शक्ति दुर्गा (कविता)
कर्नल(से.नि.)विवेक प्रकाश सिंह
जब हुई होगी
स्त्री की कल्पना
पृथक ही होगी
विधा की कामना।
सृष्टि को उसकी
हुए होंगे प्रयोजन
दिव्य द्रव्यों के
हुए होंगे आयोजन।
ओज लेकर सूर्य का
ले चंद्रमा से चानना
भोर से कुछ भाव ले
संध्या से लेकर कामना।
कुमुदिनी के भाव कोमल
मधु से ले ली मृदुलता
धैर्य ले कर धरिणि का
और प्रपातों की प्रखरता।
रंग लज्जा से लिया
और रूप रति से ले लिया
नयनों से ले ली चपलता
स्थैर्य मति ने दे दिया।
शक्ति ले ली साधना की
भक्ति ले ली भावना की
माया से यदि मोह पाया
तप से पाया त्यागना भी।
सरस्वती ने शील
वैभव लक्ष्मी ने दे दिया
शक्ति दुर्गा कालिका से
क्षमा पृथ्वी से लिया।
ज्ञान पाया शोध से
और बोध से ले ली प्रमा
ज्वार से यदि क्रोध तो
अँकवार से ले ली क्षमा।
सभी प्रतिभाओं
कलाओं को मिलाकर
देवी सा सौन्दर्य
निर्मित हुआ जाकर।
नियति ने उत्पत्ति करने का
सफल प्रकरण किया
आचरण दे सृष्टि का
नारीत्व का विवरण किया।
छैल छंद छवि देख
देव सभी विस्मित हुए
दृग चढ़ हृदय प्रवेश
भाव सभी मुखरित हुए।
(कुमुदिनी – छोटे सफेद कमल के फूल, स्थैर्य – स्थिरता, प्रमा – चेतना, अँकवार – गले लगना)
(कर्नल विवेक हाल ही में भारतीय सेना से सेवानिवृत हो कर अपनी साहित्यिक रुचि को नया आयाम देने के प्रयास में हैं)
Lajawaab! You weave magic with your words!