नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से देश आत्मनिर्भर बनेगा

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से देश आत्मनिर्भर बनेगा

डॉ. प्रहलाद कुमार गुप्ता

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से देश आत्मनिर्भर बनेगा

भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई, 2020 को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप को मंजूरी दी गई है। अभी यह नीति जारी नहीं की गई है किन्तु इसके पक्ष और विपक्ष में लोगों की प्रतिक्रियाएं आनी प्रारम्भ हो गयी हैं। अधिकांश लोगों ने इस नीति को अच्छा बताया है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसका विरोध कर रहे हैं। अच्छा बताने वाले लोग इसके अनेक लाभ गिना रहे हैं वहीं विरोध करने वाले लोग इसकी कमियां न बता कर केवल यह कह रहे हैं कि इस नीति से आरएसएस का एजेण्डा थोपा जायेगा और शिक्षा का भगवाकरण किया जायेगा। अच्छा होता ये विरोध करने वाले लोग नीति के उन बिन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित करते जिनसे विद्यार्थियों और भारत के भविष्य के लिये कोई हानि पहुंचने की सम्भावना होती।

​देश में अभी जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति चल रही है, वह 1986 में राजीव गांधी सरकार के दौरान लागू की गई थी जिसमें 1992 में कुछ बदलाव किये गये थे। बदलते समय की जरूरतों को पूरा करने, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, नवाचार और शोध को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिये नई शिक्षा नीति की आवश्यकता है।

​देश की स्वतंत्रता से लेकर वर्ष 1985 तक शिक्षा से संबंधित विभाग का नाम शिक्षा विभाग या शिक्षा मंत्रालय था और मंत्री को शिक्षा मंत्री कहा जाता था। वर्ष 1986 में राजीव गांधी सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करते समय मंत्रालय का नाम मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया था। भारतीय मूल्यों के अनुसार मानव को संसाधन के रूप में नहीं माना जाता है इसलिये इस नाम को लेकर भारतीय शिक्षण मंडल ने वर्ष 2018 के अधिवेशन में आपत्ति जताई थी।

​नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी पाठ्यक्रमों में बदलाव होगा। इसे 2 भागों में समझ सकते हैं, पहली स्कूली शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक) एवं दूसरी विश्वविद्यालयी शिक्षा (उच्च शिक्षा)। स्कूली शिक्षा में अभी 10+2 शिक्षा प्रणाली है जिसमें 5-6 वर्ष के बच्चे का पहली कक्षा में प्रवेश होता है। कक्षा 5 तक प्राथमिक शिक्षा, कक्षा 6 से 8 तक उच्च प्राथमिक, कक्षा 9-10 माध्यमिक और कक्षा 11-12 वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा कहा जाता है। कक्षा 10 तक सभी के सामान्य समान विषय होते हैं। कक्षा 11 से वैकल्पिक विषय चुनने होते हैं।

​अभी तक सरकारी स्कूल पहली कक्षा से शुरू होते हैं। लेकिन नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद पहले बच्चे को पांच साल के फाउंडेशन स्टेज से गुजरना होगा। फाउंडेशन स्टेज के आखिरी दो साल पहली कक्षा और दूसरी कक्षा के होंगे। पांच साल के फाउंडेशन स्टेज के बाद बच्चा तीसरी कक्षा में जाएगा। अर्थात सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा से पहले बच्चों के लिए 5 लेवल और बनेंगे।

​नई शिक्षा नीति 2020 के अनुसार स्कूली शिक्षा में 5+3+3+4 वर्षीय पाठ्यक्रम होंगे। पहला स्टेज 3 से 6 साल तक के बच्चों का 5 वर्ष का पाठ्यक्रम प्री-प्राईमरी होगा जिसमें उन्हें खेल के तरीकों से सिखाया जायेगा। इसके लिये शिक्षकों का प्रशिक्षण भी अलग तरह का होगा। इसमें तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। प्री-प्राइमरी शिक्षा के लिए एक विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा।

​दूसरी स्टेज तीन साल का कक्षा 3 से 5 तक का होगी। इसके बाद तीसरी स्टेज 3 साल की मिडिल स्टेज आएगी यानि कक्षा 6 से 8 तक की स्टेज। अब छठी से बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। जिसमें वे किसी खाती, धोबी या अन्य के पास जाकर सीखेंगे। इसके अतिरिक्त छठी कक्षा से ही बच्चों को परियोजना आधारित चीजें सिखाई जाएंगी। जिसमें कोडिंग भी सिखाई जायेगी। चौथी स्टेज (कक्षा 9 से 12वीं तक की) 4 साल की होगी। इसमें छात्रों को विषय चुनने की स्वतंत्रता रहेगी। विज्ञान या गणित के साथ फैशन डिजाइनिंग भी पढ़ने की आजादी होगी।

​स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव किया जायेगा। ये नये सिरे से तैयार किये जायेंगे जो पूरे देश में एक समान होेंगे। इस बात पर विशेष जोर दिया जायेगा कि कक्षा 5 तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जा सके। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भाषा थोपी नहीं जायेगी। भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। बच्चों के माता-पिता को यह भी बताया जायेगा कि स्कूल में आने की आयु से पूर्व उन्हें क्या सिखाना है। स्कूल छोड़ चुके विद्यार्थियों को फिर से मुख्य धारा में सम्मिलित करने के लिये स्कूल के इन्फ्रास्ट्रक्चर में विकास किया जायेगा। साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं जिनमें वैकल्पिक उत्तरों वाले प्रश्न-पत्र भी हो सकते हैं। बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन शिक्षक के अलावा स्वयं बच्चा एवं उसके सहपाठी भी करेंगे।

​स्कूल से जो बच्चा निकलेगा उसके पास एक वोकेशनल स्किल होगा। स्कूल के बाद कॉलेज में प्रवेश के लिये एक समान प्रवेश परीक्षा होगी जिसके लिये नेशनल एसेसमेंट सेंटर बनाये जाने की योजना है। एनसीईआरटी की सलाह से एनसीटीई टीचर्स ट्रेनिंग के लिये एक नया सिलेबस एनसीएफटीई 2021 तैयार करेगा। शिक्षण कार्य करने केलिये न्यूनतम योग्यता 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड बीएड डिग्री होगी। उच्च शिक्षा अर्थात 12वीं कक्षा के बाद की महाविद्यालय-विश्वविद्यालय की पढ़ाई में भी आमूलचूल परिवर्तन होंगे।

मल्टीपल एण्ट्री एंड एक्जिट होगा। अर्थात यदि किसी ने चार वर्षीय बी-टेक में एडमिशन लिया है और दो सेमेस्टर के बाद वह उसे छोड़ना चाहता है तो उसका साल खराब नहीं होगा । एक साल के आधार पर उसे प्रमाण-पत्र मिलेगा। इसी प्रकार दो साल पढ़ने पर डिप्लोमा मिलेगा और कोर्स पूरा करने पर डिग्री मिलेगी। और कहीं भी प्रवेश लेने के लिये ये मानदण्ड स्वीकार किये जायेंगे।

स्नातक उपाधिः अभी बीए, बीएससी जैसे ग्रेजुएशन कोर्स 3 साल के होते हैं। अब नई नीति में दो तरह के विकल्प होंगे। जो नौकरी के लिहाज से पढ़ रहे हैं उनके लिये 3 साल का ग्रेजुएशन और जो रिसर्च में जाना चाहते हैं उनके लिये 4 साल का ग्रेजुएशन, फिर एक साल पोस्ट ग्रेजुएट और 4 साल का पीएचडी। एमफिल को समाप्त कर दिया गया है।

मल्टी डिस्प्लेनरी एजुकेशन होगी। कोई स्ट्रीम नहीं होगी। कोई भी मन चाहे विषय चुन सकता है अर्थात अगर भौतिक शास्त्र में स्नातक कर रहा है और उसकी संगीत में रूचि है तो वह संगीत साथ में पढ़ सकता है। कला और विज्ञान वाला मामला अलग-अलग नहीं रखा जायेगा। यद्यपि इसमें मुख्य और द्वितीयक विषयों की व्यवस्था होगी।

कालेजों को श्रेणीबद्ध स्वायत्ता होगी। अभी एक विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालय होते हैं जिनकी परीक्षाएं विश्वविद्यालय कराता है। अब महाविद्यालय को भी स्वायत्ता दी जा सकेगी।

उच्च शिक्षा के लिये एकल नियामक बनाया जायेगा जैसे अभी यूजीसी, एआईसीटीई जैसी कई संस्थाएं उच्च शिक्षा के लिये हैं। अब सबको मिलाकर एक ही नियामक बनाया जायेगा। चिकित्सा और विधि की पढ़ाई के अलावा सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिये एकल नियामक भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया जायेगा।

देशभर के विश्वविद्यालयों के लिये शिक्षा के मानक एकसमान होंगे अर्थात केन्द्रीय विश्वविद्यालय हो अथवा राज्य विश्वविद्यालय या डीम्ड विश्वविद्यालय, सबका मानक एक जैसा होगा। ऐसा नहीं होगा कि बिहार के किसी विश्वविद्यालय में अलग तरह की पढ़ाई हो और दिल्ली विश्वविद्यालय में अलग तरह की।

कोई निजी महाविद्यालय अधिकतम कितना शुल्क ले सकेगा इसका भी निर्धारण किया जायेगा।

नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जायेगा जो विज्ञान के अलावा कला के विषयों में भी शोध परियोजनाओं को वित्त प्रदान करेगा।

आईआईटी, आईआईएम के समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) स्थापित किये जायेंगे।

शिक्षा में तकनीक के सही प्रयोग, शैक्षिक योजना, प्रशासन और प्रबंधन को कारगर बनाने तथा वंचित समूहों तक शिक्षा पहुंचाने के लिये एक स्वायत्त निकाय राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (एनईटीएफ) बनाया जाएगा।

देश की शीर्ष विश्वविद्यालयों को अपने कैम्पस खोलने की अनुमति दी जायेगी। इस प्रकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य-मुख्य बिन्दुओं के अध्ययन से ही यह ज्ञात होता है कि यह पूर्ण रूप से राष्ट्र हित में है। इसमें केवल किताबी ज्ञान न होगा, इसमें विद्यार्थी केवल एक ही विषय पर निर्भर नहीं रहेगा। वह प्रारंभ से ही तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा सीखेगा और अध्ययन उपरांत उसके पास कई विकल्प होंगे। वह चाहे तो नौकरी कर सकेगा अथवा शोध के क्षेत्र में कार्य कर सकेगा अथवा अपना स्वयं का व्यवसाय कर सकेगा। इस प्रकार वह केवल नौकरी के भरोसे न रह कर अन्य विकल्पों का लाभ ले सकेगा। देश में तकनीकी और व्यावसायिक क्षेत्र में नवाचार होने से कार्यदक्षता बढ़ेगी, संसाधनों का विकास होगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार काम मिल सकेगा तो बेरोजगारी की समस्या नहीं रहेगी और देश विकास की ओर अग्रसर बढ़ते हुए प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा।

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