मूक बधिर बालिका के साथ दरिंदगी, प्रशासन के बदलते बयान, उठते सवाल
मूक बधिर बालिका के साथ दरिंदगी, प्रशासन के बदलते बयान, उठते सवाल (सांकेतिक चित्र)
क्या चाहिए? “बस न्याय।” हृदय को इससे अधिक विदीर्ण करने वाला उत्तर और कोई नहीं हो सकता। यह उत्तर है उस पिता का जिसकी मासूम नाबालिग बिटिया को दरिंदों ने ना केवल नोचा बल्कि नुकीली वस्तु उसके भीतर डालकर निजी अंगों को चीरफाड़ डाला। बालिका के सारे निचले अंग क्षतिग्रस्त हो गए थे। उसका रेक्टम तक अपने स्थान से खिसक गया था और मल निकासी के लिए पेट में छेद कर अलग से व्यवस्था करनी पड़ी।
13 -14 वर्ष की निर्दोष मूक-बधिर बच्ची। न बचाव में चिल्ला पाई, न अपने साथ हुई दरिंदगी बता सकी। जहाँ से वह मिली वहाँ दो फीट व्यास तक भूमि उसके रक्त से सन गई थी। कई यूनिट रक्त देकर ही उसे बचाया जा सका।
और इस बच्ची के असहाय पिता से नवाबी लहजे में पूछा जा रहा है- ‘बताओ, क्या चाहिए!’
वह पिता न्याय के अतिरिक्त और क्या चाहता? किंतु उसे मिल रहा है तो केवल झूठ और धोखा। वह भी राज्य और प्रशासन के हाथों!
राजस्थान सरकार व पुलिस अपनी छवि बचाने के लिए अब यह स्थापित करने में जुट गए हैं कि अलवर में गैंगरेप जैसी कोई वारदात हुई ही नहीं! तिजारा फाटक पुलिया पर लहुलूहान अवस्था में मिली बालिका के विषय में अलवर पुलिस के विचित्र व सर्वथा अविश्वसनीय बयान आ रहे हैं। 3 दिनों तक बलात्कार मानकर कार्रवाई कर रही पुलिस ने अचानक दावा कर दिया है कि उक्त घटना में बलात्कार हुआ ही नहीं! पुलिस के अनुसार 11 जनवरी सायं 7: 31 बजे बालिका पुलिया पर चढ़ती नजर आ रही है। उसके साथ कोई संदिग्ध नहीं दिख रहा है किंतु 10 मिनट बाद बालिका लहूलुहान मिली और अब पुलिस इन्हीं 10 से 15 मिनट में घटित ‘दुर्घटना’ की खोज में है।
पुलिस के दावों से बालिका का परिवार आहत है। बालिका की बड़ी बहन पूछती हैं कि पुलिस कह रही है, घटना के 10 मिनट के भीतर रात 8 बजे उन्होंने बालिका को उठा लिया। वे उससे कुछ देर पहले की सीसीटीवी फुटेज दिखा रहे हैं। क्या पुलिस मौके पर बच्ची को उठाने के लिए ही तैयार बैठी थी?
बालिका अब तक शारीरिक व मानसिक पीड़ा से जूझ रही है। कुछ पूछने पर रोने लगती है, यद्यपि ऑटो का फोटो देखकर वह ‘हाँ’ में सिर हिला रही है।बालिका के परिवार की पीड़ा अकल्पनीय है। उससे भी अधिक निंदनीय हैं प्रशासन द्वारा लीपापोती के घृणित प्रयास।
प्रश्न उठता है कि यदि बलात्कार नहीं हुआ तो मूक-बधिर बालिका के निजी अंगों में इतनी घातक चोट कैसे लगी कि कई घंटे के ऑपरेशन द्वारा अंगों को सिलना पड़ा और मल के लिए अलग से रास्ता बनाना पड़ा? वह कैसे इतनी लहूलुहान हुई कि सड़क दो फीट तक रक्त से सन गई और कई यूनिट रक्त चढ़ाना पड़ा?
पुलिस इसे दुर्घटना बता रही है। यदि यह दुर्घटना मात्र है तो बालिका को कहीं और चोट क्यों नहीं आई ? यदि 10 से 15 मिनट की अवधि का रिकॉर्ड नहीं है तो पहले ही कैसे मान लिया कि इस अवधि में चाहे और कुछ भी हुआ हो, बलात्कार नहीं हुआ? विस्तृत जाँच पूरी होने से पहले ही कैसे दावा कर दिया गया कि बालिका के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं है? जबकि जिला विधिक प्राधिकरण द्वारा इसे बलात्कार का मामला मानकर तात्कालिक सहायता स्वीकृत की गई थी। अर्थात तब तक पुलिस यह स्पष्ट रूप से मान रही थी कि मामला बलात्कार का है। जिस बालिका की आयु पहले 13-14 वर्ष बताई जा रही थी अब वह अचानक 16 वर्षीय कैसे कही जा रही है? क्या यह बाल संरक्षण के कानून से बचने के लिए जानबूझकर प्रसारित किया जा रहा है?
राजस्थान सरकार व प्रशासन ने अपनी छवि सुधारने के लिए अपराध रोकने की बजाय अन्याय का मार्ग चुन लिया है। राजनीतिक लाभ के लिए निष्पाप बालिका व परिवार को प्रताड़ित किया जा रहा है। राज्य सरकार की आँखों पर सत्ता और बल की चर्बी चढ़ चुकी है किंतु क्या मामले में यू टर्न लेने वाले पुलिस अधिकारियों की चेतना भी सुप्त व लुप्त हो गई है? क्या उन्हें भी कार्यभार ग्रहण करते समय ली गई संविधान की शपथ का स्मरण नहीं है?
आज राजस्थान में महिला सुरक्षा की स्थिति निकृष्टतम स्तर तक जा पहुंची है। जनवरी से दिसंबर 2021 तक महिला उत्पीड़न के 5900 से अधिक प्रकरण दर्ज हुए। राजस्थान पुलिस के ही आंकड़ों के अनुसार 2020 की तुलना में नवंबर 2021 तक महिला उत्पीड़न में 24.16%, बलात्कार के मामलों में 20% , छेड़खानी 5% तथा अपहरण मामलों में 27% बढ़ोतरी हुई।
एक ओर बढ़ते अपराध तथा दूसरी ओर राजस्थान राज्य महिला आयोग की व्यावहारिक अनुपस्थिति ने महिलाओं के समक्ष दोहरी चुनौती रख दी है। राज्य महिला आयोग में 2018 से अध्यक्ष व सदस्यों के पद खाली ही रख छोड़े गए हैं। इस विषय में सितंबर 2021 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार को फटकार भी लगाई थी।
सरकार को अब तो चेत जाना चाहिए। अपनी मासूम बालिकाओं को सुरक्षित भविष्य देना हमारा सामूहिक कर्तव्य है। आज यदि अपराधी बच गए तो कल को कोई और बालिका उनका शिकार बनेगी और तब भी प्रशासन इसी प्रकार लीपापोती कर सत्ता की मलाई चाटने में लगा रहेगा। इन्हें भी समझना चाहिए कि जिस जंगलराज को वे बढ़ावा दे रहे हैं उससे वे स्वयं कैसे और कब तक सुरक्षित रह सकते हैं?
अलवर की वीभत्स घटना ने केवल राजस्थान ही नहीं, पूरे राष्ट्र को मर्मांतक आघात दिया है। समूचा राष्ट्र आक्रोशित होकर एक स्वर में बालिका के लिए न्याय मांग रहा है। वह बालिका बोल नहीं सकती किंतु भारत के करोड़ों कंठ अब उसका कंठ बन गए हैं। ये करोड़ों कंठ एक स्वर में दोषियों को कठोरतम दण्ड देने की मांग कर रहे हैं। स्त्री अस्मिता की रक्षा के लिए प्राण तक न्यौछावर करने वाले राजस्थान के रणबांकुरों को याद कीजिए सरकार! जौहर करने वाली असंख्य ललनाओं को, पूरे परिवार का बलिदान करने वाली वीरांगनाओं का स्मरण कीजिए। परस्त्री को माता कहकर बलात्कारी को कठोरतम दण्ड देने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मरण कीजिए और अपने अन्यायी वर्तन पर थोड़ी लज्जा कर दुष्टों को दण्डित करवाइए। जनता आपको देख रही है।