विवेकानंद शिला स्मारक : जहां नरेंद्र बने विवे​कानंद, मोदी ने चुना वही स्थान

विवेकानंद शिला स्मारक : जहां नरेंद्र बने विवे​कानंद, मोदी ने चुना वही स्थान

विवेकानंद शिला स्मारक : जहां नरेंद्र बने विवे​कानंद, मोदी ने चुना वही स्थानविवेकानंद शिला स्मारक : जहां नरेंद्र बने विवे​कानंद, मोदी ने चुना वही स्थान

वर्ष 1892…, कन्याकुमारी में समुद्र में स्थित जिस शिला पर नरेंद्र नाथ दत्त (विवेकानंद) ने तीन दिन ध्यान लगाया था, वहीं अब 2024 में उसी शिला, जो आज विवेकानंद शिला स्मारक ध्यान मंडपम बन चुकी है, पर नरेंद्र दामोदर दास मोदी 45 घंटों तक ध्यान मुद्रा में लीन हैं। कहा जाता है कि वि​कसित भारत का सपना देखने वाले स्वामी विवेकानंद को ध्यान की इसी अवधि में भारत माता की दिव्य अनुभूति हुई थी।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्वामी जी के विकसित भारत के स्वप्न को 2047 तक साकार करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। अध्यात्म और हिन्दू धर्म को आत्मसात करने के लिए चार वर्ष के भारत भ्रमण के बाद स्वामी विवेकानंद ने कन्याकुमारी में अपनी यात्रा के अंतिम चरण में इस शिला पर तीन दिन (25-26-27 दिसम्बर) ध्यान लगाया था और प्राप्त आध्यात्मिक अनुभूति के साथ 1893 में वे शिकागो पहुंचे और विश्व धर्म संसद को संबोधित कर विश्व को भारत व हिन्दू धर्म के महात्मय से परिचित करवाया। तभी से वे विवेकानंद कहलाए।

1970 में बना विवेकानंद रॉक मेमोरियल

स्वामी विवेकानंद जन्म शताब्दी कार्यक्रम आयोजनों के अंतर्गत तय किया गया कि कन्याकुमारी में जिस शिला पर स्वामी जी ने ध्यान किया था, वहां स्वामी विवेकानंद स्मारक बनाया जाए। दक्षिण में उस समय ईसाई मिशनरी सक्रिय थे। कैथोलिक ईसाइयों ने इस स्थल को सेंट जेवियर की चट्टान बता कर इस पर एक क्रॉस खड़ा कर दिया था। हिन्दुओं ने इसका विरोध किया। परिणामस्वरूप क्रॉस को हटवा दिया गया और लोगों के वहां आने-जाने पर रोक लगा दी गई। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह एकनाथ रानाडे को यहां विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाने का काम सौंपा गया।उन्हें विवेकानंद रॉक मेमोरियल समिति (Vivekanand rock memorial samiti) का सचिव बनाया गया। यह रानाडे का ही प्रयास था कि 17 जनवरी 1963 को चट्टान पर विवेकानंद से जुड़ी पट्टिका लग सकी। क्योंकि तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री भक्तवसलम ने उस शिला पर कोई भी निर्माण करने से स्पष्ट मना कर दिया था। इनके अलावा केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूँ कबीर ने ‘शिला पर स्मारक प्राकृतिक सौंदर्य को खराब कर देगा’ कह कर बाधाएँ खड़ी की थीं। लेकिन जीत एकनाथ रानाडे के दृढ़ निश्चय की हुई। वे 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तत्कालीन गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुँच गए। अंतत: जनता और सरकार सभी के सहयोग से यह स्मारक बन कर तैयार हुआ। लगभग 30 लाख लोगों ने 1 रुपया, 2 रुपए और 5 रुपए भेंट स्वरूप दिए। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानंद महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया और 2 सितंबर, 1970 को भारत के राष्ट्रपति  वीवी गिरि ने इसका उद्घाटन किया।

शिला का पौराणिक महत्व
माना जाता है इस शिला में भगवान शिव व शक्ति की अनुभूति बसी है। पुराणों के अनुसार देवी पार्वती के कन्या रूप कन्याकुमारी ने यहीं पर एक पैर पर खड़े हो कर भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। 1892 में कन्याकुमारी पहुंचने पर जब स्वामी विवेकानंद को यह जानकारी दी गई, तभी उन्होंने निश्चय किया कि वे भी इसी शिला पर ध्यान लगाएंगे। आज प्रधानमंत्री मोदी स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण को फलीभूत करने की प्रेरणा से इस स्थल पर ध्यान लगा रहे हैं।

विवेकानंद रॉक मेमोरियल की विशेषताएं

  • विवेकानंद शिला स्मारक (Vivekanand rock memorial) कन्याकुमारी में एक टापू पर बना है। यह टापू समुद्र तट से 500 मीटर की दूरी पर है और ‘तीन सागरों’ के संगम के बीचोंबीच स्थित है।
  • इसके पास तमिल कवि वल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा है।
  • विवेकानंद मंडपम में एक ध्यान कक्ष है, जिसमें स्वामी विवेकानंद की मूर्ति लगी है।
  • श्रीपद मंडपम में देवी कन्याकुमारी के पदचिन्ह (श्रीपाद) आज भी विद्यमान हैं।
  • यह स्मारक बनाने के लिए 1962 में कन्याकुमारी समिति ने पहल की थी।

 

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