राणा सांगा को लेकर रामजीलाल सुमन का बयान और ऐतिहासिक तथ्य

राणा सांगा को लेकर रामजीलाल सुमन का बयान और ऐतिहासिक तथ्य

विवेक भटनागर

राणा सांगा को लेकर रामजीलाल सुमन का बयान और ऐतिहासिक तथ्यराणा सांगा को लेकर रामजीलाल सुमन का बयान और ऐतिहासिक तथ्य

मेवाड़ के प्रतापी शासक रहे राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह प्रथम), जिन्हें अपने अदम्य साहस और लड़ाइयों में एक भुजा, एक आँख, एक पैर गँवाने और शरीर पर अस्सी घाव झेलने के कारण इतिहास में सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है, इन दिनों फिर चर्चा में हैं। राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के भाषण में राणा सांगा को बाबर की सहायता करने के कारण ‘गद्दार’ कहे जाने से देश भर में बवाल मचा हुआ है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। इनके अनुसार, राणा सांगा ने बाबर की सहायता तो कभी नहीं की, बल्कि उन्होंने फरवरी 1527 ई. में खानवा के युद्ध से पूर्व बयाना के युद्ध में मुगल आक्रान्ता बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला अवश्य जीता था।

17 मार्च 1527 ईस्वी में खानवा के युद्ध मैदान में सिर में तीर लगने से घायल हुए राणा सांगा बसवा (दौसा-राजस्थान) में स्वस्थ होकर फिर युद्ध के मैदान में पहुंचे और बेतवा नदी के तट को जीतते हुए कालपी तक पहुंच गए। जहां 30 जनवरी 1528 को उन्हें जहर देकर मार दिया गया। इतिहास बताता है कि खानवा के पावे के बाद बाबर ने आगे कोई क्षेत्र नहीं हथियाया, लेकिन सांगा ने शक्ति संचय कर पुनः अपने क्षेत्रों को अधिकार में ले लिया।

वर्तमान विवाद सांगा के बाबर की सहायता करने के तथ्य पर है। कहा जाता है कि बाबर ने महाराणा सांगा से इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सहायता मांगी थी। इसके लिए उसने अपना दूत भी मेवाड़ राज दरबार में भेजा, लेकिन सांगा ने उसकी सहायता करने से इनकार कर दिया। इसके विपरीत सरहिंद के हाकिम दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी के चचेरे भाई ने बाबर से इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सहायता मांगी थी।

वास्तव में बाबर की सहायता करने की बात कुछ इतिहासकारों की गनगढ़ंत कहानी है, जिसका कोई प्राथमिक प्रमाण किसी के पास उपलब्ध नहीं है। लेकिन दौलत खां लोदी की ओर से बाबर को लिखे गए पत्र की प्रतियां उपलब्ध हैं।

अफगानी इतिहासकार अहमद यादगार की पुस्तक तारीख-ए-सल्तनत-ए-अफगान में लिखा गया है कि बाबर काबुल में अपने बेटे कामरान के निकाह की तैयारी में व्यस्त था। उस समय दिल्ली में सत्तासीन सुल्तान इब्राहिम लोदी का चाचा दौलत खां लोदी पंजाब का सूबेदार था। सुल्तान ने अपने चाचा को दिल्ली बुलाया। इस पर दौलत खां स्वयं नहीं जाकर अपने बेटे दिलावर खान को भेज देता है। इस नाफरमानी से चिढ़कर सुल्तान इब्राहिम लोदी ने चचेरे भाई दिलावर खां को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। दिलावर वहां से जान बचा कर भागकर लाहौर पहुंचा। इस पर दौलत खां लोदी को आगे की परेशानी दिखाई देती है। वह जानता था कि सुल्तान उसे नहीं बख्शेगा। ऐसे में इब्राहिम लोदी को दिल्ली की गद्दी से उतार कर उस पर कब्जा करना ही एक साधन बचा था, जो उसे और उसके बेटे को बचा सकता था। 

दौलत खां लोदी ने तत्काल अपने बेटे दिलावर और आलम खान को बाबर से मिलने काबुल रवाना किया। दिलावर ने काबुल में पहुंच कर चारबाग में बाबर से मुलाकात की। बाबर ने उस से पूछा, तुम ने सुल्तान इब्राहिम का नमक खाया है तो यह गद्दारी क्यों? इस पर दिलावर खां ने उत्तर दिया कि लोदियों के कुनबे ने चालीस वर्ष तक दिल्ली की सत्ता संभाली है, लेकिन सुल्तान इब्राहिम लोदी सभी अमीरों के साथ बदसलूकी करता है। पच्चीस अमीरों को उसने मौत के घाट उतार दिया है। किसी को फांसी पर लटका कर तो किसी को जला कर मार डाला। अब सभी मीर उसके दुश्मन बन गए हैं और उसकी स्वयं की जान खतरे में है। उसे अनेक अमीरों ने बाबर से सहायता मांगने भेजा है। निकाह में व्यस्त बाबर ने एक रात की मोहलत मांगी और चार बाग में इबादत की, ‘ए मौला, मुझे राह दें कि हिन्द पर हमला कर सकूं। अगर हिन्द में होने वाले आम और पान उसे तोहफे में मिलते हैं तो वह मान लेगा कि रब चाहता है कि वो हिन्द पर आक्रमण करे।

अगले दिन दौलत खां के दूतों ने उसे शहद में डूबे अधपके आम भेंट किए। यह देख बाबर उठ खड़ा हुआ और आम की टोकरी देख सजदे में झुक गया। उसने अपने सिपहसालारों को हिन्द पर कूच करने का हुक्म दिया। वहीं बाबर अपनी पुस्तक बाबरनाना में यह रिकॉर्ड छिपा कर सांगा की ओर से पत्र लिखने और हिन्द पर आक्रमण करने के न्यौते का उल्लेख करता है। इस प्रकार की कहानी सिर्फ बाबरनामा में ही मिलती है और कहीं नहीं। इसलिए बाबर का रिकॉर्ड सत्य नहीं माना जा सकता है। जबकि दौलत खां के दूतों का काबुल जाना और उसका पत्र ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में उपलब्ध है।

वहीं तजकिरत-उल वाकियात में हुमायूं का लेखक जौहर आफताबची और जहांगीर के काल में तारीख-ए-मखजने अफगना का लेखक नियामतुल्लाह दोनों ही दौलत खां लोदी के पत्र लिखने की बात का वर्णन करते हैं। जहांगीर के दरबार में 1609 में काम करने वाले नियामतउल्ला के लेखन में दिल्ली के अफगान सुल्तानों तथा अफगानी कबीलों के बारे में पर्याप्त जानकारी है। इस ग्रन्थ में सुल्तान बहलोल लोदी से लेकर इब्राहीम लोदी तक के समय का वर्णन मिलता है।

संदर्भ….

1. बाबरनामाः लेनपुन अनुदित।

2. एलियट एंड डाउसन की हिस्ट्री ऑफ इंडिया वॉल्यूम पांच में तारीख-ए-सल्तनत-ए-अफगान लेखक अहमद यादगार।

3. तजकिरत-उल-वाकियात लेखक जौहर आफताबची।

4. तारीख-ए-मखजन-ए-अफगान लेखक नियामतउल्ला।

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