में संवाद के लिए स्वयं को सहज पाती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’ तब हिन्दी भाषा को स्थापित करने का वह समय था, पर आज हिन्दी वैश्विक पटल पर अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है।
भाषा से लोक-संस्कृति का गहरा जुड़ाव होता है। भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रति विश्व भर में झुकाव है। विदेशी सैलानी यहाँ जीवन के गूढ़ दर्शन को समझने आते हैं। वे भी हिन्दी के प्रचार- प्रसार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारतीय संस्कृति और लोक को उसकी भाषा के बिना नहीं समझा जा सकता है।
आज ऐसे कंप्यूटर की-बोर्ड, इनस्क्रिप्ट, फोनेटिक और टाइप राइटर उपलब्ध हैं, जिन पर आसानी से हिन्दी में कार्य किया जा सकता है। अब एमएस ऑफिस वर्ड, एक्सल, पावरप्वाइंट आदि सभी में हिन्दी भाषा में कार्य आसानी से किया जा सकता है। बदलती परिस्थितियों में भाषाई कंप्यूटरीकरण, मशीनी अनुवाद, हिन्दी स्पीच से हिन्दी टेक्स्ट आधारित परिवर्तन आज आसानी से होने लगा है। और इसका बड़ा श्रेय बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जाता है।
हिन्दी की वैश्विक स्वीकार्यता का ही परिणाम है कि गूगल ने अनेकों प्रकार की व्यवस्था निर्मित कर दी है। भाषा जब शिक्षा, व्यापार और मनोरंजन तीनों क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम कर ले तो इससे भाषा की अन्तःशक्ति का पता चलता है। हिन्दी भाषा उसी ओर अग्रसर है। अपनी जनसंख्या के कारण भारत वैश्विक बाजार के लिए एक बड़ा ग्राहक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिन्दी विज्ञापनों के द्वारा उपभोक्ता को प्रभावित करने में लगी हैं। मोबाइल द्वारा हर घर, हर व्यक्ति तक बाज़ार की पहुंच है। हिन्दी की बड़ी जनसंख्या को लक्ष्य कर बाज़ार उन्हीं की भाषा और संस्कृति में स्वयं की प्रभावोत्पादकता स्थापित करने में लगा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए कहीं न कहीं हिन्दी भाषा को मजबूत ही कर रही हैं।
पिछले दिनों बीटिंग रिट्रीट में अंग्रेजी गीत की जगह “ऐ मेरे वतन के लोगो” बजाया गया। धुन के बजने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि इस देसी धुन को उस अंग्रेजी धुन के स्थान पर बजाना बहुत अच्छा निर्णय था। यह गीत लगभग चालीस साल पुराना है। जिसको कवि प्रदीप ने 1962 वाली जंग के बाद देशवासियों के उत्साहवर्धन के लिये लिखा था। उस कठिन चुनौती में भारतीय जवानों ने बर्फीली एवं पहाड़ी युद्ध भूमि में बिना गर्म कपड़ों के, बिना मुनासिब जूतों के युद्ध लड़े थे। वर्तमान शासन में कई चीजों का देसीकरण हुआ है। जिस अंग्रेजीपन पर कभी हमारे शासक इतरा कर चला करते थे, अब गायब हो गया है। जो लोग कभी अंग्रेजों की तरह अंग्रेजी बोला करते थे, आज हिन्दी बोलने का प्रयास करते हैं। देसी बनने की प्रयास करते हैं। यह ‘स्व’ के जागरण का अप्रतिम उदाहरण है।
(लेखक मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जयपुर में कार्यरत हैं)