वाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद – जे. नंद कुमार

वाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद - जे. नंद कुमार

वाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद - जे. नंद कुमारवाद- संवाद से महत्वपूर्ण है सुसंवाद – जे. नंद कुमार

प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंद कुमार ने कहा कि वाद-संवाद होना चाहिए, लेकिन सुसंवाद अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा की संगोष्ठियों में बुद्धिजीवी जन संवाद करते हैं और ऐसी ही पद्धति हमारी लोक परंपराओं में है। वे पंचनद शोध संस्थान, अध्ययन केन्द्र शिमला, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय व भाषा एवं संस्कृति अकादमी हिमाचल प्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित ‘लोक परंपराओं में भारत बोध’ संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। जे. नंद कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि हमें भारतीयता के बारे में कुछ भी जानने कि उत्सुकता हो तो, वह वनवासियों के बीच रह कर प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारत सर्वश्रेष्ठ देश ‘सोने की चिड़िया’ के नाम से जाना जाता था। यह भी हमारी लोक परंपराओं व गाथाओं में आज भी जिंदा है। पंचनद शोध संस्थान जैसे संस्थान इस दिशा में समाज को सुसंवादित करने में सदा प्रयत्नशील हैं। उन्होंने कहा कि 1947 में बाबा साहेब अंबेडकर ने अपनी शोध पत्र प्रस्तुति में कहा था कि भारत शुरुआत से लेकर अंत तक एक है। उन्होंने हमें यह भी ज्ञात करवाया कि भारत की चारों दिशाओं में स्वतंत्रता संग्राम को सर्वप्रथम आध्यात्मिक गुरुओं, व कवियों द्वारा अपने लोकगीतों के द्वारा आरंभ किया गया। इस तरह भारत बोध को अपने लोकगीतों और लोकगाथाओं द्वारा कवियों ने सबसे पहले उजागर किया। हमारी लोक परंपराएं हमारे निहित गुणों जैसे समर्पण और सेवा को भी दर्शाती हैं।

संगोष्ठी का शुभारंभ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य सत प्रकाश बंसल ने किया। कार्यक्रम का प्रारंभ सरस्वती माता के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों को शाल, टोपी व श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। पंचनंद शोध संस्थान शिमला के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. मनु सूद ने संगोष्ठी में सम्मिलित विशेष अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में श्री जे. नंद कुमार द्वारा लिखित पुस्तक ‘लोक बियोंड फोक’ का विमोचन किया गया। संगोष्ठी में कुलपति आचार्य सत प्रकाश ने कहा कि हम जाने-अनजाने में लोक परंपराओं के बारे में अवश्य ही बात करते हैं। इस तरह के लोक मंथन हमारी परंपराओं व लोक संस्कृति पर प्रकाश डालने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हमारे राष्ट्र भारत में विविध खान पान, पहनावे होते हुए भी हम सभी को हमारी लोक परंपराओं ने एक सूत्र में बंधे रखा है। राष्ट्र शिक्षा इस दिशा में एक ऐसा नया कदम है, जिसमें आत्मनिर्भर भारत ही एक मंत्र है। शिक्षाविद होने के नाते हम सभी का यह कर्तव्य है कि इस राष्ट्र शिक्षा नीति को हम इस तरह कार्यान्वित करें ताकि भारत पुनः विश्वगुरु सिंहासन पर विराजमान हो।

पंचनंद शोध संस्थान पंचकूला के अध्यक्ष प्रो. बी.के कुठियाला ने इस अवसर पर कहा कि संवाद समाज के मन को दर्शाता है। इस संवाद को उस दिशा में ले जाना चाहिये जो मानव और विश्व के हित में हो। संवाद को सुसंवादित बनाना पंचनद शोध संस्थान जैसे संस्थान करते हैं। पंचनद शोध संस्थान उत्तर भारत के पांच राज्यों में काम कर रहा है। इसके 42 केन्द्र हैं। इसका पहला मंथन भोपाल में हुआ, तत्पश्चात दूसरा रांची में हुआ और अब तीन दिवसीय मंथन सितंबर माह में गौहाटी में होने जा रहा है।

सभी सहभागियों ने उत्सुकता से सभी वक्ताओं को सुना और प्रश्नावली की कड़ी में अपने प्रश्नों को उजागर किया। सभी प्रश्नों का विधिवत तर्क संगत संतोषजनक उत्तर दिया गया। इस संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागाध्यक्ष, आचार्य शोध छात्र और अन्य गणमान्यों सहित लगभग 70 लोग उपस्थित थे।

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