राजगढ़ से सीख ले अयोध्या
अतुल तारे
अयोध्या से राजगढ़ (मप्र) की दूरी 770 किलोमीटर है। रेल मार्ग सीधा है नहीं। सड़क मार्ग से दूरी 13 घंटे 4 मिनट में आप तय कर सकते हैं। अयोध्या को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली है। राजगढ़, मध्यप्रदेश में है। अपेक्षाकृत पिछड़ा क्षेत्र है। पठारी क्षेत्र है। पर मध्यप्रदेश में राजनीतिक लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण। कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का यह क्षेत्र है।
आप प्रश्न कर सकते हैं कि दोनों को एक साथ बताने के पीछे हेतु क्या है? दोनों की तुलनात्मक जानकारी देने का उद्देश्य क्या है? तो उद्देश्य यह है अयोध्या मात्र एक संसदीय क्षेत्र नहीं है। यह न केवल भारत में अपितु वर्तमान में वैश्विक दृष्टि से भारतीयता या सनातन का एक प्रेरणा स्थल है, जिससे एक संदेश मुखरित होता है। अयोध्या में सरयू क्या कहती है, यह देश जानना चाहता है। ठीक इसी तरह राजगढ़ में दिग्विजय सिंह खासकर विगत दो दशक में सनातन विरोध के प्रतीक के रूप में उभरकर आने वाले एक जीवंत प्रतीक हैं। अयोध्या का संदेश और राजगढ़ में पार्वती का संदेश मात्र दो संसदीय क्षेत्र का संदेश नहीं है, यह कहा जा सकता है, कहा जा रहा है।
परिणाम यह है कि अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी की हार को मंदिर या सनातन की हार के रूप में स्थापित करने का विधर्मी कुचक्र शुरू हो गया है। पर यही विधर्मी राजगढ़ की हार पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह संकेत समझने की आवश्यकता है। बेशक अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी की पराजय बेहद पीड़ादायक है। नि:संदेह व्यक्तिगत रूप से अयोध्या को गद्दार या अन्य अपशब्दों से कोसने का जो ‘ट्रेंड पिछले 24 घंटे में चला है। वो दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा मैं मानता हूं। इसकी आवश्यकता नहीं है। पर अयोध्या से इतिहास यह प्रश्न करेगा अवश्य, यह अयोध्यावासियों को समझना होगा। प्लासी युद्ध सिर्फ प्लासी की भूमि के लिए नहीं लड़ा जा रहा था। उस युद्ध में देश के भाग्य का निर्णय होने जा रहा था। पर इतिहास साक्षी है, इस लड़ाई में सारा देश शामिल नहीं हुआ। परिणाम, देश पराजित हुआ और एक लुटेरा भारत को रौंदता हुआ आगे बढ़ता गया।
प्रश्न यह नहीं है, अयोध्या से सांसद कौन होगा? देश लोकतांत्रिक है जनमत को यह अधिकार है कि वह अपना प्रतिनिधि किसे चुने? अतः अयोध्या के मतदाताओं के इस अधिकार को चुनौती नहीं है कि वह अपना प्रतिनिधि किसे चुने? पर, यह प्रश्न अयोध्या से किया ही जाएगा कि आज उसके पास एक ऐतिहासिक अवसर प्रभु श्रीराम के प्रति अपना संपूर्ण विश्वास प्रकट करते हुए सनातन के विरोध के प्रति अपना आक्रोश बताने का थी। तब वह चूक क्यों कर गया?
क्या एक दो दिन नहीं शताब्दियों पूर्व रामलला के घर को विध्वंस कर बाबरी ढांचे को खड़ा देखने का दंश उनके पूर्वजों ने नहीं झेला है? क्या इसी ढांचे को ढहाने का निर्णायक युद्ध उनकी ही बीती एक पीढ़ी ने अपनी आंखों के सामने नहीं देखा है? कारसेवकों पर गोली चलाने वाले कौन थे, क्या वे भूल गए? और अब जब एक लंबी लड़ाई और असंख्य बलिदानों के फलस्वरूप राम अपने घर आए, प्राण प्रतिष्ठा हुई, उस सौभाग्य के दर्शन का अवसर उन्हें नहीं मिला? फिर क्या कारण रहा कि 10 लाख 27 हजार 759 मतदाता वाले संसदीय क्षेत्र वाले मतदाता समूह में से 59.13 प्रतिशत ने ही अपने मत का प्रयोग किया। चुनाव आयोग इस तरह के आंकड़े जारी नहीं करता, पर संकेत के लिए उत्तरप्रदेश के रामपुर संसदीय क्षेत्र के एक बूथ के आंकड़े आए हैं। वहां हिन्दू हैं ही नहीं। सभी मुस्लिम हैं। पांच सौ प्रधानमंत्री आवास हैं, लेकिन भाजपा को एक भी वोट नहीं मिला। अर्थात वे जानते हैं कि वोट किसे देना है पर अयोध्या के 41 प्रतिशत मतदाताओं ने घर से निकलना हो आवश्यक नहीं समझा। इतिहास इस अपराध को दर्ज तो करेगा। संभव है प्रत्याशी खराब हो। लल्लू सिंह के विरुद्ध स्थानीय आक्रोश था। मुआवजा वितरण में भी सरकारी तंत्र ने भ्रष्टाचार किया है। पर अयोध्या से यह अपेक्षित था कि यह इन जायज विषयों पर अपना तीखा आक्रोश प्रकट करता, लेकिन वोट देते समय वह यह विचार अवश्य करता कि इस लड़ाई को स्थानीय विषयों में विधर्मी उलझाकर अपना दूरगामी षड्यंत्र सफल करना चाहते हैं। यह षड्यंत्र सिर्फ अयोध्या तक सीमित नहीं था। ओपन एआई ने यह प्रमाणित कर दिया है कि विदेशी शक्तियां चुनाव को प्रभावित कर रही थीं। कांग्रेस सहित विपक्ष को पैसा दे रही थीं। इजराइल की एक कंपनी का नाम सामने आ रहा है। देश की 100 सीटें ऐसी चिन्हित की गई थीं। जिनमें एक वाराणसी भी थी। क्या वाराणसी में भाजपा का प्रत्याशी चयन गलत था? नरेन्द्र मोदी आज एक वैश्विक नेता हैं। वाराणसी का कायाकल्प हुआ है और यह एक सीमित बढ़त से संसद पहुंच रहे हैं।
पर बधाई राजगढ़ के मतदाताओं को। बधाई भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को। बधाई राष्ट्रीय विचार से जुड़े संगठनों को। भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर वोट मांगने नहीं आए। हम उनसे नाराज हैं। यह राजगढ़ में पहले दिन से हवा थी। दिग्विजय सिंह कांग्रेस के बड़े नेता, राधौगढ़ उनकी रियासत। चाचौड़ा उनकी अपनी विधानसभा क्षेत्र से यह सांसद रहे। 10 वर्ष मुख्यमंत्री रहे। एक-एक परिवार से उनका जीवंत सम्पर्क। राजगढ़, भाजपा हार सकती है, यह चुनावी पंडित पहले दिन से कह रहे थे। दिग्विजय सिंह ने यह चुनाव मेरा आखिरी चुनाव है, कहकर भावनात्मक कार्ड भी चला। पर बधाई। दिग्विजय सिंह मात्र राधौगढ़ विधानसभा से ही बमुश्किल अपनी प्रतिष्ठा 11 हजार वोट से बचा पाए। शेष चाचौड़ा, नरसिंहगढ़, ब्यावर, राजगढ़, खिलचीपुर एवं सुमनेर सभी से हारे।
राम मंदिर के विषय पर अपमानजनक टिप्पणी, हिन्दुत्व को आतंकवाद से जोड़ने की टिप्पणी, मुंबई हमलों में पाकिस्तान के पक्ष में बोलना, ओसामा को ओसामा जी कहना, ऐसे एक नहीं कई प्रसंग हैं, जब दिग्विजय सिंह ने भारत के स्वर के विरुद्ध ही अपना मत रखा है। राजगढ़ ने पूरे सम्मान के साथ ‘राम नाम’ कह कर दिग्विजय सिंह को घर भेजने का अभिनंदनीय कार्य किया। दिग्विजय सिंह की जीत भी सनातन विरोध की जीत होती। यह राजगढ़ ने समझा और अपनी व्यक्तिगत नाराजगी को भविष्य के लिए सुरक्षित रखा। यही अपेक्षा अयोध्या से भी थी।
पर ऐसा हो न सका। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। अतः यह समय विचारपूर्वक आगे बढ़ने का है।
कार सेवकों पर गोली चलाने वाले वही थे, जिनको आपने #भारत_रत्न दिया है 🤔😏