ध्वज समिति की अनुशंसा, भगवा रंग का हो राष्ट्र ध्वज
राष्ट्र ध्वज की निर्माण कथा -1
लोकेन्द्र सिंह
ध्वज समिति की अनुशंसा, भगवा रंग का हो राष्ट्र ध्वज
ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है। ध्वज, आक्रमण के समय में पराक्रम का, संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देता है। इसलिए सदियों से ध्वज हमारे साथ रहा है। इतिहास में जाकर देखते हैं तो हमें ध्यान आता है कि लोगों को गौरव की अनुभूति कराने के लिए कोई न कोई ध्वज हमेशा रहा है। भारत के सन्दर्भ में देखें तो यहाँ की सांस्कृतिक पहचान ‘भगवा’ रंग का ध्वज रहा है। आज भी दुनिया में भगवा रंग भारत की संस्कृति का प्रतीक है, अर्थात सांस्कृतिक पताका भगवा ध्वज है। वहीं, राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्र ध्वज ‘तिरंगा’ भारत की पहचान है।
भारत के ‘स्व’ से कटे हुए कुछ लोगों एवं विचार समूहों को ‘भगवा’ से परेशानी होती है। इसलिए वे भगवा ध्वज को नकारते हैं। परन्तु उनके नकारने से भारत की सांस्कृतिक पहचान को भुलाया तो नहीं जा सकता। राष्ट्रध्वज के रूप में ‘तिरंगा’ को संविधान द्वारा 22 जुलाई, 1947 को स्वीकार किया गया। उससे पहले विश्व में भारत की पहचान का प्रतीक ‘भगवा’ ही था। स्वतंत्रता संग्राम के बीच एक राजनीतिक ध्वज की आवश्यकता अनुभव होने लगी। क्रांतिकारियों से लेकर अन्य स्वतंत्रता सेनानियों एवं राजनेताओं ने 1906 से 1929 तक अपनी-अपनी कल्पना एवं दृष्टि के अनुसार समय-समय पर अनेक झंडों को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किया। इन्हीं में वर्तमान राष्ट्र ध्वज तिरंगे का आविर्भाव हुआ. स्वतंत्रता आन्दोलन का साझा मंच बन चुकी कांग्रेस ने 2 अप्रैल, 1931 को कराची में आयोजित कार्यसमिति की बैठक में राष्ट्रीय ध्वज के विषय में समग्र रूप से विचार करने, तीन रंग के ध्वज को लेकर की गई आपत्तियों पर विचार करने और सर्वस्वीकार्य ध्वज के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए सात सदस्यों की एक समिति बनाई। समिति के सदस्य थे – सरदार वल्लभ भाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. पट्टाभि सीतारमैया, डॉ. ना.सु. हर्डीकर, आचार्य काका कालेलकर, मास्टर तारा सिंह और मौलाना आजाद।
उल्लेखनीय है कि पिंगली वेंकैया ने राष्ट्रध्वज का जो प्रारंभिक अभिकल्प (डिजाइन) प्रस्तुत किया, उसमें लाल और हरा, दो ही रंग थे। कांग्रेस के दृष्टिकोण और नीति के कारण स्वाभाविक ही लोगों ने इन दोनों रंगों को हिन्दू और मुस्लिम समुदाय से जोड़कर देखा। जबकि दोनों रंगों के पीछे वेंकैया की भावना हरे रंग को समृद्धि और लाल रंग को स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक के रूप में चित्रित करने की थी। बाद में शांति और अहिंसा के प्रतीक के रूप में सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव मिला। जिस पर वेंकैया ने सबसे ऊपर पतली सफेद पट्टी, बीच में हरी पट्टी और सबसे नीचे लाल पट्टी रखकर तिरंगे को आकार दिया। कांग्रेस नेताओं ने सफेद, हरा और लाल रंगों की पट्टी को क्रमश: ईसाई, इस्लाम और हिन्दू धर्म के प्रतीक के रूप में व्याख्या करके तिरंगे को लेकर असहमतियां निर्मित कर दीं। सिक्ख समुदाय ने इस पर आपत्ति दर्ज की और पीले रंग को ध्वज में शामिल करने की मांग महात्मा गाँधी से की। अन्य व्यक्तियों एवं संगठनों की ओर से भी आपत्तियां आ रहीं थीं।
ध्वज समिति ने उपरोक्त आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए देशभर से सुझाव प्राप्त करने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की, जिसमें शामिल तीन प्रश्न इस प्रकार थे –
- क्या आपके प्रांत में लोगों के किसी समूह या समुदाय के बीच राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन के संबंध में कोई भावना है, जिसे आपकी राय में समिति द्वारा विचार किया जाना चाहिए?
- ध्वज को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए क्या आपके पास कोई विशिष्ट सुझाव है?
- क्या वर्तमान में प्रचलित ध्वज के डिजाइन में कोई दोष या खामी है, जिस पर आप ध्यान देने की मांग करते हैं?
ध्वज समिति ने आन्ध्र, बिहार, बॉम्बे (सिटी), कर्नाटक, सिंध, तमिलनाड़, उत्कल और उत्तर प्रदेश की प्रांतीय कांग्रेस समितियों सहित अन्य समितियों को उक्त प्रश्नावली भेजकर व्यापक स्तर पर सुझाव एकत्रित किये। प्रांतीय कांग्रेस समितियों एवं अन्य से प्राप्त सुझावों का सब दृष्टि से विचार कर समिति ने सर्वसम्मति से अपना जो प्रतिवेदन दिया, उसमें लिखा – “हम लोगों का एक मत है कि अपना राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए। भारत के सभी लोगों का एक साथ उल्लेख करने के लिए उन्हें सर्वाधिक मान्य केसरिया रंग ही हो सकता है। अन्य रंगों की अपेक्षा यह रंग अधिक स्वतंत्र स्वरूप का तथा भारत की पूर्व परंपरा के अनुकूल है”। निष्कर्ष के रूप में उन्होंने आगे लिखा – “भारत का राष्ट्रीय ध्वज एक रंग का हो और उसका रंग केसरिया रहे तथा उसके दंड की ओर नीले रंग में चर्खे का चित्र रहे”। समिति ने यह भी कहा था कि तीन रंग के ध्वज से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि पर्शिया और बुल्गारिया का ध्वज भी इन्हीं तीन रंग की पट्टियों वाला है। भारत का ध्वज एक रंग का होगा तो इस प्रकार का भ्रम भी उत्पन्न नहीं होगा।
ध्वज समिति का यह प्रतिवेदन राष्ट्रीय एकात्मता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। समिति के प्रस्ताव से स्पष्ट होता है कि ‘भगवा ध्वज’ स्वाभाविक रूप से इस देश का ध्वज है। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि विभिन्न प्रान्तों की कांग्रेस समितियों से प्राप्त सुझावों के उपरांत ध्वज समिति जिस निर्णय पर पहुंची, उसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई-अधिवेशन में स्वीकार नहीं किया गया। कांग्रेस कार्यसमिति ने पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार किये गए तिरंगे को ही आंशिक परिवर्तन के साथ राष्ट्र ध्वज के रूप में मान्यता दी। विभिन्न सुझावों के आधार पर भगवा रंग को सबसे ऊपर कर दिया गया, मध्य में सफ़ेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी. इस ध्वज पर बीच में चरखा अंकित कर दिया गया।
स्मरण रखें कि इस ध्वज समिति में उस समय के कांग्रेस के प्रभावशाली नेता शामिल थे। भगवा रंग के आयताकार ध्वज को राष्ट्र ध्वज के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानने वाले इस प्रस्ताव पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, मास्टर तारा सिंह और मौलाना आज़ाद की भी सहमति थी। इसलिए भगवा ध्वज को लेकर आपत्ति करने वाले लोगों को अपनी दृष्टि को विस्तार देना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने ध्वज समिति के प्रस्ताव पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने प्रयास किये कि कांग्रेस की कार्यसमिति में राष्ट्र ध्वज को लेकर समिति के सुझाव को स्वीकार कर लिया जाये। डॉ. हेडगेवार संघ की स्थापना से पूर्व नागपुर कांग्रेस के प्रभावशाली नेता थे, इसलिए कांग्रेस में उनका गहरा संपर्क था। डॉ. हेडगेवार को इस बात की आशंका थी कि कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में ध्वज समिति के इस सुझाव को अस्वीकार किया जा सकता है। ऐसी स्थिति को टालने के लिए डॉ. हेडगेवार सक्रिय हो गए। लोकनायक बापूजी अणे कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य थे। ना.ह. पालकर ने पुस्तक ‘डॉ. हेडगेवार चरित्र’ में लिखा है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक दिल्ली में होने वाली थी और लोकनायक अणे भी उसमें भाग लेने दिल्ली जाने वाले थे। वे केसरिया रंग के पक्षधर नहीं थे, भगवा रंग के पक्षधर थे। डॉ. हेडगेवार उनके पास गए और उन्हें समझाया कि केसरिया और भगवा रंग कोई दो रंग नहीं हैं। इनमें बहुत ही मामूली-सा अंतर है, मूलत: वे एक ही हैं। दोनों ही लाल एवं पीले रंग के सम्मिश्रण हैं। केसरिया रंग में लाल की तुलना में पीला रंग थोड़ा सा अधिक होता है और भगवा रंग में पीले की अपेक्षा लाल रंग थोड़ा सा अधिक होता है। अत: केसरिया ध्वज के समर्थन का अर्थ भगवा ध्वज का ही समर्थन है। डॉ. हेडगेवार ने आगे कहा – “यद्यपि काफी अध्ययन और खोज के उपरांत समिति ने केसरिया रंग का सुझाव दिया है, पर गांधी जी के सम्मुख सब मौन हो जाएंगे। गांधी जी ने केसरिया को अमान्य कर तिरंगे को ही बनाए रखने का आग्रह किया, तो ये नेता मुंह नहीं खोलेंगे। अत: आपको आगे आकर निर्भयतापूर्वक अपने पक्ष का प्रतिपादन करना चाहिए”।
किन्तु डॉ. हेडगेवार के इन प्रयत्नों का कोई परिणाम नहीं निकला। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई-अधिवेशन में जब ध्वज समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया तो उसने उसे अमान्य करके तिरंगे को बनाये रखने का निर्णय लिया। इतना अवश्य किया कि गहरे लाल रंग के स्थान पर केसरिया रंग मान लिया तथा इस रंग का क्रम सबसे ऊपर कर दिया। इसके पूर्व लाल रंग की पट्टी-सबसे नीचे रहती थी। साथ ही यह भी बताया गया कि तीन रंग विभिन्न सम्प्रदायों के द्योतक न होकर गुणों के प्रतीक हैं।
समिति ने यूँ ही नहीं कहा था कि केसरिया अर्थात भगवा रंग प्राचीन काल से हमारी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा होने के कारण अधिक स्वीकार्य है। ‘भगवा ध्वज’ प्राचीनतम समय से भारत की पहचान रहा है। महाभारत में अर्जुन के रथ पर भी ‘भगवा ध्वज’ विराजमान रहा। भगवा रंग दक्षिण के चोल राजाओं, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, महाराज छात्रसाल, गुरु गोविंद सिंह और महाराजा रंजीत सिंह की पराक्रमी परंपरा और सदा विजयी भाव का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है। भगवा रंग उगते हुए सूर्य के समान है जो ज्ञान और कर्मठता का प्रतीक है। भगवा ध्वज यज्ञ की ज्वाला के अनुरूप होने के कारण त्याग, समर्पण, जन कल्याण की भावना, तप, साधना आदि का आदर्श रखता है। यह समाज हित में सर्वस्व अर्पण करने का प्रतीक है। स्वामी रामतीर्थ भगवा रंग के बारे में कहते हैं – “एक दृष्टि से मृत्यु तथा दूसरी दृष्टि से जन्म ऐसा दोहरा उद्देश्य यह रंग पूरा करता है।”
भगवा ध्वज का सतयुग से कलयुग का संपूर्ण इतिहास देखने के बाद यह ध्यान में आता है कि हिन्दू समाज और भगवा ध्वज एक-दूसरे से अलग करना संभव नहीं है। हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति, हिन्दू जीवन पद्धति, हिन्दू तत्व ज्ञान, इन सबका भगवा ध्वज से अटूट नाता है। त्याग, वैराग्य, निःस्वार्थ वृत्ति, शौर्य, देश प्रेम ऐसे सब गुणों की प्रेरणा देने का सामर्थ्य भगवा ध्वज में है। संभवतः इसलिए ही जब राष्ट्रध्वज पर विचार किया जा रहा था, तब ‘भगवा ध्वज’ पर ही सबकी सहमति बनी थी।