मैकाले की राह पर राजस्थान के शिक्षामंत्री
कुमार ऋत्विज
हिन्दी दिवस पर राजस्थान एक अद्भुत घटना से दो चार हुआ। राज्य सरकार ने प्रदेश के 348 सरकारी स्कूलों की शिक्षा का माध्यम हिन्दी की बजाय अंग्रेजी करने के आदेश दिए। यह आदेश एक तरह से हिन्दी दिवस के साथ खिलवाड़ था। जिन्होंने यह किया वो इसे प्रगतिशील कदम बता रहे हैं। हिन्दी दिवस के दिन हिन्दी को बढ़ावा देने का ट्वीट करने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शिक्षामंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा अंग्रेजीयत के पेड़ को राजस्थान के सरकारी स्कूलों में पनपाने में जुटे रहे, मानो सरकारी स्कूलों की बद से बदतर हालत के लिए शिक्षा का माध्यम ही सबसे बड़ा कारण था।
वे यह भूल गए कि ऐसा करके वे हमारी संस्कृति का कितना बड़ा नुकसान करने जा रहे हैं। आज यदि विश्व में भारत और भारतीयता बची है तो वह केवल अपनी संस्कृति और भाषा के कारण है। स्वतंत्र भारत के अंग्रेजीयत पसंद नेता, औपनिवेशिक शासक अंग्रेजों से अधिक नुकसानदेह साबित हुए हैं।
लैटिन अमरीका के बारे में हम सब जानते हैं। वहां की भाषा है स्पेनिश। दुनिया में सबसे ज्यादा स्पेनिश जहां बोली जाती है वो देश है मैक्सिको। क्या स्पेनिश लैटिन अमरीकी देशों और मैक्सिको की मूल भाषा थी? नहीं। औपनिवेशिक साम्राज्यों के दौर में जब इंग्लैंड, स्पेन, फ्रांस और पुर्तगाल ने दुनिया पर कब्जे की होड़ मचाई तो उन्होंने लगभग पूरी दुनिया को अपने कब्जे में ले कर उसे आपस में बांट लिया। जहां जिसकी तलवार, बंदूक चली वहां लोग उनकी बोली भाषा बोलने लगे। लगातार आक्रांताओं के शासन में रहने और उनकी भाषा बोलने पर स्वार्थ सिद्ध होते देख लोगों ने अपनी भाषा तज कर आक्रांताओं की भाषा बोलना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि आज उन जगहों पर मातृभाषा संकट में है और विदेशी भाषा ने ही मातृभाषा का स्थान ले लिया है।
हमने भारत में साढ़े सात सौ साल की परतंत्रता के दौर के बावजूद अपनी भाषा व संस्कृति को बचाए रखा है। हालांकि देश में अब भी इस मानसिकता के लोगों की कमी नहीं है कि अंग्रेजी पढ़ने और मेज पर बैठ छुरी कांटे से खाने से ही हम इंसान कहलाएंगे। राजस्थान की वर्तमान सरकार शायद इसी मानसिकता की पक्षधर है। हिन्दी दिवस पर आवश्यकता हिन्दी को उसका मान दिलाए जाने के कदम उठाए जाने की थी। बेहतर होता राजस्थान सरकार के कर्णधार सचिवालय और सरकार के कामकाज को हिन्दी में करने के आदेश देते। पर अंग्रेजीदां मानसिकता ने उन्हें मैकाले की बाबू तैयार करने की नीति को ही आगे बढ़ाने के लिए प्रेरणा दी। मजे की बात तो यह है कि स्वयं को किसान पुत्र और बिना किसी उचित अवसर के नाथी का बाड़ा जैसी कहावतों का प्रयोग करने वाले राजस्थान के शिक्षामंत्री गोविंद डोटासरा को इसमें ही प्रदेश की प्रगति दिखाई देती है। अपने इस अधोगामी कदम में भी वे प्रदेश की बालिकाओं का हक मारने में जुट गए। नए अंग्रेजी विद्यालयों में अधिकतर बालिका विद्यालय हैं। अब नई व्यवस्था के अंतर्गत वे सह शिक्षा व्यवस्था वाले विद्यालय हो जाएंगे। प्रदेश में वैसे ही बालिका शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है। अब सह शिक्षा होने से उनके लिए शिक्षा के अवसर और कम हो जाएंगे। स्वयं को राजस्थान का लॉर्ड मैकाले समझ रहे राजस्थान के शिक्षामंत्री न केवल बालिकाओं के साथ अन्याय कर रहे हैं, बल्कि वे देश की नई शिक्षा नीति का भी मखौल उड़ा रहे हैं। मातृभाषा में शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाना नई शिक्षा नीति की मूल आत्मा है। वे प्रदेश को एक ऐसे खतरे की ओर ढकेल रहे हैं जो हमारी संस्कृति और विरासत दोनों के लिए संकट साबित हो सकता है। शिक्षा मंत्री डोटासरा को समझना चाहिए ना तो राजस्थान के स्कूल नाथी का बाड़ा हैं और ना ही वे लॉर्ड मैकाले। सरकार को अंग्रेजीयत के प्रति अपनी दीवानगी को त्याग कर राजस्थानी संस्कृति की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए।