द प्रिंट के शेखर गुप्ता जुबेर खान के बचाव में आये
तुलसी नारायण
द प्रिंट के शेखर गुप्ता जुबेर खान के बचाव में आये
कल के दैनिक भास्कर में द प्रिंट के एडिटर इन चीफ ने अपने लेख में अपने एजेंडे के अंतर्गत ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर जुबेर खान (जिसने नूपुर शर्मा के डिबेट वाले चर्चित वीडियो को गलत ढंग से प्रस्तुत किया था, जिससे हिंसा भड़की..) को चाशनी भरे शब्दों की आड़ में पूरी तरह निर्दोष व पीड़ित बताया है।
शेखर क्या कहते हैं समझिए
- पीढ़ियों से हम हिन्दू लोग अपने देवी देवताओं पर सवाल उठाते रहे हैं व अक्सर आलोचना करते रहे हैं।
- हिन्दू धार्मिकता के साथ हमेशा सहजता व हास्यबोध जुड़ा रहा है ।
- अनेक फिल्मों के गाने (जैसे देवानंद की फ़िल्म ‘मुनीमजी’ का शिवजी की बारात वाला गाना) देवी देवताओं पर बनते आये ही हैं, कौन सी नई बात है और ऐसे गानों पर लाखों हिन्दू शादी, वर्षगांठ, जन्मदिन आदि पर डांस करते आये हैं।
- गत 60/70 सालों में किसी को इन गानों पर कोई आपत्ति क्यों नहीं हुई? आज ही क्यों?
- अभी जुबैर की पुरानी पोस्टों के सामने आने से लोगों में गुस्सा है, और फिर चूंकि हिंदुओं की बड़ी जनसंख्या में ईशनिंदा जैसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसे में अगर आज वही हिन्दू अपने देवी देवताओं के अपमान पर नाराज हैं व जुबैर की गिरफ्तारी पर खुशियां मना रहे हैं तो “यह हिन्दू धर्म का अब्राह्मिकरण” है।
द प्रिंट के शेखर से कुछ सवाल
- आपके हिसाब से हिन्दुओं का गुस्सा होना अब्राह्मिकरण है (यानि इस्लामिक / ईसाइयत होना) तो इस्लाम में भी तो नबी, कुरान पर सवाल उठाना अपराध है और अनेक “एक्स मुस्लिम्स” व मौलाना यही अपराध कर रहे हैं। तो क्या मोहम्मद साहब या कुरान की बातों व कार्यों पर सवाल उठाना “हिन्दूकरण” कहा जायेगा (क्योंकि हिन्दुओं में तो खुली चर्चा होती है, सवाल होते हैं)?
- आपने अब्राह्मिकरण के साथ हिन्दूकरण की तुलना क्यों नहीं की? कोई डर, कोई लालच?
- आपने अब्राह्मिकरण कहकर अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दुओं को ही दोषी बताया है।
- आपने जुबेर की जहरीली मानसिकता को क्यों छुपाया?
- जुबेर ने मुस्लिम आस्थाओं पर कभी पोस्ट क्यों नहीं डाली?
- जुबेर खान की कट्टर, मतान्ध मानसिकता पर चुप्पी क्यों?
- जुबेर को हो रही फंडिंग, विदेशों से उसके रिश्तों पर आपने कोई सवाल क्यों नहीं खड़ा किया?
- आपने जुबेर खान को पीड़ित माना है व नूपुर शर्मा पर चुप्पी? क्यों?
- जुबेर की करतूत पर कई देशों द्वारा भारत पर किये तंज पर भी चुप्पी क्यों?
- यह कैसी घटिया पत्रकारिता है?
आखिर सच क्या है?
- सच यह है कि द प्रिंट, द क्विंट, द वायर आदि अनेक प्लेटफॉर्म देशविरोधी विचारों-कार्यों-संस्थाओं को सहारा व अपना बौद्धिक समर्थन देते रहे हैं। वे जब भी कोई ऐसी घटना होती है, देश विरोधियों के पक्ष में कवरफ़ायर करते रहते हैं।
- यही कार्य शेखर गुप्ता जुबेर खान को बचाने हेतु कर रहे हैं।