संघ की प्रतिनिधि सभा – स्वयंप्रेरित लोकतंत्र के प्रत्यक्ष दर्शन
संघ की प्रतिनिधि सभा – भाग 1
नरेंद्र सहगल
वर्तमान समय में प्रचलित शब्द लोकतंत्र में मात्र नकारात्मक आलोचना का कोई स्थान नहीं होता। आधुनिक युग की सशक्त व स्वस्थ व्यवस्था लोकतंत्र में सोचने, बोलने और लिखने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। इसी प्रगतिशील लोकतंत्र के दर्शन होते हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक में। इस वर्ष यह बैठक 19-20 मार्च को बंगलौर में होगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रारंभ से ही तरह तरह के बेबुनियाद आरोप लगते आ रहे हैं। संघ फासिस्ट है, तानाशाह है, सांप्रदायिक है, संघ एक ऐसा संगठन है जिसमे चुनाव नहीं होते, संघ में चर्चा करने और अपना मत रखने की इजाजत नहीं है, संघ की कार्यपद्धति लोकतान्त्रिक नहीं है। परन्तु वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। संघ में चर्चा से लेकर चुनाव तक, सब कुछ होता है। बस इसमें गालीगलौच, धक्कामुक्की, नारेबाजी और चुनावी शोर जैसा कुछ नहीं होता।
लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के स्वस्थ प्रचलन को समझने के लिए संघ के कार्यक्रमों, बैठकों, चर्चासत्रों को नजदीक से देखना चाहिए। संघ के संगठनात्मक ढांचे में नगर से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक स्वस्थ एवं प्रगतिशील लोकतंत्र की बहुत ही सुन्दर एवं अद्भुत व्यवस्था है, जो अन्यत्र संगठनों, संस्थाओं और दलों में बहुत कम दिखाई देती है । इसका एक ही प्रमुख कारण है- संघ राष्ट्र निर्माण का एक ऐसा रचनात्मक कार्य है जिसका दलीय राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है।
यहाँ हम संघ की प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक की चर्चा कर रहे हैं। वर्ष में एक बार होने वाली इस बैठक में लगभग 1400 कार्यकर्ता भागीदारी करते हैं। संघ के सरसंघचालक द्वारा मार्गदर्शित और सरकार्यवाह द्वारा संचालित इस बैठक में भारत के सभी जिलों से चुनकर आये प्रतिनिधि, अखिल भारतीय तथा प्रांतीय स्तर के अधिकारी, सभी विभाग प्रचारक तथा अनुषांगिक संगठनों के प्रमुख कार्यकर्ता भाग लेते हैं।
इस वार्षिक बैठक के प्रमुख कार्यक्रमों में सामूहिक परिचय, कार्य का वृत्त निवेदन, कार्य की प्रगति, भविष्य की योजना, चर्चा सत्र, विशेष बौद्धिक वर्ग, नियमित शाखा में भगवा ध्वज के समक्ष सामूहिक प्रार्थना, राष्ट्रहित से जुड़े विषयों पर प्रस्ताव पारित करना, संघ विचारधारा पर प्रकाशित नई पुस्तकों का परिचय और नियमित प्रेस वार्ता इत्यादि कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं ।
ये कार्यक्रम अत्यंत शांत, गंभीर परन्तु हंसी-खुशी के वातावरण में संपन्न होते हैं। यहाँ किसी की जय-जयकार नहीं होती, नारेबाजी नहीं होती और न ही ताली बजती है। एक प्रेरक, उत्साह वर्धक और ईश्वरीय दृश्य के दर्शन होते हैं। इस बैठक में लोकतंत्र की कथित नियमावाली थोपी नहीं जाती। यहाँ स्वयंप्रेरित लोकतंत्र का व्यावहारिक परिचय मिलता है। संघ की ढेरों विशेषताओं में यह एक सबसे बड़ी विशेषता है।
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की इस वार्षिक बैठक में पारित होने वाले प्रस्तावों पर खुलकर चर्चा होती है। देश की सुरक्षा, सामाजिक एकता एवं सौहार्द, राष्ट्रीय समस्याएं आदि ज्वलंत मुद्दों पर विस्तारपूर्वक चर्चा करने का सबको अवसर मिलता है। ऐसे कई अवसर आये हैं जब मात्र एक प्रतिनिधि के ठोस सुझावों के बाद प्रस्ताव के विषय और भाषा में परिवर्तन किया गया।
उपरोक्त लोकतान्त्रिक प्रणाली के अतिरिक्त भी कई प्रेरक एवं अतुलनीय दृश्य देखे जा सकते हैं। सामूहिक मंत्रोच्चारण के बाद एक साथ भोजन करना, अनौपचारिक रूप से परस्पर मिलना जुलना और एक दूसरे के व्यक्तिगत, पारिवारिक और संगठनात्मक जीवन पर प्रेम पूर्वक बातचीत इत्यादि गतिविधियों से एक राष्ट्रपुरुष का आभास ही नहीं होता अपितु व्यवहार में संगठन की नीतियों को बल भी मिलता है। क्रमश: …………….