श्रीलंका बुरे दौर से गुजर रहा है…
प्रशांत पोळ
श्रीलंका बुरे दौर से गुजर रहा है…
श्रीलंका के पास सिर्फ आज के लिये पेट्रोल – डीजल है। आज 17 मई से देश में 80% से अधिक निजी बसें चलनी बंद हो जाएंगी। श्रीलंका के समुद्री क्षेत्र में पिछले चालीस दिनों से 3 बड़े जहाज, जिनमें क्रूड ऑइल और फर्नेस ऑइल है, लंगर डाल कर खड़े हैं। लेकिन उनको देने के लिये देश के पास पैसे ही नही हैं। श्रीलंका भिखमंगों जैसे हर एक देश के आगे हाथ फैला रहा है। अकेला भारत, सॉफ्ट लोन की तर्ज पर, क्रेडिट लाइन के अंतर्गत डीजल – पेट्रोल से भरे चार जहाज वहां भेज रहा है, जो 18 मई, 29 मई और 1 जून को श्रीलंका पहुंच रहे हैं।
कल शाम को प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने देश के नाम संदेश में कहा है कि अगले दो महीने और भी खराब जा सकते हैं। इस समय श्रीलंका की तिजोरी में 10 लाख अमेरिकी डॉलर की भी विदेशी मुद्रा नही है। देश शब्दशः इसी रास्ते पर है। लोगों का गुस्सा उफान पर है। पूरे देश मे लगभग १२ घ॔टे का कर्फ्यू रोज लगता है। इसके बावजूद लोग तोड़ा फोड़ी कर रहे हैं। उनको समझ नहीं आ रहा है कि गुस्सा किस पर उतारें। देश में रोज लगभग पांच घंटे का पावर कट है। बिजली बनाने के लिये भी पैसे नही हैं। कल और आज, बुद्ध पूर्णिमा के कारण यह पावर कट 3 घंटे 40 मिनट का है। किंतु प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के कल के संदेश के अनुसार यह पावर कट 15 घंटे तक बढ़ने के आसार हैं।
इस वर्ष देश का अनुमानित खर्चा श्रीलंकन रुपयों मे 4 ट्रिलियन है। लेकिन कमाई, अर्थात राजस्व 1.6 ट्रिलियन श्रीलंकन रुपये ही रहने वाली है, अर्थात एक वर्ष मे 2.4 ट्रिलियन SLR का घाटा, जो किसी भी दृष्टि से बहुत ज्यादा है। यह घाटा, श्रीलंका के GDP का 13% है। आज 1 अमेरिकन डॉलर के लिये 350 श्रीलंकन रुपये देने पड़ते हैं। 12 मई को यही दर 370 श्रीलंकन रुपये थी (आज 1 अमेरिकन डॉलर के लिये 77 भारतीय रुपये लगते हैं)।
श्रीलंका में अधिकतर दवाइयां आयात होती हैं। पिछले चार महीनों से स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयात किये गए उपकरण, औजार, दवाईयों आदि के 34 अरब रुपये श्रीलंका ने चुकाए नहीं हैं। इसलिये आने वाले दिनों में श्रीलंका की स्वास्थ्य सुविधाएं बुरी तरह से चरमराने के पूरे आसार हैं। देश की एअरलाइन, ‘श्रीलंकन एयरवेज’ को बेचने का सरकार ने निर्णय लिया है, फिर भी उस का 372 अरब रुपयों का घाटा सरकार को ही वहन करना है।
सवा दो करोड़ की जनसंख्या के श्रीलंका पर आज 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्जा है। इसमें चीन का हिस्सा 10% से थोड़ा अधिक है, तो जापान का 10%। लेकीन जहां जापान का, या ADB, WB का कर्जा soft loan है, वहीं चीन का कर्जा hard loan अर्थात चीन का ब्याज दर बहुत ज्यादा है। इसी के साथ श्रीलंका ने वैश्विक खुले बाजार से 16,383.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर्जा लिया, जिसकी आर्थिक शर्तें बहुत ज्यादा कष्टप्रद हैं।
कुछ ही वर्ष पहले तक श्रीलंका आर्थिक दृष्टि से एक अच्छा देश माना जाता था। वहाँ की कुछ परियोजनाओं ने तो विश्व के समाचार पत्रों मे हेडलाइन्स बनाई थीं। पर्यटन अपने चरम पर था। कुछ प्रसिद्ध लेखक, नामीगिरामी हस्तियां, श्रीलंका में जाकर बसने को अपना जीवन ध्येय मानती थीं।
लेकिन अब समझ मे आता है, यह सब खोखला था।
वैसा ही खोखला, जैसे 1985 के बाद राजीव गांधी के राज को हमने देश का सबसे आधुनिकतम कालखंड मान लिया था। हमें लगता था, भारत में कंप्यूटर युग, दूरसंचार युग तो राजीव गांधी ही लाए… लेकिन वास्तविकता थी कि हम खोखले हो रहे थे और इसी की परिणति रही कि 1990 – 91 मे हमें सोना गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा का जुगाड़ करना पड़ा।
दुर्भाग्य से इन बातों से कोई भी सीख न लेते हुए दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य, श्रीलंका की दिशा में बढ़ रहे हैं। श्रीलंका ने आर्थिक स्थिति की चिंता न करते हुए लोक लुभावन कदम उठाए हैं, कर कम कर दिए हैं, सब्सिडी बढ़ा दी और अनेक चीजें फोकट में दीं। चीन की रिश्वत खाकर बड़ी – बड़ी परियोजनाएं चीनी कंपनियों को दीं, वो भी चीन से ही कठिन शर्तों पर लोन लेकर।
आज श्रीलंका कंगाली की हालत में है। वहां के अमीरों की अमीरी भी मिट्टी में मिल गई है। लोग पागलों जैसी स्थिति में हैं। देश को इस भयावह स्थिति में लाया है भ्रष्ट और वंश परंपरा से चलने वाला कमजोर राजनीतिक नेतृत्व..!
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