राजस्थान की बावड़ियां विश्व की विरासत

राजस्थान की बावड़ियां विश्व की विरासत

राजस्थान की बावड़ियां विश्व की विरासतराजस्थान की बावड़ियां विश्व की विरासत

जयपुर। राजस्थान की विरासत बहुत समृद्ध है। यहॉं के दुर्ग अपने शौर्य , पराक्रम, अप्रतिम सौंदर्य व बेजोड़ स्थापत्य कला के लिए जाने जाते हैं। राजस्थान के छह प्रमुख किलों, आमेर, गागरोन, कुंभलगढ़, जैसलमेर, रणथंभौर और चित्तौड़गढ़ को यूनेस्को, वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल किया गया है। यहॉं के किले ही नहीं मंदिर, हवेलियां, कुएं, बावड़ियां, कुंड आदि भी राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का प्रमुख हिस्सा हैं। लेकिन ये यूनेस्को की सूची में सम्मिलित नहीं हैं? पता नहीं क्यों इन्हें हर बार अनदेखा कर दिया जाता है। जबकि ये गौरवशाली इतिहास के महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं।  
बात करें बावड़ियों की, तो प्रदेश में  छोटी बड़ी हजारों ऐसी प्राचीन बावड़ियां हैं जो, जल संरक्षण का मार्ग दिखाती हैं। 
देश में बावड़ियों का प्रचलन सबसे अधिक राजस्थान में रहा है। यहां के अधिकांश जिलों में बावड़ियां पाई जाती हैं, इनमें से अनेक अपने अद्वितीय स्थापत्य और निर्माण के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
बावड़ियों के निर्माण की प्रकृति एवं डिजाइन उस जगह की प्राकृतिक स्थितियों, वर्षा की मात्रा, भूमिगत जल स्तर, मिट्टी के प्रकार, निर्माण करने वाले की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। जल प्रबंधन के इस  महत्वपूर्ण स्रोत का संरक्षण और संवर्धन बेहद जरूरी है। कुछ संस्थाएं हैं जो इन के संवर्धन, संरक्षण और जनजागरण के लिए काम कर रही हैं। परन्तु यह जागरण पर्याप्त नहीं है। अतिक्रमणकारियों से इन्हें बचाना बड़ी चुनौती है। हमारे पूर्वजों के कौशल व शिल्प की अद्भुत साक्ष्य हैं ये बावड़ियां,  आगामी पीढ़ी तक इस विरासत को पहुंचाने का कर्तव्य हम सब का है। इस दिशा में भारतीय इतिहास संकलन समिति के कार्यकर्ताओं ने एक पहल की है, जिसके अंतर्गत वे राजस्थान में ‘विरासत यात्रा’ कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य ऐसे मंदिर, सराय, कुएं और बावड़ियों पर सरकार, समाज व पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित कर उन्हें संरक्षण प्रदान करना हैं, जो अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।  समिति के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगललाल बोहरा बताते हैं कि, वर्तमान में वे मेवाड़ क्षेत्र में यात्रा पर निकले हैं। यहां ऐसे कई मार्ग हैं जहां पर जन सुविधा की दृष्टि से राजा—महाराजाओं ने कुएं, सराय और बावड़ियों का निर्माण कराया था। विरासत यात्रा के दौरान ऐसे कई स्थानों को चिन्हित किया गया है। विशेषकर उदयपुर से चित्तौड़गढ़ की ओर जाने वाले मार्गों पर। बोहरा कहते हैं कि, ऐसी ही एक बावड़ी है, झरना बाई की बावड़ी, जिसे त्रिमुखी बावड़ी के नाम से जाना जाता है। इस बावड़ी की विशेष बात यह है कि इसमें तीनों ओर से उतरने का रास्ता है। किंतु उपेक्षा के कारण यह  बावड़ी आज अपनी पहचान खो रही है। बावड़ी पर अब अतिक्रमण का खतरा भी मंडरा रहा है।
भारतीय इतिहास संकलन समिति प्रशासन से मांग कर रही है कि इन बावड़ियों को सुरक्षित किया जाए। किलों, दुर्गों के साथ ही ये बेहतरीन बावड़ियां भी राजस्थान की ऐतिहासिक विरासत हैं। राजस्थान की प्रसिद्ध बावड़ियों में आभानेरी की चांद बावड़ी, बूंदी की रानीजी की बावड़ी एवं नागर सागर कुंड, अलवर जिले की नीमराना बावड़ी, जोधपुर का तूर जी का झालरा, और जयपुर की पन्ना मियां की बावड़ी प्रमुख हैं।

विश्व विरासत सूची में इसलिए सम्मिलित हों ये बावड़ियां—

जयपुर के आमेर में स्थित है ‘पन्ना मीणा’ की बावड़ी। इसे पन्ना मीणा का कुंड भी कहा जाता है। इस बावड़ी के एक ओर जयगढ़ दुर्ग और दूसरी ओर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता है। बावड़ी अपनी विशेष आकार की सीढ़ियों और बरामदों के लिए विख्यात है।

दौसा जिले में बांदीकुई तहसील के आभानेरी में स्थित चांद बावड़ी को भूल-भुलैया वाली बावड़ी भी कहा जाता है। बावड़ी में लगभग 3500 सीढ़ियां हैं। 

बूंदी शहर में स्थित रानीजी की बावड़ी राजस्थान की सबसे शानदार बावड़ियों में से एक मानी जाती है। इस बावड़ी में कई कुओं का निर्माण किया गया है, जिनमें बारिश के दौरान पानी भरा रहता है।

बूंदी में ही चोगन गेट के पास दो सीढ़ीदार कुंड हैं। इनको पहले जनाना सागर और गंगा सागर कहा जाता था, लेकिन अब इन्हें संयुक्त रूप से ‘नागर सागर’ कुंड कहा जाता है। इसका निर्माण बूंदी के लोगों के लिए सूखे के दौरान पानी के लिए कराया गया था।

अकाल से राहत देने के लिए नीमराणा के राजा महासिंह ने 1760 में नीमराणा बावड़ी का निर्माण कराया था। 125 सीढ़ियों वाली यह बावड़ी अपने विशाल रूप के कारण विशेष महत्व रखती है। नीमराणा बावड़ी दिल्ली से 125 किमी दूर और नीमराना फोर्ट पैलेस के समीप है।

सूर्य नगरी जोधपुर में ऐतिहासिक तूरजी का झालरा बावड़ी स्थित है। इसका निर्माण 1740 में हुआ था। इसमें लगभग 3500 सीढ़ियां हैं। तूर जी का झालरा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

राजस्थान की बावड़ियां

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