राजस्थान के पद्म श्री अर्जुन सिंह शेखावत, श्याम सुंदर पालीवाल और लाखा खान

राजस्थान के पद्म श्री अर्जुन सिंह शेखावत, श्याम सुंदर पालीवाल और लाखा खान

राजस्थान के पद्म श्री अर्जुन सिंह शेखावत, श्याम सुंदर पालीवाल और लाखा खान

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। गृह मंत्रालय की ओर से जारी सूची के अनुसार, पद्म विभूषण के लिए 7, पद्म भूषण के लिए 10 और पद्मश्री पुरस्कार के लिए 102 नाम चुने गए।

पद्म श्री के लिए चुने गए इन नामों में राजस्थान से इस बार अर्जुन सिंह शेखावत, श्याम सुंदर पालीवाल व लाखा खान के नाम शामिल हैं।

पाली जिले के रहने वाले 87 वर्षीय अर्जुन सिंह शेखावत को यह पुरस्कार साहित्य और शिक्षा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये मिला है। शेखावत प्रथम विश्व युद्ध में हैफा शहर काे अपने शौर्य व वीरता से महज 12 घंटे में ही आजाद कराने वाले हैफा हीराे दलपतसिंह के पड़पौत्र हैं। उनका पैतृक गांव देवली पाबूजी है। राजस्थानी व हिंदी में एमए, बीएड शेखावत ने वर्ष 1967 में जनजाति बहुल क्षेत्र में अध्यापक के रूप में अपनी शैक्षिक यात्रा आरम्भ की थी। फिर वहीं पर उपजिला शिक्षा अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। जनजातियों के बीच रहते हुए उन्हें जनजाति समाज के जीवन को गहनता से जानने का अवसर मिला। जनजाति समाज पर लिखी, अंग्रेजी में अनुवादित उनकी पुस्तक ‘द ट्राइबल कल्चर ऑफ गरासिया’ को यूनेस्को पुरस्कार मिला। 30 से अधिक पुस्तकों के लेखक व अनुवादक शेखावत भारतीय साहित्य अकादमी सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।जनजाति समाज की जीवनशैली तथा उनकी संस्कृति पर राजस्थानी भाषा में लिखी उनकी पुस्तकें भाखर रा भौमिया, आड़ावळ अरड़ायौ पूरे देश में चर्चित हुईं।शेखावत राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में मान्यता दिलाने के लिए पिछले 35 सालों से संघर्ष कर रहे हैं।

श्याम सुंदर पालीवाल को राजसमंद जिले के ग्राम पिपलांत्री में जलग्रहण व पर्यावरण संरक्षण की विभिन्न परियोजनाओं, नवाचारों, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान तथा वृक्षारोपण जैसे उल्लेखनीय सामाजिक कार्यों के लिए पद्म श्री दिया जाएगा। श्यामसुंदर पालीवाल 2005 में पिपलांत्री के सरपंच बने थे। 2006 में उनकी 16 साल की बेटी किरण का निधन हो गया था। इसके बाद उन्हाेंने बेटी बचाओ अभियान पर काम शुरू किया। तब से बेटी जन्म पर इस पंचायत में 111 पौधे लगाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त भी वे ग्रामीणों के सहयोग से तरह तरह के नवाचार कर रहे हैं। पिपलांत्री में पहाड़ों से बहते पानी को रोकने के लिए मेढ़बंदी की गई है, डेम बनाए गए हैं। इसका असर यह हुआ है कि अब पंचायत में 40 फीट पर पानी उपलब्ध है। इन प्रयासों से गांव के आसपास की बंजर पहाड़ियां अब हरी-भरी हो चुकी हैं। इससे क्षेत्र में वन्य जीवों की संख्या बढ़ी है। गांव की खाली पड़ी जमीन पर आंवला व एलोवेरा के पेड़ लगाए गए हैं। इस समय गांव में 26,400 आंवले के पेड़ हैं। साफ-सफाई को लेकर 2007 में पिपलांत्री को स्वच्छ ग्राम पंचायत का पुरस्कार मिल चुका है। पिपलांत्री की सफलता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने राज्य की 200 से अधिक पंचायतों को पिपलांत्री की तर्ज पर विकसित करने की योजना चलाई है।

पद्म श्री से अलंकृत होने वालों में राजस्थान से तीसरा नाम लाखा खान का है। राजस्थान के जोधपुर जिले के बाप तहसील के रनेरी गांव में लंगा समुदाय के लाखा खान को यह पुरस्कार उनकी संगीत साधना का परिणाम है। वे सिंधी सारंगी बजाते हैं। पारंपरिक संगीतकारों के परिवार में जन्में लाखा खान को कम उम्र में ही उनके पिता थारू खान ने और बाद में उनके चाचा मोहम्मद खान ने मंगणियारों के मुल्तान स्कूल की रचनाओं का प्रशिक्षण दिया। संगीत के क्षेत्र में उनका सार्वजनिक प्रदर्शन 60 और 70 के दशक के उत्तरार्ध में शुरू हुआ। वे यूरोप, ब्रिटेन, रूस और जापान सहित विश्व के कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। लाखा खान मांगणियार समुदाय में प्यालेदार सिंधी सांरगी बजाने वाले एकमात्र कलाकार हैं। हिन्दी, मारवाड़ी, सिंधी, पंजाबी और मुल्तानी सहित छह भाषाओं में गाने वाले लाखा खान को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित देश विदेश में कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। लाखा खान ने जटिल वाद्ययंत्र सिंधी सारंगी में विशेषज्ञता प्राप्त की। उन्हें वर्ष 2017 में मारवाड़ रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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