उदयपुर में युवा चिंतकों का अनूठा उत्सव मेवाड़ टॉक फेस्ट संपन्न
उदयपुर में युवा चिंतकों का अनूठा उत्सव मेवाड़ टॉक फेस्ट संपन्न
उदयपुर, 31 मार्च। उदयपुर में चर्चा व चिंतन का दो दिवसीय उत्सव, मेवाड़ टॉक फेस्ट रविवार को संपन्न हुआ। मेवाड़ टॉक फेस्ट का तीसरा और अंतिम सत्र ‘बंगाल 1947’ फिल्म की स्क्रीनिंग का था, जिसमें फिल्म के लेखक-निर्देशक व अभिनेता ने उपस्थित दर्शकों से खुलकर संवाद किया और फिल्म से जुड़े विषयों पर चर्चा की।
उत्सव के अंतर्गत आज सुबह आइनोक्स में बंगाल 1947 फिल्म की स्क्रीनिंग हुई। जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं और प्रबुद्धजनों ने हिस्सा लिया। फिल्म के लेखक-निर्देशक व अभिनेता की उपस्थिति में हुई स्क्रीनिंग को देखते हुए दर्शकों में विशेष उत्साह दिखाई दिया। इस दौरान दर्शकों ने लेखक-निर्देशक आकाशादित्य लामा व अभिनेता अंकुर अरवम के साथ संवाद किया और फिल्म की विषयवस्तु व निर्माण से सम्बंधित प्रश्न पूछे। इस दौरान कई दर्शकों ने निर्माता व अभिनेता के साथ तथा स्वयं लेखक-निर्देशक व अभिनेता ने दर्शकों के साथ सेल्फी लेकर गौरव की अनुभूति की। ‘बंगाल 1947’ फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान आकाशादित्य लामा और अंकुर अरवम का आयोजकों की ओर से अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर फेस्ट के संरक्षक मदन मोहन टांक सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन और युवा उपस्थित थे।
बंगाल 1947 फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान महिला शिक्षा और प्राचीन काल में महिलाओं को सम्मानित स्थान दिए जाने से जुड़े कई संवादों ने दर्शकों का मन मोह लिया। फिल्म में एक घटना के अंतर्गत बताया गया कि वेद की हर ऋचा को रचने वाले ऋषि का नाम उसमें दर्ज है और ऋषि एक-दो नहीं पच्चीसों हैं, जिनमें दर्जनों नारियां हैं। वेदों की रचना में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है, यह स्त्री ऋषियों की ऋचाओं को पढ़कर जाना जा सकता है। फिल्म में यह भी बताया गया कि यदि प्राचीन काल में छुआछूत या जातिभेद होता तो प्रभु श्रीराम शबरी के जूठे बेर नहीं खाते। इसी प्रकार एक संवाद में यह भी बताया गया कि शंकराचार्य और मंडल मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ की न्यायाधीश मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती थीं, जो प्राचीन काल में महिलाओं में उच्च शिक्षा का साक्षात प्रमाण हैं।
यह है फिल्म की विषयवस्तु
फिल्म के लेखक व निर्देशक आकाशादित्य लामा ने बताया कि यह फिल्म बंगाल के ऐतिहासिक विभाजन के दौर में एक प्रेम कहानी पर आधारित है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष शूटिंग के दौरान यह फ़िल्म ‘शबरी का मोहन‘ के नाम से बनाई जा रही थी, लेकिन फिल्म की विषयवस्तु को देखते हुए इसका नाम बदल कर ‘बंगाल-1947‘ रखा गया। उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय रिलीज से पहले प्रतिष्ठित बंगाल इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल कोलकाता के लिए उनकी फिल्म का चयन होना उनके और उनकी पूरी टीम के लिए प्रसन्नता और गर्व का अवसर है।