मुर्शिदाबाद का भयावह सच

मुर्शिदाबाद का भयावह सच

अवधेश कुमार

मुर्शिदाबाद का भयावह सचमुर्शिदाबाद का भयावह सच

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लेकर मध्यप्रदेश का गुना और इसके पहले नागपुर, मलाड आदि की घटनाओं से निस्संदेह देश को डरना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि डर कर चुपचाप बैठ जायें बल्कि इन घटनाओं में लगातार दिख रहे यथार्थ को पहचान कर उसके अनुरूप व्यवहार तय करने का समय है। मुर्शिदाबाद से भागीरथी नदी में नाव पर बैठकर पलायन करते और फिर मालदा जिले में उतरते लोगों की तस्वीरें किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अंदर से हिला देंगी। हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में गैर मुस्लिमों, हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा पर अपनी भौंहें टेढ़ी करते हैं, अपने देश के बारे में क्या कहेंगे? मालदा के पारलालपुर हाई स्कूल में शरण लिए लगभग 500 लोगों की तस्वीरें एवं वक्तव्य देश के सामने हैं। इनमें तीन दिन के नवजात से लेकर महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे शामिल हैं। स्थानीय लोग उनके खाने-पीने की व्यवस्था कर रहे हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांता मजूमदार की यात्रा के बाद पार्टी और दूसरे हिंदू संगठन भी सक्रिय हुए। लेकिन क्या किसी को याद है 2021 विधानसभा चुनाव के बाद हिंदू असम और झारखंड पहुंच गए थे। वे आज तक लौटे या नहीं लौटे देश को पता भी नहीं था। जब असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्वासर्मा ने अपनी पोस्ट लिखी, तब इसकी जानकारी हुई। वर्तमान घटना में पलायन कर गए लोग मुर्शिदाबाद के धुलियान के हैं। वे बता रहे हैं कि घरों में आग लगा दी, मारपीट की गई, अब न घर रहा न खाने को राशन बचा, करें तो क्या करें, जो कुछ था वह सब लूट कर ले गए। मणिपुर पर तूफान खड़ा करने वाले विपक्षी नेताओं की चुप्पी अधिक डरावनी है। इनके अनुसार, मणिपुर सभी देशवासियों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए, किंतु क्या मुर्शिदाबाद नहीं?

यही वह प्रश्न है, जिसका अलग-अलग घटनाओं और संदर्भों में भारत कभी स्पष्ट रूप से उत्तर नहीं दे सका। धुलियान में एक गरीब पिता पुत्र की हत्या कर दी गई जो हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। मूर्तिकार से किसका वैर हो सकता है? लोग कह रहे हैं कि उनकी पानी की टंकी में जहर मिला दिया गया। इसमें कितनी सच्चाई है अभी तक तो ममता बनर्जी सरकार को टंकियां जांच करके बता देना चाहिए था। नहीं बताने का अर्थ? कई तालाबों में मछलियों सहित अन्य जीव मरे पाए गए। यानी हमलावर घोषणा कर रहे थे कि सारे पानी में जहर मिला देंगे तो संभवत उन्होंने तालाब में ऐसा किया। टीवी कैमरों के माध्यम से देश ने वहां की हिंसा देखी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भी अलग-अलग क्षेत्र में हिंसा हो रही थी। शमशेरगंज सहित कई स्थानों में बीएसएफ की टीम पर गोलीबारी की गई। बीएसएफ कई घरों में जमा किए पत्थर हटा रही है। कलकाता उच्च न्यायालय के आदेश के कारण केंद्रीय सुरक्षा बलों की 17 कंपनियां तैनात की गई हैं अन्यथा पश्चिम बंगाल पुलिस के रहते क्या हो रहा था और क्या होता इसकी कल्पना से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भले आप आलोचना करिए और उनके विरोधी रहिए। लेकिन याद रखिए इन विकट परिस्थितियों में हिंदू समाज के साथ इनके अतिरिक्त कोई खड़ा नहीं दिखता। अन्य पार्टियों की स्थानीय ईकाइयां सच देखती हैं, भूमिका निभाना भी चाहती हैं लेकिन प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में नहीं करतीं। सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस के पिछले लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी की है। उनकी बात पार्टी में ही सुनने वाला कोई नहीं क्योंकि यहां पूरे देश का मुस्लिम वोट बैंक प्रभावित होता है। भाजपा के कई स्थानीय नेताओं ने प्रदेश में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम या अफस्पा लागू करने की मांग की है। आपको यह भले नागवार गुजरे किंतु पश्चिम बंगाल की स्थिति को देखिए और निष्कर्ष निकालिए कि वहां क्या किया जाना चाहिए? किसी का वक्फ संशोधन कानून से विरोध है तो उसका तरीका हिन्दुओं पर हमला कैसे सकता है? वैसे तो वक्फ कानून में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे मुसलमान या इस्लाम के विरुद्ध साबित किया जा रहा है। इस तरह का जहर फैलाने वाले वास्तव में स्वयं मुस्लिम समाज के ही दुश्मन हैं। बावजूद अगर आपको विरोध करना है तो इसके लिए हिंदुओं के घरों पर हमले करने, धर्म स्थलों को क्षतिग्रस्त करने, हत्याएं करने, दुकान घर जलाने आदि की क्या आवश्यकता है?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देशव्यापी विरोध का आह्वान किया था। क्या हिंसा के लिए उसे दोषी नहीं माना जाना चाहिए? हमलावरों की तैयारी कितनी थी, इसका अनुमान इसी से लगाइए कि पलायन कर गए लोग बता रहे हैं कि वे गैस सिलेंडरों को खोलकर दियासलाई से आग लगा रहे थे और पेट्रोल डाल रहे थे। आगजनी, पत्थरबाजी और गोली चलाने के लिए पहले की तैयारी चाहिए। गुना में हनुमान जयंती की शोभायात्रा पर जितनी भारी संख्या में पत्थर चले और आगजनी हुई उसकी तैयारी एकाएक संभव नहीं। इसी तरह हजारीबाग में हुआ। पिछले लंबे समय से हम देख रहे हैं कि हिंदुओं से जुड़े उत्सवों, शोभा यात्राओं, प्रतिमा विसर्जनों आदि पर इसी तरह पत्थरों से हमले होते हैं फिर अग्निकांड होता है। इससे भी डरावना सच यह है कि कोई बड़ा मुस्लिम नेता या संगठन हिंसा के विरुद्ध मुखर होकर सामने नहीं आता। दूसरे पक्ष को ही दोषी ठहराने का अभियान चलता है और कहा जाता है कि हमले उनके उकसाने पर हुए। किसी के उकसाने पर हजारों- लाखों की संख्या में पत्थर, पेट्रोल बम पैदा हो सकते है? मुर्शिदाबाद पर बंगाल की ममता सरकार में मंत्री सिद्धीकुल्ला चौधरी कह रहे हैं कि हिंसा में बाहरी और भाजपा के लोग शामिल थे, वे बीएसएफ की गोली से मारे गए। जंगीपुर के स्थानीय तृणमूल सांसद खलीलुर रहमान का बयान भी यही है। तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष का वक्तव्य है कि एक राजनीतिक दल ने बाहर से अपराधियों को लाकर बीएसएफ के सहयोग से मुर्शिदाबाद में तांडव मचाया है।

ममता सरकार और उनकी पार्टी का स्टैंड यही है तो आप उनसे क्या आशा कर सकते हैं। यह पहली बार नहीं है। पिछले वर्ष लगभग इसी समय जब वर्धमान जिले में एक बम विस्फोट की जांच करने गई एनआईए की टीम पर जबरदस्त हमले हुए। विस्फोट बम बनाने के दौरान हुई और मरने वाले तीनों तृणमूल के थे। स्पष्ट है इसमें किसके गले तक हाथ पहुंचता। चाहे शाहजहां शेख पर कार्रवाई करने गई टीम हो या अन्य जगह, वहां हमेशा बड़ी संख्या में उन्हें हिंसक विरोध का सामना करना पड़ता है, खदेड़ा जाता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर पूरी सरकार, पार्टी हमला बोल शैली में साथ खड़ी होती है। जब सरकार और पुलिस प्रशासन का भय नहीं हो तो कट्टरवादी तत्व ऐसे ही उन्माद फैलाता है ।

तो सच को सच की तरह देखिए फिर रास्ता निकालिए कि क्या हो सकता है। बंगाल संपूर्ण देश के लिए ऐसा डरावना प्रश्न बना हुआ है, जिसका अभी तक उत्तर नहीं मिला है। धीरे-धीरे दूसरे राज्यों में भी हिंदू उत्सवों प्रतिमा विसर्जनों शोभा यात्राओं आदि पर हमले की प्रवृत्तियां बढ़ीं हैं। उनके संदर्भ में हिंदू संगठनों, सरकारों तथा पार्टियों को नए सिरे से अपनी स्थाई रणनीति और व्यवहार तय करना होगा। मुस्लिम समुदाय के अंदर भी उदारवादी तबके को उनके विरुद्ध खुलकर सामने आना चाहिए। यह देश बचाने का प्रश्न है। लेकिन जो समाज अपनी आत्मरक्षा और प्रतिरोध की शक्ति खो देता है, उसकी कोई रक्षा नहीं कर सकता। इस समय हिंदू समाज में संविधान के अंतर्गत हिंसा या गलत के प्रतिरोध के अंधकार तक का प्रयोग करने का साहस नहीं दिख रहा। कम से कम ऐसी घटनाओं के विरोध में अहिंसक तरीके से धरना प्रदर्शन जैसा प्रतिरोध तो होना चाहिए था। बावजूद बंगाल जैसी स्थिति किसी की नहीं। केरल की कुख्याति भी बंगाल के सामने कमजोर और छोटी हो गई है। न्यायालय की स्थिति यह है कि 2021 में हिंदुओं के पलायन का मामला उच्चतम न्यायालय में आया और सुनवाई के दौरान एक बंगाली न्यायमूर्ति ने पहले अपने को अलग किया। फिर सुनवाई आरंभ हुई और एक और बंगाली जज साहब ने स्वयं को अलग कर लिया। इस कारण वह बाधित रही। वैसे भी न्यायालय ऐसी बढ़ती या स्थायी हो चुकी प्रवृत्तियों का समाधान नहीं कर सकते।

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