राणा सांगा : हिंदू राज्य के प्रणेता और संसार के अद्वितीय योद्धा का सत्य

राणा सांगा : हिंदू राज्य के प्रणेता और संसार के अद्वितीय योद्धा का सत्य

डॉ. अभिमन्यु

राणा सांगा : हिंदू राज्य के प्रणेता और संसार के अद्वितीय योद्धा का सत्यराणा सांगा : हिंदू राज्य के प्रणेता और संसार के अद्वितीय योद्धा का सत्य

इतिहास में ‘हिन्दुपत’ के नाम से प्रसिद्ध राणा सांगा के अदम्य साहस की कथाएं सुनकर आज भी हर भारतीय की रगों में वीरता का संचार होने लगता है। पिता रायमल और माता श्रृंगार देवी के दूसरे पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले सांगा का जीवन शुरुआत से ही संघर्षों में व्यतीत हुआ। भीमलगांव की चारण देवी ने सांगा के राणा बनने की भविष्यवाणी की, जिससे उनके भाइयों ने उनसे विवाद कर लिया, जिसमें उन्होंने एक आँख गंवा दी। इसके बाद सांगा को अपना राज्य छोड़कर श्रीनगर (अजमेर) के श्रीचंद पंवार के यहां शरण लेनी पड़ी। फिर पिता की मृत्यु के पश्चात 1509 ई. में मेवाड़ के शासक के रूप में राणा सांगा का राज्याभिषेक किया गया।

वर्तमान में राणा सांगा को विवादों में घसीटकर एक सांसद द्वारा उन्हें गद्दार तक कह दिया गया, जिसके पीछे उनका तर्क है कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के लिए मुगल आक्रांता बाबर को राणा सांगा ने आमंत्रित किया था। इससे यह पता लगता है कि भारत में इतिहास लेखन कितना तोड़ मरोड़कर एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखा गया है। साथ ही भारत के महान वीरों पर प्रश्न उठाने वालों को न तो इतिहास की समझ है और न ही वो अध्ययन करने का परिश्रम करना चाहते है।

अब प्रश्न यह उठता है कि यह बात कहां से आई कि राणा सांगा ने बाबर को बुलावा भेजा था। इस तथ्य को बढ़ावा देने के पीछे मुख्य रूप से वामपंथी इतिहासकारों का योगदान है, जिन्होंने उस समय का इतिहास लिखने में सिर्फ बाबरनामा को आधार बनाया जो कि बाबर द्वारा लिखी गई पुस्तक है। इसमें बाबर लिखता है, ‘जब हम काबुल में थे तो राणा सांगा ने अपने दूत भेजे तथा हमें शुभकामनाएं दीं। साथ ही यह प्रस्ताव रखा कि अगर हम दिल्ली पर आक्रमण करते हैं तो, वह उस समय आगरा पर आक्रमण करेगा। मैंने इब्राहीम लोदी को हरा दिया, दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया, लेकिन राणा सांगा द्वारा सहायता करने के कोई संकेत नहीं मिले।’ इसके आधार पर राणा सांगा को दोषी साबित कर दिया जाता है, जबकि सत्य इसके विपरीत है।

अब अगर हम इतिहास की और पड़ताल करें तथा जी.एन. शर्मा द्वारा लिखित ग्रन्थ “मेवाड़ और मुगल सम्राट” का अध्ययन करें तो हम पाते हैं कि बाबर द्वारा उल्लेखित यह कथन कि राणा सांगा ने बाबर को बुलावा भेजा था, सरासर मिथ्या साबित होता है और सच्चाई यह निकल कर आती है कि राणा सांगा ने नहीं, बल्कि स्वयं बाबर ने ही राणा को शक्तिशाली समझते हुए उसकी मित्रता और सहायता प्राप्त करने के लिए अपने दूत को चित्तौड़ भेजा था। इसकी जानकारी हमें राणा के जीवन पर मेवाड़ के राजपुरोहितों द्वारा लिखे गए प्रतिदिन के वृत्तांतों से मिलती है, जो कि इतिहास लेखन के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं, जिनको वामपंथी इतिहासकारों ने नकार दिया। इन्हें एक विदेशी आक्रांता द्वारा लिखी पुस्तक पर तो विश्वास है, लेकिन हिंदुस्तान के राजपुरोहितों द्वारा लिखे गए वृत्तांतों पर संदेह है। यह तो वही बात हो गई कि कोई भारतीय पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर तो विश्वास करें, लेकिन भारतीय एजेंसी रॉ पर संदेह कर उसकी बातों को नकार दे। अब यह किस तरह का इतिहास लेखन है, यह समझ से परे है।

इब्राहिम लोदी के विरुद्ध संधि करना बाबर की विवशता थी, न कि राणा सांगा की, क्योंकि हिंदुस्तान बाबर के लिए नया क्षेत्र था तथा दिल्ली सल्तनत की शक्ति भी बाबर से अधिक थी। इसलिए सामान्य समझ तो यही कहती है सहायता के लिए बाबर राणा के पास आयेगा, न कि राणा सांगा बाबर के पास अपने दूत भेजेंगे।

इसके अलावा राणा सांगा जब 1517 ई. में ‘खतौली के युद्ध’ में इब्राहीम लोदी को हराते हैं और उसके शहजादे को बंदी बना लेते हैं तथा 1518 ई. में दुबारा ‘बाड़ी के युद्ध’ में इब्राहीम लोदी को धूल चटा देते हैं। साथ ही दिल्ली सल्तनत अपनी अंतर्कलहों के कारण भी कमजोर होती जा रही थी, इब्राहीम लोदी के अमीर ही उससे नाराज होकर विद्रोह के लिए तैयार थे, ऐसी परिस्थिति में अब एक सामान्य समझ वाला व्यक्ति भी अनुमान लगा सकता है कि जब राणा सांगा अपने दम पर ही दिल्ली सल्तनत को ढेर कर सकते थे, तो वो बाबर को सहायता करने के लिए क्यों बुलावा भेजेंगे? यह तो समरकंद हार चुके बाबर की ही महत्वाकांक्षा थी कि वह हिंदुस्तान पर आक्रमण करे और अपना राज्य स्थापित करे। साथ ही बाबर राणा सांगा द्वारा वादा खिलाफी की कहानी इसलिए भी गढ़ता है, जिससे वह सांगा के विरुद्ध आक्रमण को वैधता प्रदान कर सके। चूंकि बाबर भलीभांति जानता था, कि दिल्ली सल्तनत को जीतने के बाद सबसे शक्तिशाली शासक राणा सांगा ही बचते हैं, जिन्हें समाप्त किए बिना वह हिंदुस्तान पर अपना शासन स्थापित नहीं कर पाएगा।

इसके अलावा बाबर पर इसलिए भी विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि जब वह आलम खान लोदी एवं दौलत खान लोदी के साथ किए गए समझौते का पूरा वर्णन देता है तो, उसके अनुसार राणा सांगा के साथ अगर कोई समझौता हुआ था तो वह उसकी सम्पूर्ण जानकारी क्यों नहीं देता है।

साथ ही अपनी पुस्तक में बाबर हमेशा सच नहीं बोल रहा है। एक स्थान पर वह लिखता है कि इब्राहिम लोदी के विरुद्ध उसके पास सिर्फ 12 हजार सैनिक थे, जबकि आधुनिक स्रोतों से यह सिद्ध हो चुका है, कि पानीपत की लड़ाई में उसके पास बहुत अधिक सैनिक थे। साथ ही बाबरनामा बाबर के बारे में पूर्ण लेखा जोखा प्रस्तुत नहीं करती है। प्राप्त हस्त लिपियों से उनके बीच काफी अंतर का पता चलता है क्योंकि ये हस्तलिपियां केवल टुकड़ों में ही कहानी प्रस्तुत करती हैं। कथानक बीच-बीच में कई जगह से टूटा हुआ है और 1509 से 1519 और 1520 से 1529 तक का ब्यौरा पुस्तक में कहीं भी नहीं दिया गया है। इसलिए बाबरनामा पर पूर्ण रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता।

अंत में एक तथ्य यह भी उभर कर आता है, कि समकालीन किसी भी लेखक ने चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, उसने इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि राणा सांगा ने बाबर के पास दूत भेजे थे। तो सिर्फ बाबर के कथन को ही अंतिम सत्य मान लेना कहां की समझदारी है।

बाबर के सेनापति मेहदी ख्वाजा ने बयाना के दुर्ग पर अधिकार कर लिया, तब 16 फरवरी 1527 को बयाना के युद्ध में राणा सांगा का कहर बाबर की सेना पर टूट पड़ा, जिसके कारण मुगल सैनिकों की हड्डियां तक कांप उठी थीं और सांगा ने यह युद्ध जीत कर बयाना के दुर्ग पर कब्जा कर लिया। अब राणा सांगा के अधिकार क्षेत्र में मध्य भारत के महत्वपूर्ण केंद्र चित्तौड़, रणथंबोर और बयाना आ गए थे। इस युद्ध के महत्व को भी इतिहासकारों ने कम आंका है, जबकि इस युद्ध के पश्चात राणा सांगा मध्य भारत की सबसे बड़ी शक्ति बन चुके थे। जिस राणा सांगा ने मुगल सेना को धूल चटा दी, वो इब्राहिम लोदी के विरुद्ध अपने लिए बाबर से सहायता मांगेगा? यह बात बचकानी नहीं तो और क्या है?

बयाना के युद्ध में राणा की विजय एवं पराक्रम से बाबर की सेना में दहशत फैल गई थी। बयाना की हार के बाद एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि खानवा के युद्ध में बाबर की जीत पर संदेह है। बाबर इतना हतोत्साहित हो गया कि वह खुदा की शरण में जाने को विवश हो गया और प्रतिज्ञा की कि वह कभी शराब नहीं पिएगा तथा इस युद्ध में उसने हिंदुओं के विरुद्ध जेहाद की घोषणा कर दी। इस बात से स्पष्ट है कि राणा सांगा के खौफ से बाबर भी अपने बाहुबल पर विश्वास खो चुका था।

इस तरह हम देखते हैं कि राणा सांगा भारत ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास के भी सबसे पराक्रमी योद्धाओं में से एक हैं, जिनमें एक हाथ, एक पैर तथा एक आंख गंवा देने के पश्चात भी इतना शौर्य एवं साहस था कि वे अकेले ही किसी सेना से कम नहीं थे। अपनी मातृभूमि की रक्षा एवं हिंदू राज्य की स्थापना के लिए मध्यकालीन भारत के वे एकमात्र राजा थे, जिन्होंने उस समय के सभी छोटे बड़े राजा महाराजाओं में एकता की भावना जगाकर उन्हें एकजुट कर विदेशी मुगल आक्रांता के विरुद्ध युद्ध लड़ने के लिए तैयार किया था। इसलिए राणा सांगा पर प्रश्न उठाने वालों को पहले इतिहास का सही से अध्ययन करना चाहिए। सूरज की ओर मुंह करके थूकने से सूरज की चमक कम नहीं हो जाती।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *