स्कूलों में हावी वामपंथी-जिहादी गठजोड़, सूरतगढ़ में शिक्षक ने शिवरात्रि व्रत को बताया अंधविश्वास
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारतीय स्कूल वामपंथी–जिहादी गठजोड़ के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाए। उल्टे इसका राजनीतिक पोषण ही हुआ। इसी का परिणाम है कि इस्लामिक आडम्बरों और कुरीतियों तक पर मुंह खोल पाने की हिम्मत न कर पाने वाले लोग हिन्दू संस्कृति, आस्थाओं, त्योहारों और देवी देवताओं को बड़ी आसानी से अंधविश्वास और काल्पनिक करार दे देते हैं। इसी में उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नजर आती है। स्कूलों में जहॉं बच्चे ज्ञान के साथ ही आचार–विचार भी सीखते हैं, वामपंथी–जिहादी गठजोड़ का हावी होना दुर्भाग्यपूर्ण है।
अभी भीलवाड़ा के आसींद के एक स्कूल में शिक्षिका द्वारा हिन्दुइज्म, धर्म या कलंक नामक पुस्तक बांटने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि सूरतगढ़ जिले के गांव भगवानगढ़ के सरकारी स्कूल के शिक्षक इंद्राज मेहरड़ा द्वारा शिवरात्रि व्रत को अंधविश्वास बताने और छात्रों को व्रत रखने से रोकने का मामला सामने आ गया। मंगलवार को मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होना शुरू हुआ। जिसमें अभिभावक और शिक्षक के वार्तालाप में अभिभावक शिक्षक के शिवरात्रि व्रत को अंधविश्वास बताने का यह कह कर विरोध कर रहा है कि यह उसकी आस्था से जुड़ा मामला है, शिक्षक ने उसके बेटे को व्रत करने को मना क्यों किया। जबकि शिक्षक उसे अंधविश्वास बता रहा है।
शिक्षक इंद्राज मेहरड़ा गांव भगवानगढ़ के सरकारी स्कूल में कार्यरत है और अभिभावक गांव 15 एसजीआर का निवासी है। मामले का खुलासा होने के बाद बुधवार को ग्रामीण स्कूल के बाहर इकट्ठा हो गए और शिक्षक का विरोध जताने लगे। उनका कहना था कि शिक्षक इंद्राज मेहरड़ा को माफी मांगनी चाहिए। ग्रामीणों की भीड़ और विरोध को देखते हुए इंद्राज मेहरड़ा माफी मांगने को तैयार भी हो गया। लेकिन वह पुलिस संरक्षण में ही बाहर आना चाहता था। पुलिस ने संरक्षण देने से मना कर दिया तो वह भी माफी मांगने बाहर नहीं आया।
बीते सालों में भारत में राजनीतिक छत्रछाया में वामपंथी–जिहादी गठजोड़ ने सेक्युलरिज्म की नई परिभाषा ही गढ़ ली है। यहॉं इसका एक ही अर्थ है मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दुत्व का विरोध। यह अतिवाद देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है।