एजेंडाधारी पत्रकारों की वल्चर पत्रकारिता
मीनाक्षी आचार्य
दृश्यम फिल्म का निर्माण ही इस थीम पर हुआ था कि- जो होता है वह दिखता नहीं है, और जो नहीं होता है, उसे दिखाने का प्रयास किया जाता है। पत्रकारिता जगत में भी इन दिनों दृश्यम का ही दोहराव होता दिख रहा है। इसीलिए आजकल हर समाचार के लिए फैक्ट चेक का सहारा लेना पड़ता है। कुछ एजेंडाधारी पत्रकारों के लिखने की ताकत सच्चाई बताने में नहीं बल्कि दृश्य बनाने, जताने और जुगाड़ने में लगी रहती है, जिसमें लोगों के बीच विशेष प्रकार का नैरेटिव सैट करने का प्रयास किया जाता है।
यह सच है कि भारत चीनी वायरस कोरोना से जूझ रहा है। और केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें इस महामारी को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन इसके बावजूद कुछ गिद्ध प्रवृति के पत्रकार इस महामारी में अपने लिए एजेंडा ढूंढ़ रहे हैं। यह तथ्य है कि पूरे विश्व के अलग-अलग देशों से यदि तुलना की जाए तो भारत की जनसंख्या और मृत्यु दर यूरोप के देशों और अन्य देशों के मुकाबले काफी सीमा तक नियंत्रण में है और कम समय में रिकॉर्ड टीकाकरण करने वाला देश बन गया है। लेकिन एजेंडाधारी पत्रकारों द्वारा इसे प्रतिशत में लिखकर बताया जाता है, वे यह जताने का प्रयास करते हैं कि भारत कितना पीछे है। लेकिन यदि इस प्रतिशत को संख्या में लिखें तो यह संख्या यूरोप के कई देशों की कुल संख्या से भी अधिक है।
टीकाकरण पर सियासत इस नैरेटिव का सबसे बुरा पक्ष है। कथित तौर पर भाजपा की वैक्सीन कहकर लोगों को टीकाकरण के लिए हतोत्साहित करना फिर चुपके से स्वयं टीका लगवाना कैसी सियासत है। ऐसा गलत नैरेटिव बनाने के कारण कई लोगों ने टीकाकरण का बहिष्कार किया। इससे किसको फायदा हुआ? परिणाम यह हुआ कि शुरू में टीकाकरण के प्रति लोगों की रुचि नहीं होने से कई राज्यों में वैक्सीन बर्बाद हो गई। निश्चित ही भ्रम की स्थिति पैदा करने वाले तथाकथित पत्रकार और नेता उन लोगों की मौत के गुनहगार हैं, जिन्हें टीकाकरण के प्रति हतोत्साहित किया गया था। बाद में उन्हीं लोगों की लाशों पर राजनीति की गई।
आपातकालीन स्थिति में इस प्रकार के न्यूज़ चैनल और भ्रामक जानकारियों पर कड़ाई से रोक लगनी चाहिए। ऐसे लोगों को झूठे समाचार फैलाने के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए और उन्हें कड़ी से क़ड़ी सजा दी जानी चाहिए। ऐसी स्थिति हॉस्पिटल्स में मरीजों को बेड के मामले पर बनाई गई। बैंगलोर का मामला सामने है कि कैसे उलटफेर करके अस्पतालों में बेड का खेल किया गया। आखिर ये लोग कौन है और क्यों नहीं ऐसे लोगों एनएसए लगाया जाता?