क्या लव जिहाद विरोधी कानून संवैधानिकता के ढांचे में फिट बैठते हैं!

क्या लव जिहाद विरोधी कानून संवैधानिकता के ढांचे में फिट बैठते हैं!

लव जिहाद विरोधी कानून

रामस्वरूप अग्रवाल

क्या लव जिहाद विरोधी कानून संवैधानिकता के ढांचे में फिट बैठते हैं!

यदि कोई व्यक्ति दूसरे धर्म की लड़की से विवाह करता है तो उस व्यक्ति को संविधान कोई अधिकार नहीं देता कि वह अपनी पत्नी का धर्म परिवर्तन करे। लव जिहाद के शत-प्रतिशत मामलों में दबाव, डरा धमका कर गैर मुस्लिम लड़की का धर्म बदलवाकर मुसलमान बनाया जाता है।

लव जिहाद और उस पर कानून बनाए जाने को लेकर सर्वत्र खूब चर्चा हो रही है। भाजपा शासित राज्य सरकारें इसे कानून द्वारा दण्डनीय बनाने की घोषणा कर रही हैं। वामपंथी, मुस्लिम संगठन और तथाकथित सेक्युलरिस्ट ऐसे कानून बनाने का विरोध कर रहे हैं। वे कहते हैं कि प्रेम को प्रतिबंधित मत करो। ठीक ही कहते हैं। परन्तु, प्रेम में छल, कपट, दबाव, धर्मांतरण तो नहीं होना चाहिए। मुस्लिम संगठनों को तो आगे बढ़कर कानून बनाने के प्रयासों का स्वागत करना चाहिए। परन्तु जब वे विरोध करते हैं तो ‘दाल में काला’ या ‘दाढ़ी में तिनका’वाली बात हो जाती है।

यह भी कहा जाता है कि लव जिहाद पर रोक वाला कानून भारतीय संविधान में दिये गये ‘धर्म स्वातत्र्ंय का अधिकार’ के प्रतिकूल होगा। इस अनुच्छेद 25(1) में भारत में रहने वाले सभी लोगों को अपनी पसंद के मजहब को मानने तथा उसके अनुसार आचरण करने का अधिकार दिया गया है।

यह अधिकार पूर्ण या असीमित नहीं है। सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार, जनता का स्वास्थ्य या अन्य मौलिक अधिकार यदि विपरीत रूप से प्रभावित होते हैं तो सरकार इस ‘धर्म स्वातंत्र्य’अधिकार को नियंत्रित कर सकती है। अर्थात् यदि किसी व्यक्ति या समूह द्वारा अपने धर्म के किसी नियम या सिद्धान्त का पालन करने से सार्वजनिक व्यवस्था भंग होती है,सार्वजनिक शांति भंग होने की संभावना रहती है तो राज्य उस नियम या सिद्धान्त की पालना पर रोक लगा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा राज्यों द्वारा ‘बलपूर्वक या लालच से धर्म परिवर्तन’ को रोकने के लिए बनाये गये कानूनों को इस आधार पर संवैधानिक घोषित किया था कि इनका उद्देश्य समाज में लोक व्यवस्था को भंग होने से बचाना था। (रेव.स्टैलिस्लाव बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1977 का मुकदमा)।

अनुच्छेद 25(1) द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार दिया गया है कि वह अपने बारे में तय करे कि उसे कौन सा धर्म मानना है। परन्तु किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का धर्म तय करने का अधिकार नहीं है। ऊपर उल्लेखित ‘रेव. स्टैनिस्लाव बनाम म.प्र.’के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि किसी को भी किसी दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को धर्म बदलने के लिए विवश करता है तो वह उसके अंतःकरण की स्वतंत्रता पर सीधा आघात करता है जो कि संविधान द्वारा वर्जित है।

अतः स्पष्ट है कि यदि कोई व्यक्ति दूसरे धर्म की लड़की से विवाह करता है तो उस व्यक्ति को संविधान कोई अधिकार नहीं देता कि वह अपनी पत्नी का धर्म परिवर्तन करे। लव जिहाद के शत-प्रतिशत मामलों में दबाव, डरा धमका कर गैर मुस्लिम लड़की का धर्म बदलवाकर मुसलमान बनाया जाता है। बहुधा लड़की परिस्थितियों से समझौता कर लेती है। उससे कहलवा दिया जाता है कि उसने अपनी मर्जी से ही धर्म बदला है।

यदि लड़की स्वेच्छा से धर्म बदल रही है तो भी यह देखना होगा कि क्या वह केवल विवाह करने के लिए तो अपना धर्म नहीं बदल रही। क्या वास्तव में ही उसने मोहम्मद साहब, कुरान तथा हदीस आदि को समझ लिया है या जान लिया है और इसको प्रिय भी हैं, इस कारण से धर्म बदल रही है। यदि केवल विवाह के लिए धर्म बदल रही है तो यह अनुचित होगा।

संविधान के अनुच्छेद 25(2) के अनुसार किसी भी धर्म के आवश्यक तत्व ही अनुच्छेद 25(1) का संरक्षण प्राप्त करने के हकदार है। धर्म से जुड़ी लौकिक क्रियाओं या लौकिक बातों में परिवर्तन राज्य द्वारा किया जा सकता है। विवाह में सप्तपदी या हवन या निकाह में वर वधू की एक ही बैठक में सहमति धर्म के आवश्यक तत्व हैं परन्तु वर वधु की उम्र या अन्य बातें नहीं। राज्य इस संबंध में कानून बना सकता है। वैसे भी यदि दो भिन्न धर्मावलम्बी प्रेम विवाह करते हैं तो उन्हें ‘विशेष विवाह अधिनियम’ के अंतर्गत सिविल-विवाह करना चाहिए तथा एक दूसरे के धर्म को सम्मान देते हुए जीवन बिताना चाहिए।

चूंकि लव जिहाद को रोकने वाले कानून में हिन्दू या मुस्लिम जैसे शब्द नहीं होते तथा वह कानून जितना मुस्लिम व्यक्तियों पर लागू होगा उतना ही हिन्दू लड़कों पर भी। कोई भी जोर जबरदस्ती से अपनी होने वाली पत्नी या अपने होने वाले पति का धर्म बदलना चाहेगा या ऐसी शर्त रखेगा- वही दण्ड का भागी होगा।

अतः यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं करेगा। यह कानून किसी के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप करने वाला नहीं है क्योंकि यदि किसी के आचरण से दूसरे व्यक्ति को अधिकार प्रभावित होते हैं या सार्वजनिक शांति भंग होती तो राज्य उस स्थिति में उसे नियंत्रित कर सकता है। अतः यह कानून अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन भी नहीं है।

(लेखक विधिवेत्ता हैं और विधि महाविद्यालयों में प्राचार्य रहे हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *