विश्व मूल निवासी दिवस (9 अगस्त) का इतिहास
लक्ष्मण राज सिंह मरकाम
सन 1492 को काफ़ी प्रयासों से, स्पेन और पुर्तगाल के राजाओं के मना करने के बाद भी कैथोलिक मिशन द्वारा प्रदान की गयी आर्थिक मदद से भारत के व्यापार मार्ग खोजने के उद्देश्य से निकला कोलंबस ग़लती से अमेरिका के पूर्वी तट पर जा पहुँचा। उस समय समस्त अमेरिकी महाद्वीप पर मुख्यतः पाँच मूल निवासियों का आधिपत्य था। वे थीं चेरोकी (Cherokee), चिकासौ (Chickasaw), चोक्ताव (Choctaw), मास्कोगी (Muskogee) और सेमिनोल (Seminole)। किनारे पर उतरने के बाद कोलंबस इसे भारत समझ बैठा और जिन लोगों को उसने देखा उन्हें इंडियन समझा। वह अक्टूबर के दूसरे सोमवार का दिन था। कुल चार समुद्री यात्राओं में स्पेन, पुर्तगाल और अंग्रेजों ने अमेरिका में अपना साम्राज्य बनाने की पूरी रूपरेखा बना ली थी। इतना विशाल देश होने के कारण अग्रेजों को लगभग 1600 ईसवी तक सुदूर इलाक़ों से संघर्ष का सामना करना पड़ा। सबसे पहला दो तरफ़ा युद्ध अंग्रेज़ों को आज के वर्जीनिया प्रांत में पवहाटन आदिवासियों से करना पड़ा। इन तीन युद्ध की शृंखला में पहला युद्ध 9 अगस्त को हुआ, जिसने पूरे पोवहाटन कबीले के लोग लड़ते हुए मारे गए। इसकी भारत के संदर्भ में 1757 के प्लासी के युद्ध से तुलना कर सकते हैं। इस हार ने अंग्रेज़ों को वहाँ के आदिवासियों को पूरी तरह ख़त्म करने या ग़ुलाम बनाने का रास्ता खोल दिया। फिर भी लगभग 250 वर्षों तक नेटिव के साथ युद्ध और नर संहार के बावजूद अधिक सफलता नहीं मिली। तब मिशनरियों के द्वारा मुफ़्त शिक्षा व इलाज के नाम पर उनसे सह सम्बंध बनाए गए और उन्हें बड़ी संख्या में ‘सिविलाइज’ किया गया। उन्हीं को अपनी सेना में भर्ती कर आपस में लड़ाया गया।
तब ब्रिटिश सेना के प्रमुख सर जेफ़्री आमर्स्ट थे। उन्होंने विश्व के पहले रासायनिक युद्ध के द्वारा छोटी चेचक, टीबी, कालरा, टाइफ़ॉइड जैसी घातक बीमारियों के जन्तु–कीटाणु ओढ़ने के कंबलों, रुमालों व कपड़ों में मिलाकर लगभग 80% लोगों को तड़पा तड़पाकर मार दिया। अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सेना द्वारा अमेरिका के मूल निवासियों का यह एक भयावह हत्याकांड था। 1775 तक अंग्रेजों ने अमेरिका की भूमि पर अपना आधिपत्य लगभग स्थापित कर लिया था अब उनकी 13 कॉलोनियों पर पूरी तरह हुकूमत थी।
कोलंबस के आने के लगभग 250 वर्षों में मूल निवासियों का रक्तपात करके भी वे केवल थोड़े भू भाग पर ही क़ाबिज़ थे। तभी जोर्ज वाशिंगटन और हेन्री नोक़्स के नेतृत्व में पहला ब्रिटिश अमेरिकी युद्ध शुरू हुआ। सफलता अमेरिका को मिली व पेरिस की संधि के अंतर्गत कॉलोनी अमेरिका को मिली, मगर और भू–भागों पर क़ब्ज़ा करके उसे आपस में बाँटने की भी संधि हुई। ‘इंडियन रिमुवल ऐक्ट 1830’ के अंतर्गत सभी मूल निवासियों को जोर ज़बरदस्ती मिसिसिपी नदी के उस पार धकेला गया। इस संघर्ष में 30,000 लोग रास्ते में ही मर गये। यह घटना ‘The trail of tears’ (आँसुओं की रेखा) कहलाती है। इस दौरान इतनी संख्या में लोग मर गए कि केवल 5 प्रतिशत मूल निवासी ही जिंदा बचे थे ।
12 अक्टूबर 1992 को कोलंबस के अमेरिका आने के 500 वर्ष पूरे हुए। तब एक बड़ा जश्न मनाने की तयारी चल रही थी। लेकिन इस उत्सव के विरोध में ‘कोलंबस चले जाव’ नाम से एक अभियान चलाया गया। इस अभियान को शांत करने के लिए अपराध बोध के भाव से इस दिन को अमेरिका का “Indigenous People day” घोषित किया गया। संयुक्त राष्ट्र को विश्व मूल निवासी दिवस भी 12 अक्तूबर को ही मनाना था। लेकिन अमेरिका में विरोध और ब्रिटेन –पोवहाटन युद्ध में ब्रिटेन की सत्ता वर्जीनिया प्रांत में स्थापित होने के कारण वहाँ धर्म प्रचार की शुरुआत करने का अवसर प्राप्त हुआ। वह दिन भी 9 अगस्त ही था। इस दिन को यादगार बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में गुप्त षड्यंत्र के अंतर्गत 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया।
यह है विश्व मूल निवासी दिवस का सही इतिहास।
लेकिन 9 अगस्त का इतिहास बताते समय हमें वर्किंग ग्रूप की 1982 की पहली बैठक का हवाला दिया जाता है, जो कि झूठ है।
यदि कोलंबस भारत की खोज में अमेरिका के तट पर नहीं पहुँचा होता और 09 अगस्त 1610 को वहाँ के मूल निवासी ब्रिटिश सेना से अपना पहला द्विपक्षीय युद्ध नहीं हारते तो अमेरिका के मूल निवासी, आज भी एक सभ्यता की तरह ज़िंदा होते। उनके इतिहास की जड़ें हमारे समृद्ध इतिहास से भी कहीं जुड़ी हैं। क्या हमें अंग्रेज़ों द्वारा ख़त्म कर दिए गए मूल निवासी इतिहास से कुछ सीखने की आवश्यकता है?
जिनका इतिहास दूसरे अत्याचारियों द्वारा लिखित होता है, वो अपना भविष्य कभी नहीं बनाते। 09 अगस्त के दिन अंग्रेज़ या यूरोपियन रेस द्वारा, भारत के इतिहास में जनजातियों के योगदान को भुला कर, एक नया मनगढ़ंत, एतिहासिक दिन हम पर थोप दिया जा रहा है, जिसका हमारे गौरवशाली इतिहास से कोई सरोकार नहीं है।
आज भारत के जनजातीय अनजाने में ही वैश्विक षड्यंत्रों का हिस्सा बनकर 9 अगस्त ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ मनाते हैं, जबकि अमेरिका मे रहने वाले मूल निवासी इस दिन को अमेरिकी नरसंहारों का दिन मानते हैं। क्या हमें भी यूरोपियन उपनिवेशिक ताकतों द्वारा अपने जनजातीय समुदायों के ऊपर किए गए अत्याचारों को भूल जाना चाहिए? क्या बिरसा मुंडा या किसी और अन्य वीर जनजातीय नायक से संबन्धित दिन, उनके बलिदानों को सही श्रद्धांजलि नहीं होगा? ये प्रश्न हमारे अपने पूर्वजों के प्रति प्रतिबद्धता और सम्मान जताने की आस्था का विषय हैं। परंतु अमेरिकी मूल निवासी समुदाय का निर्णय सीखने योग्य है। जिसमें उन्होंने किसी और के द्वारा दिये दिन को अपने पूर्वजों के दिन के रूप में मानने से इंकार कर दिया। हर 9 अगस्त को कई हज़ार लोग संयुक्त राष्ट्र के बाहर इस दिन के विरोध में आंदोलन करते हैं और इधर हम 9 अगस्त को एक उत्सव के रूप में मनाने में व्यस्त हैं।