लता मंगेशकर, स्वातंत्र्यवीर सावरकर जिनकी प्रेरणा थे
अनन्य
पिछले कुछ दिनों से समूचा देश भारत रत्न लता मंगेशकर जी के लंबी बीमारी के बाद देहावसान पर शोक व्यक्त कर रहा है। भारत की स्वर कोकिला कही जाने वाली लता जी ने ऐसे कई गीत गाए जो हमें हमारे सहस्त्रों स्वतंत्रता सेनानियों और भारतीय सैनिकों के अद्वितीय बलिदान की याद दिलाते हैं। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के जीवन पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर का गहरा प्रभाव रहा, चाहे वह सावरकर जी के अंतर्जातीय रात्रिभोज में उनका नियमित रूप से परिवार के साथ जाना हो या “जयोस्तुते”, “सागर प्राण तड़मड़ला” जैसी उनकी कविताओं का स्वर्णिम स्वरों में गायन करना हो, या फिर सावरकर जी द्वारा लता जी के पिता श्री दीनानाथ मंगेशकर के लिए ब्रिटिश विरोधी नाटक “सांव्यस्ता खडग” का लिखना हो। लता जी सदैव समाज सेवा से जुड़ी रहीं। उनकी राजनीति में भी रुचि थी, लेकिन सावरकर ही थे, जिन्होंने संगीत में ही जतन कर आगे बढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। वृद्धावस्था के दिनों में भी, वे हमेशा उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष लोगों को सीख दिया करती थीं जो कभी भी बिना किसी कारण सूर्य समान सावरकर जी की ओर ओछे लांछन लगाते हैं।
वह कांग्रेस थी जिसने लता मंगेशकर जी के भाई हृदयनाथ मंगेशकर को आकाशवाणी से वीर सावरकर की मराठी कविता रिकॉर्ड करने के लिए पदच्युत कर दिया था। मुंबई कांग्रेस के तत्कालीन प्रमुख जनार्दन चंदुरकर ने तत्कालीन यूपीए सरकार से गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने के लिए लता जी का भारत रत्न वापस लेने की मांग की थी।
आज की परिस्थितियों में चित्त को चिंतन अवस्था में ले जाने वाला महत्वपूर्ण किंतु “पॉलिटिकली इनकरेक्ट” प्रश्न जो कि संसद में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण से पुनः मनन में आया है कि भारत राष्ट्र के लिए किसका विचार उत्तम है? क्या यह आदिकाल से व्याप्त भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने का दर्शन है या फिर नेहरू गांधी परिवार की देश के लिए सोच है?