लक्ष्य की पूजा परिश्रम से ..
डॉ. श्रीकांत
लक्ष्य की पूजा परिश्रम से, कठिन कर्त्तव्य करने से।
प्रशंसा कीर्ति-यश छाया, रखी है दूर अपने से॥धृ॥
कार्यकर्त्ता भी यही संकल्प – रथ, लेकर चला घर से।
प्रेरणा-सामर्थ्य-साहस-धुन, सभी कुछ आप अन्दर से॥
खोजकर राहें स्वयं, साकार सपने आप अपने से॥1॥
लक्ष्य की पूजा परिश्रम से………..।
लक्ष्य वैश्विक, भाव यह कल्याण का, हमने रखा सपना।
धर्म रक्षित परं वैभव राष्ट्र का, यह ध्येय है अपना॥
कर्म-पथ आरूढ़ निशि-दिन के पराक्रम से, न झुकने से॥2॥
लक्ष्य की पूजा परिश्रम से………..।
मातृभू यह भरत-भू आदर्श अपना विश्व में अनुपम।
पालना यह मनुज का शोभित निरन्तर स्वर्ग सुन्दरतम॥
वन्दनीया – पूजनीया भूमि पूजा नित्य करने से॥3॥
लक्ष्य की पूजा परिश्रम से………..।
उच्च है यदि गगन में ध्वज, मातृभू का यश प्रसारा है।
समझ लें भू-पुत्र-पुत्री आचरण की श्रेष्ठ धारा है॥
प्रगति उनके अनुसरण से, पूर्वजों के कृत्य करने से॥4॥
लक्ष्य की पूजा परिश्रम से………..।