विदेश जाने वाले भारतीय हमारी सभ्यता के राजदूत- आंबेकर
विदेश जाने वाले भारतीय हमारी सभ्यता के राजदूत- आंबेकर
पुणे, 23 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि विदेश जाने वाले भारतीयों को हमें ‘ब्रेन ड्रेन’ के रूप में न देखते हुए अपनी सभ्यता के राजदूत के तौर पर देखना चाहिए। हम चाहे कहीं भी जाएं, लेकिन हमारे हृदय में भारतीयत्व बना रहना चाहिए। सम्पूर्ण विश्व को अब भारतीय नेतृत्व की आवश्यकता है। पुणे में आयोजित पुस्तक महोत्सव में उन्होंने से विचार व्यक्त किए। महोत्सव में लेखक डॉ. नरेंद्र पाठक ने सुनील आंबेकर से ‘आरएसएस @ 100’ विषय पर संवाद किया। इसके अतिरिक्त संघ, हिन्दुत्व, समाज आदि पर भी संवाद हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष डॉ. मिलिंद मराठे ने ग्रंथ उपहार देकर स्वागत किया।
आंबेकर ने कहा, भारतीय लोगों की बुद्धि और क्षमता पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विश्वास है। इसलिए आगामी समय में केवल संघ ही नहीं, बल्कि समाज भी सामाजिक परिवर्तन में सहभागी होना चाहिए। उन्होंने संघ शताब्दी वर्ष की यात्रा का विवरण दिया और नागरिक कर्तव्य, सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संवर्धन और ‘स्व’ जागरण, पंच परिवर्तन अभियान की जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि समाज की अपनी प्रणाली सक्रिय होनी चाहिए। शाखा के माध्यम से अपने परिसर के उपक्रम और सामाजिक क्षेत्र में स्वयंसेवक सहभागी होते हैं। संघ शताब्दी के उपलक्ष्य में शाखाओं का नेटवर्क बढ़ाते हुए अधिकाधिक नागरिकों तक पहुंचने का प्रयास निरंतर जारी है। समाज के सभी संगठन और संस्थाओं से संपर्क करते हुए सज्जन शक्ति को सामाजिक परिवर्तन में सहभागी किया जा रहा है। उन्होंने आह्वान किया कि आप जहां हैं, उस क्षेत्र में उन्नति के लिए योगदान दें।
उन्होंने कहा, शाब्दिक तौर पर देखें तो हिन्दुत्व का अर्थ है एकत्व। विश्व में हर कोई अपनी अलग पहचान ढूंढ रहा है। लेकिन अपना दृष्टिकोण हर एक में समानत्व ढूंढने का है। हम यद्यपि अलग दिखते हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर एक हैं। यही भारतीय विचार में एकत्व की धारा है। यह सभ्यता लोकजीवन, व्यवस्था और वैश्विक दृष्टिकोण से व्यक्त होती है। काल के प्रवाह में कुछ लोग हिन्दुत्व भूल गए हैं, लेकिन पिछले 100 वर्षों से संघ इसी मेमोरी की रिकवरी का कार्य कर रहा है।
उन्होंने कहा कि शहरी जीवन में बच्चों के पालन पोषण की समस्या पैदा होती है। ऐसे में सूक्ष्म परिवार बनते हैं। एक से अधिक बच्चों के लिए मानसिकता कैसे बनाएं, यह प्रश्न पूछने पर सुनील आंबेकर ने कहा कि बच्चे कितने होने चाहिए, यह विषय उस परिवार द्वारा तय किया जाना चाहिए। लेकिन यह तय करते समय देश की आवश्यकता और स्थिति का भान होना चाहिए। जिस देश की जनसंख्या असंतुलित होती है, उस देश का भविष्य बदल जाता है। जनसंख्या के संतुलन हेतु नीतियों और कानूनों में बदलाव आवश्यक है। साथ ही महिलाओं को प्रसूति काल में सवेतन छुट्टियों के साथ ‘वर्क फ्रॉम होम’ भी देना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तरह ही महिलाओं को मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एक्जिट का विकल्प देना आवश्यक है, जिससे बच्चों की परवरिश को लेकर भविष्य में मानसिकता बदलेगी।