श्रीकृष्ण का जीवन और संदेश आज भी प्रासंगिक
बलबीर पुंज
श्रीकृष्ण का जीवन और संदेश आज भी प्रासंगिक
सभी पाठकों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की अनंत बधाई। जब भी हम वासुदेव का स्मरण करते है, तो मन में स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि कृष्ण मुरारी का जीवन आज के युग में कितना प्रासंगिक है? सत्य तो यह है कि महाभारत के कालखंड और वर्तमान दौर में अधिक अंतर नहीं है। जो कुछ महाभारत में घटित हुआ, वह विभिन्न रूपों में दुनिया में- विशेषकर भारत में आज भी दिखाई देता है। क्या यह सत्य नहीं कि देश के समक्ष वर्तमान समस्याओं का निदान श्रीकृष्ण द्वारा प्रदत्त और महाभारतकालीन गीता संदेश में निहित है?
जिस प्रकार के कदाचारों से महाभारतकाल भरा रहा था, ठीक वैसे ही आज भ्रष्टाचार, संकीर्ण परिवारवाद, छल-कपट से मतांतरण, मजहबी कट्टरता और समाज के एक विकृत वर्ग द्वारा महिलाओं के प्रति संकुचित दृष्टिकोण रखने आदि के रूप में प्रत्यक्ष है। 76वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में इन्हीं समस्याओं को रेखांकित भी किया था। यह विगत सात दशकों के ‘दूषित सेकुलरवाद’ और ‘विकृत राजनीति’ की देन है कि पं.नेहरू के पिता कौन थे, नेहरू-गांधी परिवार की पृष्ठभूमि और राहुल गांधी के पालतू कुत्ते का नाम क्या है- इससे संभवत: सभी पाठक अवगत होंगे। किंतु उन्हें शायद ही लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की पत्नी, बच्चों-भाई और उनके परिवार की जानकारी होगी। कुछ ही पाठक इस तथ्य से परिचित होंगे कि गांधीजी के बड़े बेटे हरिलाल ने 18 जून 1948 को लावारिसों की भांति मुंबई में दम तोड़ा था। इस पृष्ठभूमि में नेहरू-गांधी-वाड्रा के साथ लालू-मुलायम आदि कई परिवारों की स्थिति क्या है?
महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत में श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश है। इसकी प्रासंगिकता जितनी श्रीकृष्ण के युग में थी, उतना ही महत्व इसका आज भी है। सैकड़ों वर्षों के कालखंड में वासुदेव के जीवन मूल्यों का अनुसरण आचार्य चाणक्य सहित असंख्य रणनीतिकारों से लेकर कई हिंदू-सिख सम्राटों के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल के विचारों और गांधीजी की कुछ नीतियों में प्रत्यक्ष रूप से दिखता है। जैसे श्रीकृष्ण पांडवों-कौरवों के बीच युद्ध टालने का प्रयास करते हैं, जिसका प्रमाण उनके द्वारा कौरवों से पांडवों के लिए मात्र पांच ग्राम मांगने से स्पष्ट है- ठीक उसी प्रकार गांधीजी भी देश को विभाजन से बचाने के लिए जिन्नाह को भारत का प्रधानमंत्री बनाने को तैयार थे। वहीं गीता के शाश्वत संदेशों का अनुकरण करते हुए ही सरदार पटेल ने हैदराबाद और जूनागढ़ सहित 560 से अधिक रियासतों का विलय भारतीय परिसंघ में किया था। यदि स्वतंत्र भारत का अंतरिम प्रधानमंत्री चुनने हेतु कांग्रेस समिति का वैध निर्णय लागू किया जाता, तो सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनते और कश्मीर का मामला उनके हाथों में होता, तो स्थिति कुछ और हो सकती थी। क्या कोई हिसाब लगा सकता है कि कितने ही सुरक्षाबलों और अधिकारियों को कश्मीर के ‘मजहबी इको-सिस्टम’ ने लील लिया, जिसे पुष्ट करने में धारा 370-35ए (1949-2019) ने बड़ी भूमिका निभाई और न जाने कितने ही भारतीय करदाताओं का पैसा कश्मीर संकट को सुलझाने में खर्च हो चुका है?
श्रीकृष्ण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भांति भगवान विष्णु के अवतार हैं। यूं कहें कि श्रीराम का नवीनतम रूप श्रीकृष्ण ही है। जहां राम द्वापर युग के संधिकाल त्रेतायुग, तो कृष्ण कलियुग के संधिकाल द्वापर युग में अवतरित हुए। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो उनके समकालीन राक्षस भी अनुशासन-नियमों से बंधे थे। यह ठीक है कि रावण ने सीता मइया के हरण करने का अक्षम्य पाप किया था। किंतु उसने सीता को उनकी इच्छा के बिना छुआ तक नहीं। जब हनुमान और अंगद श्रीराम के दूत बनकर लंकेश के पास पहुंचे, तब रावण ने बहुत ही धैर्य का परिचय दिया। लंका दहन घटनाक्रम और अंगद प्रकरण- इसका प्रमाण है। रावण को हम भले ही उसके कर्मों के कारण लाख बुरा कहें, परंतु वह कई मामलों में कृष्णकाल के कंस और दुर्योधन, दुशासन आदि अन्य कौरवों से बेहतर था। महाभारतकाल में कौरव- बुराई और फरेब के प्रतीक व पाप का दूसरा चेहरा हैं। लाक्षाग्रह, बाल्यकाल में दुर्योधन द्वारा भीम को विषैली खीर देना, जुएं में कपटपूर्ण और द्रौपदी चीरहरण- ये सब घटनाएं कौरवों के चरित्र को परिभाषित करती हैं।
जहां श्रीराम के राक्षस भिन्न समाज से थे, वहीं श्रीकृष्ण के राक्षस उन्हीं के बीच रहते थे। क्या यही स्थिति हमारी नहीं है? 100 वर्ष पूर्व, जिन लोगों ने विषाक्त मानसिकता से प्रेरित होकर ‘खिलाफत आंदोलन’ (1919-24) के दौरान मोपला, कोहाट आदि क्षेत्रों में निरपराध हिंदुओं का नरसंहार किया, 1946 के चुनाव में मुस्लिम लीग का समर्थन किया, कलकत्ता (कोलकाता) में डायरेक्ट एक्शन की पटकथा लिखी, 1947 में देश का रक्तरंजित विभाजन करके पाकिस्तान को जन्म दिया, कश्मीर को भावनात्मक रूप से शेष भारत से काटने में भूमिका निभाई, 1989-91 में कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम करके उन्हें पलायन के लिए विवश किया और देश के भीतर सैकड़ों जिहादी हमले (उदयपुर और अमरावती मामले सहित) किए या उसका हिस्सा रहे- क्या वे हमारे बीच के ही लोग नहीं थे? क्या यह सत्य नहीं कि भारत के शत्रु राक्षस आज भी देश को अस्थिर और खंडित करने का निरंतर षड़यंत्र करते रहते है?
आखिर भारत का सभ्य समाज इन सबसे कैसे निपटे? क्या इसका समाधन हजारों वर्ष पहले श्रीकृष्ण के गीता संदेश में है? जब महारथी अर्जुन विषाद से ग्रस्त होते हैं और वे कौरव सेना को ‘अपना’ कहकर उनके विरुद्ध शस्त्र उठाने से मना कर देते हैं, तब श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के संदेश से अर्जुन का पथ-प्रदर्शित करते हैं। तब हरि, अर्जुन से कहते हैं कि पलायन किसी भी समस्या का हल नहीं। श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु यदि संघर्ष करने की आवश्यकता हो, तो उससे भागना- कायरता है, अधर्म है। तब वासुदेव के विचारों से प्रभावित होकर अर्जुन ने ‘न दैन्यं, न पलायनम्’- अर्थात् कभी असहाय न होना और न कभी भागना, का उद्घोष किया। इसके बाद महाभारत के युद्ध में जो कुछ हुआ, वह सभी सुधी पाठकों को सर्व विदित है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)