हर अवसर राजनीति के लिए नहीं होता

हर अवसर राजनीति के लिए नहीं होता

हर अवसर राजनीति के लिए नहीं होता

सार्वजनिक जीवन में कुछ अवसर ऐसे होते हैं, जो राजनीति से परे होते हैं। ये अवसर देश और दुनिया को यह संदेश देने के लिए होते हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हम एक हैं और आज तक हमने जो भी अर्जित किया, वह हमारी एकता और अखंडता के कारण सम्भव हो सका है। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव भी एक ऐसा ही आयोजन है जो 12 मार्च को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा की वर्षगांठ के साथ शुरू हुआ। यह वह अवसर था जब देशवासी अपने नेताओं से एक संदेश की आशा कर रहे थे, जो उन्हें गौरवान्वित अनुभव कराए और देश के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो इसका महत्व समझा और स्वतंत्रता के आंदोलन के अनेक नायकों को स्मरण करते हुए उनके योगदान को नमन किया, लेकिन राजस्थान में यह गौरवशाली अवसर भी राजनीति की भेंट चढ़ गया। यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस गौरवशाली अवसर पर भी दलगत राजनीति को गले लगाए रखा और किसान आंदोलन तथा अन्य मुद्दों को लेकर केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर राजनीतिक हमले किए।

अगले वर्ष देश को स्वतंत्रता मिले 75 वर्ष हो जाएंगे। इस गौरवशाली अवसर का महत्व समझते हुए ही केन्द्र सरकार ने स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव शुरू किया है जो 15 अगस्त 2022 तक चलेगा और इन 75 सप्ताह के दौरान देश भर में कई गतिविधियां होंगी। इस अमृत महोत्सव की शुरुआत 12 मार्च को हुई, जब देश भर में राष्ट्रपति महात्मा गांधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा की 91वीं वर्षगांठ मनाई गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में इस अमृत महोत्सव की शुरुआत करते हुए इसकी वेबसाइट लॉन्च की और प्रतीकात्मक दांडी यात्रा को भी हरी झंडी दिखाई। इस यात्रा में शामिल 81 लोग 386 किमी की यात्रा कर 5 अप्रैल को दांडी पहुंचेंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर के महत्व को समझते हुए इसका कोई राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया, जबकि वे चाहते तो पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे भी एक राजनीतिक कार्यक्रम बना सकते थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नीतियों से भाजपा चाहे कितनी भी असहमति रखती हो, लेकिन इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में जवाहरलाल नेहरू का भी उल्लेख किया और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर महात्मा गांधी के विदेश से लौटने, लोकमान्य तिलक के पूर्ण स्वराज्य का आह्वान, नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के योगदान सहित हर उस घटना को याद किया, जिसका योगदान देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे कितने ही सेनानी हैं जिनके प्रति देश हर दिन कृतज्ञता व्यक्त करता है। अंग्रेजों के सामने गर्जना करने वाली रानी लक्ष्मी बाई हो, चाहे पंडित नेहरू हों और चाहे सरदार पटेल हों न जाने ऐसे कितने जननायक रहे हैं जो आजादी के आंदोलन के पथ प्रदर्शक थे।

मोदी ने कहा कि हमारे यहां नमक को कभी उसकी कीमत से नहीं आंका गया। हमारे यहां नमक का अर्थ है ईमानदारी, विश्वास, वफादारी। हम आज भी कहते हैं कि हमने देश का नमक खाया है। ऐसा इसलिए क्योंकि नमक हमारे यहां श्रम और समानता का प्रतीक है। यह उस समय भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत की इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की। गांधी जी ने देश के पुराने दर्द को समझा। जन-जन से जुड़ी उस नब्ज को पकड़ा और देखते ही देखते यह संग्राम हर एक भारतीय का संकल्प बन गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी राष्ट्र का भविष्य तभी उज्जवल होता है, जब वह अपने अतीत के अनुभवों और विरासत के गर्भ से पल-पल जुड़ा रहता है। भारत के पास तो गर्व करने के लिए अथाह भंडार है। चेतनामय सांस्कृतिक विरासत है। यह अवसर अमृत के रूप में वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होगा। एक ऐसा अमृत जो देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा।
इस तरह प्रधानमंत्री ने अवसर की गरिमा को समझते हुए देश को गौरवान्वित अनुभव कराया। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस अवसर में भी राजनीति ढूंढ ली। आयोजन के मुख्य कार्यक्रम में उन्होंने इस अवसर के महत्व को रेखांकित तो किया, लेकिन इस कार्यक्रम और इस अवसर पर मीडिया से की गई बातचीत में उनका मुख्य जोर केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की आलोचना पर रहा। अपने उद्बोधन में वे किसान आंदोलन को ले आए, देश में लोकतंत्र पर तथाकथित हमले को ले आए और वो तमाम आरोप लगाए जो आमतौर पर राजनीतिक कार्यक्रमों या रैलियों में लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार कृषि कानूनों पर अन्नदाता को नजरअंदाज कर रही है। केन्द्र सरकार को दमनकारी कृषि कानून वापस लेने चाहिए। सरकार को हठधर्मिता छोड़नी चाहिए। गहलोत ने कहा कि मोदी भी आज साबरमती से दांडी यात्रा शुरू कर रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि गांधीजी को याद कर मोदी के अंतर्मन को यह झकझोरेगा और शाम तक वे निर्णय करें तो खुशी होगी। उन्होंने कहा कि देश में डेमोक्रेसी को ढूंढना पड़ रहा है उसके सामने खतरे हैं। सारी एजेंसियां सरकार के शिकंजे में आ चुकीं हैं। गहलोत ने कहा कि मोदी मोहन भागवत से सलाह कर लें। देश को एक रखना है, अखंड रखना है, तो सही रास्ते पर आ जाएं, वरना जनता सही रास्ते पर ला देगी।

दोनों नेताओं के भाषणों की तुलना करें तो यह स्पष्ट तौर पर लगता है कि कांग्रेस ने इस गौरवशाली अवसर को भी राजनीति से जोड़ दिया, हालांकि इसकी आवश्यकता नहीं थी। इस तरह के आरोप लगाने के और ना जाने कितने अवसर प्रतिदिन मिलते हैं, लगाए जाते हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री गहलोत चाहते तो ऐसे आरोपों से बच सकते थे और देश को गौरवान्वित अनुभव कराने वाले इस अवसर को राजनीतिक चश्मे से परे रख कर भी देख सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं करने के  पीछे उनकी क्या मजबूरी रही, यह तो वही बता सकते हैं, बहरहाल इससे “मैसेज“ अच्छा नहीं गया।

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