लघुकथा – तबादला

लघुकथा - तबादला

शुभम वैष्णव

लघुकथा - तबादला
सरिता दीदी तुम तो बड़े दिन बाद दिखाई दी हो आजकल कहां व्यस्त रहती हो – वर्षा ने सरिता से पूछा।
कहीं नहीं वर्षा, बस आजकल विद्यालय से फुर्सत ही कहां मिलती है!
अरे यहां से सुनारी  ही तो जाना पड़ता है ना तुम्हें, वैसे भी सुनारी तो तुम्हारा ननिहाल है? लगता है आजकल तुम स्कूल के बाद अपने मामा जी के घर ही रुक जाती हो – वर्षा ने कहा।
शायद तुम्हें पता नहीं वर्षा, मेरा तो 2 महीने पहले ही डूंगरपुर तबादला हो गया है।
पर अचानक से कैसे? वर्षा ने विस्मय भाव से पूछा।
यह सब विधायक साहब  की मेहरबानी से हुआ है। मैंने और मेरे परिवार ने चुनाव में विधायक साहब को वोट ना देकर दूसरे दल के प्रतिनिधि को वोट दिया था। यही बात बस कुछ लोगों को हजम नहीं हुई और उन्होंने यह बात  विधायक जी  तक पहुंचा दी। बस फिर क्या विधायक जी ने अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल करके मेरा तबादला डूंगरपुर जैसे दूरस्थ स्थान पर करवा दिया ताकि मैं और मेरा परिवार परेशान हो सकें।
अच्छा तो अपनी मर्जी से अपने वोट का इस्तेमाल करने की इतनी बड़ी सजा मिली तुम्हें और तुम्हारे परिवार को? वर्षा ने आक्रोशित भाव से कहा।
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