वर्ष 2024 : राजनीति में हुआ बड़ा अवमूल्यन
हृदयनारायण दीक्षित
वर्ष 2024 : राजनीति में हुआ बड़ा अवमूल्यन
वर्ष 2024 विदा हो रहा है। राष्ट्र जीवन में सार्थक उपलब्धियां पाने के लिए एक वर्ष का समय पर्याप्त नहीं होता। फिर भी बीत रहे वर्ष की विदाई और नववर्ष के स्वागत स्वाभाविक होते हैं। वर्ष 2024 की अनेक उपलब्धियां हैं। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। राष्ट्रीय स्वाभिमान बढ़ा है। तो भी उपलब्धियों को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तकरार हुई है। लेकिन राजनीति में बीते वर्ष बड़ा अवमूल्यन हुआ है। संसद में बहुत कुछ अच्छा नहीं हुआ। संसदीय भाषा की कटुता से देश आहत है। इस वर्ष 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। थोक के भाव दल बदल हुए। संविधान की दसवीं अनुसूची (दल बदल) का पालन नहीं हुआ। अनेक स्वप्न पूरे हुए। अनेक टूट गए। अनेक प्रतीक्षित हैं। लेकिन इस वर्ष का सबसे बड़ा झूठ संविधान और आरक्षण समाप्ति को लेकर था। प्रतिपक्ष ने प्रचारित किया कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आते ही संविधान बदलेगी और आरक्षण समाप्त करेगी। भाजपा की तरफ से बार-बार सफाई दी गई कि संविधान बदलने का कोई प्रश्न ही नहीं। आरक्षण छीनने का भी कोई विचार नहीं।
बेशक राजनीति में सबके अपने सत्य और अपने झूठ होते हैं। वरिष्ठ कार्यकर्ता भी अर्धसत्य या असत्य का सहारा लेते हैं। लेकिन संविधान बदल देने और आरक्षण समाप्त करने सम्बंधी झूठ निंदनीय हैं। इससे देश के कोने-कोने में भ्रम फैला। संसद में भी यह झूठ बोला गया है। यह देश की 18वीं निर्वाचित संसद है। संसदीय इतिहास में ऐसा झूठ कभी चुनावी मुद्दा नहीं बना। एक शायर ने लिखा है, ”सारे फसाने में, जिसका जिक्र न था/वही बात उनको नागवार गुजरी है।” भाजपा के घोषणा पत्र सहित चुनाव पत्रक या प्रचार में प्रयुक्त सामग्री में संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने का सामान्य उल्लेख भी नहीं था। लेकिन पूरे देश में यही झूठ राष्ट्रीय विमर्श का केन्द्र था। कृषि जनस्वास्थ्य, रोजगार और ऐसे ही अनेक मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श नहीं हुआ।
संविधान बदलने का दुष्प्रचार अभी भी जारी है। प्रबुद्धजनों ने इस विभाजक झूठ को पहचान लिया था। संविधान जड़ नहीं है। यह राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तनीय है। संविधान निर्माताओं ने संशोधन प्रक्रिया भी संविधान में ही लिखी। संशोधन की प्रक्रिया सरल है। डॉ. आम्बेडकर ने संविधान सभा में संविधान संशोधन का प्रस्ताव पेश करते हुए कहा था कि, ”जो संविधान से असंतुष्ट हैं उन्हें सिर्फ दो तिहाई बहुमत प्राप्त करना है। यदि वह वयस्क मत के आधार पर निर्वाचित संसद में दो तिहाई बहुमत भी नहीं पा सकते तो यह समझ लेना चाहिए कि संविधान के प्रति असंतोष में जनता उनके साथ नहीं है।” संशोधन वाला अनुच्छेद 368 ध्यान देने योग्य है। कुछ सामान्य विषयों पर संविधान के उपबंधों का संशोधन संविधान संशोधन नहीं समझा जाएगा। ऐसे संशोधन के लिए सादा बहुमत चाहिए। महत्वपूर्ण संशोधनों के लिए संसद में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। परिसंघीय संरचना को प्रभावित करने वाले विधेयकों के लिए कम से कम आधे राज्यों के विधायी सदनों के अनुमोदन चाहिए। संविधान संशोधन प्रत्येक सदन में जाएगा। उसे सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा और सदन में उपस्थित सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित किया जाएगा। लेकिन इसे संविधान का बदलाव नहीं कहा जा सकता है। संविधान बदलने और यथा आवश्यक संशोधन करने में मूलभूत अंतर है।
संविधान निर्माता कठोर प्रावधानों के समर्थक नहीं थे। इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप संविधान संशोधन का प्रावधान रखा। राज्य विधान मंडलों के समर्थन से सम्बंधित अपेक्षा अमेरिकी संविधान की अपेक्षा अधिक उदार है। अमेरिकी संविधान में तीन चैथाई राज्यों के समर्थन की जरूरत है। लेकिन भारत में आधे राज्य विधानमण्डलों का समर्थन पर्याप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने भी संविधान संशोधन के अधिकार और प्रावधानों पर अनेक निर्णय दिए हैं। कहा गया है कि संविधान के आधारिक लक्षणों का संशोधन नहीं हो सकता। आधारिक लक्षणों में राष्ट्र की एकता और अखण्डता, संसदीय प्रणाली, सामाजिक न्याय और संविधान की सर्वोच्चता सहित अनेक विषय सम्मिलित हैं।
संविधान राष्ट्र जीवन की आचार संहिता है। संविधान राजधर्म है और राजधर्म जड़ नहीं होते। सामाजिक परिवर्तन की गति तेज रफ्तार है। सामाजिक बदलाव का प्रभाव राजनीति पर पड़ता है। अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए ही संविधान निर्माताओं ने संशोधन का प्रावधान रखा है। लेकिन भारत में ही इस तरह का झूठ बोला गया है कि संविधान खतरे में है इसे भाजपा द्वारा बदला जाएगा। आरक्षण भी समाप्त हो जाएगा। विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसा झूठ नहीं चलता। संसद में भी दो दिन की बहस हुई। बहस के दौरान व्यक्तिगत आरोप लगाए गए। संविधान निर्माता भविष्य के भारत के प्रति सजग थे। संविधान निर्माताओं ने जम्मू कश्मीर विषयक प्रावधान अनुच्छेद 370 में रखे थे। वह आश्वस्त थे कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान अल्पकाल तक ही काम आएंगे। इस अनुच्छेद के प्रावधान को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने अनुच्छेद 370 के शीर्षक में ‘अस्थाई प्रावधान‘ लिखा था। संविधान निर्माता चाहते थे कि जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे वाले प्रावधान का खात्मा होना चाहिए। केन्द्र सरकार ने यह दायित्व निभाया। विभाजक राजनीति अनुच्छेद 370 का प्रेत जगाया करती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी केन्द्र सरकार के इस फैसले और संविधान संशोधन पर चर्चा रही है। मूलभूत प्रश्न है कि क्या इसे संविधान में बदलाव कहा जाएगा या राष्ट्रहित में किया गया संशोधन? आखिरकार संविधान के बदलने और आरक्षण समाप्त करने का प्रचार, भारतीय समाज को बांटने का काम क्यों नहीं है?
संविधान प्रवर्तन की तिथि 26 नवंबर 1949 से अब तक 75 वर्ष हो गए। तब से लगभग 100 से ज्यादा संविधान संशोधन हो गए हैं। संविधान के खात्मे और आरक्षण के समाप्त होने के दुष्प्रचार का आधार क्या है? भारी संख्या में हुए संविधान संशोधन यही सिद्ध करते हैं कि राष्ट्रीय चुनौतियों के अनुरूप संविधान में संशोधन होते रहे हैं। झूठे प्रचार के इस खेल में संविधान के साथ मनुस्मृति को लेकर संसद जाना और मनुस्मृति को संविधान के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने का नाटक अनुचित है। दुर्भाग्यपूर्ण भी है। आरक्षण के रक्षोपाय संविधान निर्माताओं ने ही पारित किए थे। आवश्यकतानुसार इस सम्बंध में भी संशोधन हुए हैं। आरक्षण की अवधि बढ़ाने का विषय भी संवैधानिक संशोधन से ही जारी है। अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव पर सभी दलों ने लगातार अपनी सहमति दी है। तब आरक्षण समाप्त करने के दुष्प्रचार का औचित्य क्या है?
राष्ट्र की आवश्यकतानुसार संविधान संशोधन होते हैं। सभी सरकारों ने आवश्यकतानुसार संविधान संशोधन कराए हैं। आपातकाल में सारे विपक्षी नेता जेल में थे। उस समय 53 संशोधन एक साथ हुए थे। संविधान का 42वाँ संशोधन राष्ट्र की आवश्यकता नहीं था। आपातकाल को वैध ठहराने व सत्ता बनाए रखने के लिए यह संशोधन हुआ था। इस संशोधन में न्यायपालिका के अधिकारों में भी कटौती हुई थी। जनता पार्टी की सरकार ने संशोधन के बड़े हिस्से को समाप्त कर दिया था। क्या 2025 के साल हम खूबसूरत वातावरण बनाने में सफल होंगे? क्या राजनीति में मर्यादा का पालन होगा? संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने जैसे राजनीतिक झूठ आगे नहीं चलेंगे। 2024 को अलविदा, 2025 का स्वागत।