केरल में लाल सलाम का लाल आतंक, एक और संघ कार्यकर्ता की हत्या
केरल के अलपुझा जिले में चेरथला के निकट नागमकुलंगारा में बुधवार रात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक 23 वर्षीय कार्यकर्ता नंदू की हत्या कर दी गई। इस मामले में पुलिस ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) से जुड़े आठ लोगों को गिरफ्तार किया है। एसडीपीआई- पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की राजनीतिक शाखा है। भाजपा ने माकपा सरकार पर एसडीपीआई को शह देने का आरोप लगाया है और हमले के विरोध में गुरुवार को जिले में पूरे दिन की हड़ताल की। रिपोर्टों के अनुसार, पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कासरगोड से तिरुअनंतपुरम तक भाजपा की विजय यात्रा का शुभारंभ करने पहुंचे थे। उनके विरोध में एसडीपीआई ने मार्च का आयोजन किया था। इस कारण क्षेत्र में तनाव बना हुआ था। दोनों संगठनों ने बुधवार को अलग-अलग मार्च निकाला था।
लेकिन पीछे मुड़कर देखें तो केरल में ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। वह अब पूरी तरह से कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रयोगों की प्रयोगशाला बन गया है। वहॉं जिस प्रकार से वैचारिक असहमतियों को समाप्त किया जा रहा है, वह एक तरह से कम्युनिस्ट विचार के मूल व्यवहार का प्रदर्शन है। वहॉं जब भी ऐसी हिंसा होती है बुद्धिजीवी इसे राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का नाम देकर पल्ला झटक लेते हैं। लाल आतंक पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने सुनियोजित ढंग से यह भी स्थापित कर दिया है कि केरल में जो हिंसा है, वह दोनों तरफ से है। लेकिन प्रश्न यह है कि यदि हिंसा दोनों तरफ से है, तब एक ही पक्ष की घटनाएं क्यों सामने आ रही हैं? यह कैसे संभव है कि एक सामान्य घटना को भी बढ़ा-चढ़ा कर चर्चा में लेकर आने वाला ‘झूठों का समूह’ केरल में दूसरे पक्ष की हिंसा को उभार नहीं सका है? वास्तव में, राजनीतिक हिंसा कम्युनिस्ट विचारधारा का एक अंग है। इसलिए कम्युनिस्ट सरकार के संरक्षण में होने वाली राजनीतिक हिंसा पर चर्चा नहीं की जाती है।