मेरे पति मेरी लाइफ लाइन हैं…
बात जो दिल को छू गई
डॉ. शुचि चौहान
मेरी एक मित्र हैं। वे होम्योपैथिक डॉक्टर हैं। समाजसेवा के कामों में काफी सक्रिय हैं और अक्सर अपने क्रिया कलापों के चित्र फेसबुक पर शेयर करती रहती हैं। इस बार हम काफी दिनों बाद मिले। मैंने उनसे यूं ही पूछ लिया – आप छोटे बच्चे, पति, परिवार की अन्य जिम्मेदारियां व घर के बाहर रहकर समाज सेवा के इतने काम कैसे मैनेज करती हैं? उनसे जो उत्तर मिला वह कहीं दिल को छू गया।
उनका उत्तर था – “मेरे पति मेरी लाइफ लाइन हैं। उनके सपोर्ट व प्रेरणा से ही मैं इतना कुछ कर पाती हूं। इसके पीछे भी एक कहानी है। मेरा BHMS में चयन हुआ ही था कि पारिवारिक हालात कुछ ऐसे बने कि मेरी शादी तय हो गई। कॉलेज का पहला साल था कि शादी भी हो गई। शादी में फेरों के बाद विदाई से पहले दूल्हा व उसके दोस्तों को कलेवा खिलाने की एक रस्म होती है जिसमें लड़की की मॉं इन सभी को भोजन कराती है। मेरी मां भी मेरे पति को कलेवा खिला रही थीं, परंतु उनके आंसू जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उनको इतना रोते देखकर मेरे पति से रहा नहीं गया, उन्होंने मेरी मां से बड़े दुलार से पूछा- मां जी आप इतना क्यों रो रही हैं? आखिर आपकी बेटी भी हर बेटी की तरह शादी के बाद अपनी ससुराल ही जा रही है। इतना सुनते ही मां फफक फफक कर रो पड़ीं और बोलीं – बेटा और तो कुछ नहीं, मुझे लगता है अब इसकी पढ़ाई छूट जाएगी, मैं एक सफल डॉक्टर के रूप में इसको देखना चाहती थी। शायद उनका यह दर्द इसलिए था कि मेधावी व महत्वाकांक्षी होते हुए भी स्वयं उनकी पढ़ाई विवाह के बाद बीच में ही छूट गई थी। मेरे पति भाव विह्वल हो गए। उन्होंने मां से कहा- मां जी आपकी तीन बेटियां हैं, अब से आप बस दो की ही चिंता करना। इसको मैं ले जा रहा हूं, इसकी चिंता करना मेरा काम है। यह आपके सपनों को जरूर पूरा करेगी।”
वे आगे बोलीं – ”वह दिन था और आज का दिन है, मेरे पति ने मां से किया अपना वादा कभी नहीं तोड़ा। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया है। वे मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा व मार्गदर्शक हैं। उनके साथ के कारण ही पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं अपना क्लिनिक खोल सकी। आज दो बच्चों की मां हूं, जीवन में हर खुशी है। रही समाजसेवा की बात तो एक दिन मैंने अपने पति से कहा- हर महिला मेरे जैसी भाग्यशाली नहीं होती, सबको इतना साथ देने वाला पति नहीं मिलता। मैं उन महिलाओं के लिए कुछ काम करना चाहती हूं जो हालात की मारी हैं, परिवार द्वारा उपेक्षित हैं, गरीब हैं या प्रतिभा होते हुए भी मौके न मिल पाने के कारण कुछ कर नहीं पातीं। मेरे पति ने मेरी बात का सम्मान किया, उन्होंने मुझे इसके लिए भी प्रेरित किया। आज सोलह वर्ष बीत गए मेरी यह यात्रा अनवरत जारी है।” उनकी बात समाप्त होते होते न जाने क्यों मेरी आंखों से कुछ बूंदें टपक पड़ीं, शायद खुशी की थीं।