मुस्लिम तुष्टीकरण कब तक?
कौशल अरोड़ा
अभी हाल ही में मुस्लिम समुदाय के रफअत अहमद सुन्नत वल जमात के मबहबी नेता का जनाजा रामगंज जयपुर में दोपहर को निकला। जनाजे में दसियों हजार लोग शामिल हुए, बिना कोरोना गाइडलाइन्स का पालन किये हुए। वह भी पुलिस-प्रशासन और जन प्रतिनिधियों के नेतृत्व में। ठीक, इसी तरह माह अप्रैल में राज्य सरकार के मंत्री सालेह मोहम्मद के पिता मुस्लिम समुदाय के मजहबी गुरु गाजी फकीर का जनाजा जैसलमेर में निकला। उस जनाजे में भी प्रशासन की मौजूदगी में कोविड गाइड लाइन्स का उल्लघंन करते हुए हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए।
इन दोनों में समानता थी तो यह कि प्रशासन पंगु था और सत्ता दल के विधायक, मंत्री, पार्षद, ग्राम पंचायत सदस्य इसमें उपस्थित थे। पुलिस प्रशासन उस भीड़ को रोकने के स्थान पर उन प्रभावशालियों को सुरक्षा उपलब्ध कराने में जुटी रही। फौरी कार्रवाई के तौर पर हुआ क्या? मामूली कार्यवाही कर 10-12 लोगों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर दी गई। ऐसे उदाहरण और भी हैं।
जबकि सभ्य समाज का उदाहरण बीकानेर से हमारे सामने है। जहाँ माह मई में बीकानेर में सर्व हिन्दू समाज के आराध्य संत स्वामी सोमगिरि जी महाराज ब्रह्मलीन हुए तब भी यही प्रशासन वहाँ था। उस प्रशासन पर समाज के किसी भी वर्ग ने कोई दबाव नहीं डाला और न ही अनावश्यक प्रतिक्रिया ही की। जबकि स्वयंसेवकों व भक्तजनों ने पुलिस प्रशासन का सहयोग किया। यह सभ्य समाज की आंतरिक जागरूकता का उदाहरण था। यहाँ प्रशासन उन स्वयंसेवकों के कारण जागरूक रहा और शिवबाड़ी मन्दिर परिसर के मार्ग व आसपास की छोटे बड़े मार्गों पर अवरोधक लगाकर ट्रैफिक को रोका गया। उनके अनुयायियों, भक्तों, स्थानीय निवासियों ने उन्हें अपने घर व समाचार चैनल के माध्य्म से श्रद्धाजंलि व अन्तिम विदाई दी ।
यहाँ सीधा प्रश्न यह उठता है कि मुस्लिम समुदाय के सामने प्रशासन झुक क्यों जाता है? क्यों सारे कायदे कानून ताक पर रख दिए जाते हैं? किन कारणों से चारों ओर चुप्पी छा जाती है? तथाकथित सेकुलर सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण ऐसे दृश्य अब प्रदेश में कहीं भी देखे जा सकते हैं।
उत्तराँचल में कोरोना बढ़ने के कारण समय पूर्व ही कुम्भ मेले को विसर्जित करने की घोषणा स्वयं महामंडलेश्वर द्वारा कर दी गई थी। महामारी में सजगता का परिचय समाज का नेतृत्व करने वाले धर्मप्रेमी संगठनों द्वारा स्वयं दिया गया। लेकिन तथाकथित लिबरल गैंग ने कुम्भ को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन अब, इन दृश्यों को देखने के बाद उनकी जुबान पर ताले क्यों पड़ जाते हैं?
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विचारक, बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेक्युलर गैंग पुलिस और प्रशासन की बड़ी लापरवाही पर मौन हैं। समाचार पत्रों, मीडिया कवरेज, चैनल डिबेट में यह विषय क्यों नहीं हैं । इतना ही नहीं इन्हें छबड़ा में हुये दंगों का सच भी दिखाई नहीं दे रहा।