संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल का भाषण

संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन
के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल का भाषण
जयपुर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (30 मार्च, 1949)
जयपुर नरेश, अन्य माननीय नरेशो, सन्नारियो तथा सद्गृहस्थो,
आज एक महान् ऐतिहासिक प्रसंग के समय आप सब यहाँ जमा हुए हैं। संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन का मान मुझको दिया गया है, इसके लिए मैं ईश्वर का और आप सब का ऋणी हूँ। मैं जानता हूँ कि यह कितने बड़े महत्व का अवसर है और हमारे सिर पर इस समय कितनी बड़ी जवाबदारी आ पड़ी है।
इस प्रसंग पर जयपुर महाराजा साहब को जो राजप्रमुख का मान दिया गया है, उसके लिए मैं उनको मुबारकबाद देना चाहता हूँ। आज तक तो यह जयपुर के सेवक थे। क्योंकि असल में हमारे हिन्दुस्तान की संस्कृति के अनुसार राजा राज्य का प्रधान तो अवश्य है, लेकिन उससे भी अधिक वह प्रजा का सेवक है। तो आज तक यह जयपुर की प्रजा के सेवक थे, आज से यह सम्पूर्ण राजस्थान की प्रजा के सेवक बनते हैं। हमारे महाराज प्रमुख (महाराणा उदयपुर) आज हाजिर नहीं हैं क्योंकि उनकी शारीरिक दशा हम जानते हैं। पर उनको हम कभी भूल नहीं सकते। राणा प्रताप ने राजपूताना को एक बनाने के लिए जीवन भर कोशिश की। राजपूताना का एकीकरण करने के लिए जितना कार्य और जितनी कोशिश राणा प्रताप ने की, उतनी और किसी ने नहीं की। उनका संकल्प परिपूर्ण करने का सौभाग्य आज हम लोगों को प्राप्त हुआ है, इसलिए आज हमारे अभिमान का दिवस है। इसके लिए हम महाराज प्रमुख साहिब को भी मुबारकबाद देते हैं। हम आशा करते हैं कि जो संकल्प महाराणा प्रताप के मुरब्जियों ने किया था और जिस अर्थ से वह किया गया था, उसे हम परिपूर्ण करेंगे और उसके लिए हम योग्यता प्राप्त करेंगे। इसके लिए हम अपने पूर्वजों का आशीर्वाद माँगते हैं और ईश्वर का भी आशीर्वाद मांगते हैं।
जिन सब महाराजाओं ने इस काम में साथ दिया और समय को पहचान कर जो त्याग किया, उसके लिए मैं उनको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ। मैंने जो यह रियासतों के संबंध में कुछ कार्य किया है, उसके लिए मेरी प्रशंसा की जाती है। मगर असल में तो इसके लिए हिन्दुस्तान के राजा- महाराजाओं की तारीफ़ की जानी चाहिए। यदि सच्चे दिल से उन लोगों ने साथ न दिया होता, तो आज हिन्दुस्तान का इतिहास जिस तरह बदल रहा है, वह इस तरह बदल नहीं सका होता। बेसमझ लोग उसकी कदर न करें, तो इसमें किसी का कुछ आता-जाता नहीं। मैं तो उसकी पूरी कदर करता हूँ और सारे हिन्दुस्तान में इस बात की कदर कराने की कोशिश करता हूँ । क्योंकि ऐसा करना मैं अपना फर्ज समझता हूँ।
दुनिया जिस रास्ते पर चल रही है, उस रास्ते पर हमें नजर रखनी है और सोचना होगा कि हमें कहां जाना है। दुनिया में हमारी जगह कहां रहनी चाहिए, हमारा पुराना इतिहास क्या है पुरानी संस्कृति क्या है।
भारत का भविष्य क्या होना चाहिए, इन सब चीजों के बारे में राजा-महाराजाओं के साथ बैठकर मैंने एक दो बार नहीं, बल्कि अनेक दफा विचार किया है। हमने समझ लिया कि हिन्दुस्तान के लिए आज जो सब से अच्छा रास्ता है, वही हमें पकड़ना है, और वही हमने पकड़ा भी। इसीलिए आज हिन्दुस्तान का गौरव और हिन्दुस्तान की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ रही है और जिस रास्ते पर, जिस तेजी से हम चल रहे हैं, उसी रास्ते पर, उसी तेज़ी से हम चलते जाएँगे, तो हमारा भविष्य उज्जवल है। उसमें जिन लोगों ने त्याग किया है, उनको उसका पूरा बदला मिल जाएगा।
दुनिया में आखिर सब से बड़ी चीज क्या है? धन कोई बड़ी चीज नहीं है, न सत्ता ही कोई बड़ी चीज है। दुनिया में सब से बड़ी चीज इज्ज़त या कीर्ति है। आखिर महात्मा गांधी के पास और क्या चीज थी? उनके पास न कोई राज-गद्दी थी, न उनके पास शमशीर थी, न उनके पास धन था। लेकिन उनके त्याग और उनके चरित्र की जो प्रतिष्ठा थी, वह और किसी के पास नहीं है। वही हमारे हिन्दुस्तान की संस्कृति है। आज भी हिन्दोस्तान के राजा-महाराजाओं ने अपनी रियासत के लिए, अपने लोगों के लिए त्याग किया है। वे सदा से ऐसा करते आए हैं और करते रहेंगे। तो इस मौके पर मैं एक दफा फिर आप लोगों का शुक्रिया अदा करता हूँ और मैं उम्मीद करता हूँ कि आप लोग आगे बनने वाले इतिहास की ओर भी तटस्थ नहीं रहेंगे और न इस तरह से रहेंगे, जिससे आपके दिल साफ न हों। मैं आशा करता हूँ कि आप लोगों ने जिस तरह से यह त्याग किया है, इसी तरह से आगे इतिहास में भी आप देश का साथ देते रहेंगे।
अब मैं आप लोगों को इस बात का स्मरण कराना चाहता हूँ कि हमारे हिन्दुस्तान में जो गुलामी आई, वह किस तरह से आई और वह इतनी सदियों तक घर करके क्यों बैठ गई? वह सब आज हमें याद करना है और निश्चय कर लेना है कि जिस कारण से गुलामी आई, उस कारण को हमें फिर आगे नहीं आने देना है। हम गुलाम इसलिए बने थे कि हम आपस में एक दूसरे के साथ लड़े, खतरे के समय हम लोगों ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया था। हम छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर बैठ गये और अपने-अपने संकुचित क्षेत्रों में, अपने स्वार्थी में पड़ गये । अपने संकुचित क्षेत्र में भले ही हमने कुछ सेवा भी की हो, लेकिन उससे हमको नुकसान ही हुआ और जब समय आया तो हम एक साथ खड़े न रह सके। आज यह पहला मौका है, जब हिन्दुस्तान एकत्र हुआ है। अब वह इतना बड़ा है, जितना इतिहास में पहले कभी नहीं था। तो, जो एकता आज हुई है, उसको हम मजबूत बनायें, जिससे भविष्य में हमारी स्वतंत्रता को कभी कोई हिला न सके। इस कार्य में आप सब लोग राजपूताना के सब नरेशगण और प्रजाजन साथ दें। आप के राजपूताना का एक- एक पत्थर वीरता के इतिहास से भरा हुआ है, बलिदान के सुनहले कारनामों से भरा हुआ है। आपके राजपूताना की पुरानी कीर्ति आज भी हमारे दिल को अभिमान, हर्ष और उत्साह से भर देती है । आज से उसी राजस्थान को नई दुनिया के योग्य नया इतिहास बनाने का अवसर प्राप्त होता है, यह कितने सौभाग्य की बात है।
इस अवसर पर हमें समझ लेना चाहिए कि हमारा क्या कर्त्तव्य और क्या धर्म है? पहले तो हमने कितनी ही बड़ी-बड़ी रियासतों को मिलाया है। जब हम मिलते हैं, तो हमारे दिल में कोई संकुचित ख्याल नहीं रहना चाहिए कि हम जयपुर के हैं, हम उदयपुर के हैं, हम जोधपुर के हैं, हम बीकानेर के हैं, या किसी और छोटी-मोटी जगह के हैं। ऐसा ख्याल हमारे दिल में बाकी नहीं रहना चाहिए। हम राजपूताना के हैं भी, तो सब से पहले हम हिन्दुस्तानी हैं, उसके बाद हम राजपूताना के हैं। इस प्रकार के ख्याल से हमें यह कार्य करना है। हाँ, यह ठीक है कि हर जयपुरवासी को जयपुर का गर्व होना चाहिए, उदयपुर के रहने वाले को अपने दिल में उदयपुर का गर्व रहना चाहिए। वैसे ही सब रियासतों में होना चाहिए। जिस जगह पर हमारा जन्म हुआ, जिस जगह की मिट्टी में से हम पैदा हुए, जिस मिट्टी में से हम अपनी शक्ति बढ़ाते रहे और बढ़ा रहे हैं, जिस मिट्टी में आखिर हमको मिलना है, उसको हम कैसे भूल सकते हैं? लेकिन एक छोटे से कुएँ में जो मेढक रहता है, उसका दिमाग फैलता नहीं है, उसकी शक्ति भी बढ़ती नहीं है। परन्तु महासागर में जो मगरमच्छ रहते हैं, वह जो खेल कर सकते हैं, वह कुएँ के मेढक नहीं कर सकते। तो असल में हम सब हिन्दोस्तान के हैं और हमारा दिल हिन्दुस्तान से भरना चाहिए। हिन्दुस्तान के लिए हमारी वफादारी चाहिए। जिस वफादारी के लिए आज जयपुर महाराजा ने प्रतिज्ञा ली है, और महाराणा ने प्रतिज्ञा ली है, जिस मुल्क की वफादारी के लिए, जिस सारे राजपूताना की वफादारी के लिए आपने, राजपूताना की सभी प्रजा ने मिल कर अपना प्रधानमन्त्री चुना है, और जिस प्रधानमन्त्री से भी हमने प्रतिज्ञा दिलवाई है उसका महत्व हम सब को समझ लेना चाहिए। हिन्दुस्तान की वफादारी का क्या मतलब है? आज समय की क्या माँग है? मुल्क की क्या माँग है? ये सब चीजें इस प्रतिज्ञा से जुड़ी हुई हैं। तो, यह जो राजप्रमुख ने प्रतिज्ञा ली, हमारे प्रधानमन्त्री ने प्रतिज्ञा ली और हमारे उप- राजप्रमुख ने जो प्रतिज्ञा ली उस सबका महत्व हम सब को समझना चाहिए। क्योंकि यह किसी व्यक्ति की प्रतिज्ञा नहीं है। वह सारे राजपूताना की तरफ से प्रतिज्ञा है। मैं जो इधर यह संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन करने के लिए आया हूँ, अपनी व्यक्तिगत हैसियत से नहीं आया हूँ, न मेरी यह ताकत है, न मेरी यह लियाकत है। मैं आया हूँ हिन्दुस्तान की सरकार की ओर से और हिन्दुस्तान के एक वफादार सेवक की हैसियत से। मैं किसी एक गिरोह का सेवक नहीं हूँ। मैं राजा-महाराजाओं का वफादार सेवक हूँ, रियासत की प्रजा का मैं वफादार सेवक हैं, और इसी हैसियत से यहां आया हूँ। इस हैसियत से मैंने इतनी बड़ी जिम्मेवारी ली कि महाराजा को प्रतिज्ञा दिलवाई, नहीं तो मेरी क्या हैसियत कि मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसी उद्धताई कर सकूँ? मैं अपनी मर्यादा को समझता हूँ। तो आप जितने भाई- बहन इधर आए हैं, उन से मैं नम्रतापूर्वक प्रार्थना करना चाहता हूँ कि आप लोग इस समय का महत्त्व समझ लें और साथ ही अपनी जवाबदारी भी समझ लें। आज से हम इस चीज को भूल जाएँ कि हमारे बीच में कोई पर्दा है, कोई अन्तर है और कोई भेद-भाव है। आज सारा राजपूताना एक है। हम उसे एक दृष्टि से देखेंगे, तभी हम आगे बढ़ सकेंगे।
आज हमने एक बड़ा राजस्थान बनाया है, उसका मतलब क्या है? राजाओं ने अपनी राज- सत्ता छोड़ दी, उसका मतलब क्या है? यह काम हम क्यों करते हैं? आपको समझना है कि आज दुनिया जिस तेजी से आगे चल रही है, उस तेजी से हम आगे न चलें, तो एक तो हम पहले ही पीछे थे, अगर आज भी मन्द गति से चलें तो और भी अधिक पिछड़ जाने वाले हैं। सारे एशिया का हाल देखिए, आज कहाँ क्या चल रहा है? दुनिया के और मुल्कों में क्या कुछ चल रहा है? हम अपनी छोटी सी रियासत में या छोटे से किले में बैठकर बाहर की ओर नजर न करें, तो हमारी रक्षा नहीं हो सकती। आज तलवार का जमाना नहीं है, एटम बम का जमाना है। आज हमें यह समझ लेना है कि तलवार का अधिकार किसी एक गिरोह का अधिकार नहीं है। आज आप जानते हैं कि आज मद्रास के लोगों को भी काश्मीर के पहाड़ों में हिन्दोस्तान के लिए लड़ाई लड़ने का मौका मिलता है, और हमारे कमांडर-इन-चीफ साहब इसी रेजीमेंट की तारीफ भी करते हैं कि वे बड़ी बहादुरी से काम कर रहे हैं। तो मैं आप राजपूतों से, जिन्होंने हिन्दुस्तान का इतिहास बनाया है, सच्चे दिल से अपील करूँगा कि हमें आज का जमाना पहचान लेना चाहिए और जमाने को पहचान कर उसी रास्ते पर हमें चलना चाहिए। आज के जमाने में हमें ऊँच-नीच का भेद निकाल देना है, गरीब और अमीर का भेद निकालना है, राय और रंक का भेद निकालना है। हम सब ईश्वर के बालक हैं, यह सचाई हमें महसूस करनी है। इस रास्ते पर चलने की सच्चे दिल से कोशिश करना हमारा कर्त्तव्य है। मैं जानता हूँ कि जब हम सदियों तक एक ही रास्ते पर चलते रहे हैं, तो दूसरे रास्ते पर चलने की बात दिल जल्दी कबूल नहीं करता है। यह कठिनाई हम सब महसूस करते हैं। लेकिन जो समय को नहीं उसको पछताना पड़ता है।
मैं अपने जागीरदार लोगों को भी मोहब्बत से और प्रेम से समझाने की कोशिश करता हूँ और मेरी उम्मीद है कि मैं उन लोगों को भी उसी तरह समझा सकूंगा, जिस तरह मैंने राजा-महाराजाओं को समझाया। क्योंकि मैं मानता हूँ कि उनका खुद का हित उसी चीज में है। सारा हिन्दुस्तान आजाद होने के बाद हमारे लिए पूरा मैदान खुला है और बहुत सी जगहें हमारे पास हैं, जहाँ हम मानपूर्वक अच्छी तरह से काम कर सकते हैं। यह सम्भव बना सकते हैं कि आज तक जो हमारा स्थान रहा है, उससे भी आगे हम जाएँ। लेकिन, अगर हम यही समझ लें कि हमारे पूर्वज, या पूर्वजों के बाप-दादा को जो जगह मिली थीं, उसी जगह पर हम भी बैठे रहेंगे और उतने ही संकुचित क्षेत्र में हम खेलते रहेंगे, तो हम गिर जाएँगे। उसमें हमको लाभ नहीं होगा। उससे हमारी उन्नति नहीं होगी, हमारी प्रगति नहीं होगी। तो जो चीज आखिर हमको जबरदस्ती करनी पड़े, लाचारी से करनी पड़े, उसे स्वेच्छा से करना और समय देखकर समझपूर्वक करना, उसी में हमारी इज्जत है, उसी में हमारी सभ्यता है। तो भारत की संस्कृति और राजपूताना की संस्कृति की आज की यह मांग है कि हम समय को पहचान लें और अपने चारों तरफ देखें। आप देखें कि चाइना में क्या हो रहा है ? हमारा अपना मुल्क भी बहुत बड़ा है, चीन उससे भी बड़ा है। हमारी जितनी आबादी है, उससे उसकी आबादी ज्यादा है। वह गुलाम मुल्क भी नहीं है। हम तो गुलामी में बहुत साल सड़े हैं, हमारी आजादी तो अभी केवल एक डेढ़ साल की ही है। स्वतंत्र भारत तो अभी डेढ़ साल का बच्चा है। लेकिन उधर चाइना में जो लोग बड़े-बड़े जागीरदार थे, और जिन लोगों पास बहुत धन था, उन्होंने समय को नहीं पहचाना। उसका जो परिणाम हुआ, वह सामने है । आजकल की दुनिया में क्या भला है, क्या बुरा है, उसका भी ख्याल हम न करें। लेकिन हमारा अपना भी तो पुराना इतिहास है, हमारी अपनी भी पुरानी संस्कृति है। हम धर्मपरायण, धर्मप्राण लोग परदेसी संस्कृति में जबरदस्ती घसीटे जाएँ और मजबूरन कोई रास्ता हमें लेना पड़े, वह हमारे लिए ठीक नहीं।
राजस्थान के जितने जागीरदार लोग यहां आए हैं और जो बाहर पड़े हैं, उन सब से इस समय मैं सच्चे हृदय से प्रार्थना करना चाहता हूँ और आप लोगों के सच्चे सेवक की हैसियत से मैं कहना चाहता हूँ कि आप को समय की मांग को समझना चाहिए। आज हमारे मुल्क में जो पिछड़े हुए लोग हैं, उनको हम नहीं उठायेंगे, तो वे हमारी चांद पर वह बैठने वाले हैं। ऐसा समय नहीं आने देना चाहिए। हमें उनका हाथ पकड़कर उठाना है। जो गरीब लोग आज हमारे सामने झुक जाते हैं, उनको सिखाना है कि इन्सान को इन्सान के सामने नहीं झुकना, ख़ुदा के सामने, सिर्फ ईश्वर के सामने झुकना हैं। हमें उनको अपना भाई, अपना सहोदर बनाना है। तो हमारे मुल्क में जो 33 कोटि देवता माने जाते हैं, वह सब असल में हमारे देशवासी ही हैं, उनको हमें देवता बनाना है। इस काम के लिए उनमें जो मनुष्यत्व, है, उस पर का मैल और उस पर की अज्ञानता को निकाल कर साफ कर देना है । जब तक हमारी खुद की अज्ञानता न चली जाए, तब तक हम क्या कर सकते हैं? तो मैं आप लोगों से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि आप लोग अपनी जगह समझ लें और साथ ही आज के समय को भी पहचान लें।
यहाँ जो लोग कांग्रेस में काम करने वाले हैं, उनसे भी मैं चन्द बातें कहना चाहता हूँ। उसमें किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि मैं खुद कांग्रेस का सेवक हूँ और कांग्रेस के सिपाही की हैसियत से बहुत साल तक मैंने काम किया है। मैं खुद मानता हूँ कि मैं अभी तक भी एक सिपाही हूँ। लेकिन लोग जबरदस्ती मुझ से कहते हैं कि मैं सिपाही नहीं, सरदार हूँ। लेकिन असल में मैं सेवक हूँ। इसलिए मेरी सरदारी अगर हो भी, तो वह कोई चीज नहीं है। मैं अपने कांग्रेस के सिपाहियों से अदब के साथ कहना चाहता हूँ कि आप लोगों को समझना चाहिए कि हमारी इज्जत या हमारी प्रतिष्ठा किस चीज में हैं? हम लोग यह दावा करते हैं कि हमारी जगह आगे होनी चाहिए, हमको सत्ता मिलनी चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि हमारा हक क्या है? क्योंकि हम दावा करते है। तो दावा करने का हमारा अधिकार तो इसलिए बना कि हम महात्मा गांधी जी के पीछे चलते थे? इसीलिए वह जगह हमें मिली। आज यदि हिन्दुस्तान स्वतंत्र हुआ है, तो हमारी कुर्बानी से हुआ है, ऐसा कोई गर्व न करे। हममें से बहुत से लोग ऐसे हैं, जो समझते हैं कि हमने बहुत कुर्बानी की, की होगी, ठीक है। लेकिन जो नई कुर्बानी करनी चाहिए, वह कुर्बानी न करो, तो पिछली की गई कुर्बानी भी व्यर्थ हो जाती है। जेल जाने से कुर्बानी नहीं होती। या हमारी कोई मिल्कियत छिन गई उससे कुर्बानी नहीं होती। कुर्बानी होती है, कडुवा घूंट पीने से। हम मान-अपमान भी सहन कर जाएँ और सच्चे दिल से गरीबों की सेवा करते जाएँ, तो कुर्बानी उसी मे हैं। उसी रास्ते पर चलने से हमारी असली इज्जत होगी। आज किसी-किसी जगह पर मैं देखता हूँ तो मुझे दर्द होता है कि हम में जो नम्रता होनी चाहिए, उसका अभाव है। जब मैं यह देखता हूँ, तब मुझे कष्ट होता है ।
कांग्रेसमैन का पहला कर्त्तव्य तो यह है कि यह नम्र बने। सेवक बनने का जिसका दावा है, वह अगर नम्रता छोड़ दे और उसमें अभिमान का अंश पैदा हो जाए, तो यह सेवा किस तरह करेगा? सत्ता लेने के लिए कोशिश करना हमारा काम नहीं है। सत्ता हम पर ठूंसी जाए, तब वह और बात है। सत्ता खींचने के लिए हम अपनी शक्ति लगाएँ और कहें कि हमको मिनिस्टर बनना है, तो यह शर्म की बात है। हमारे लिए यह कहना भी ठीक नहीं कि हमारी राजधानी इस जगह पर होनी चाहिए या उस जगह होनी चाहिए। इन छोटी-छोटी चीजों का आग्रह करने वाले लोग कांग्रेस को नहीं पहचानते। ऐसी बातें वही कर सकते हैं, जिन्होंने कांग्रेस में सच्चा काम नहीं किया है। लेकिन सच्चे कांग्रेसमैन को तो लोग धक्का मार कर आगे बैठाएंगे। क्योंकि वह सच्चा सेवक होगा। तो मैं आप से कहना चाहता हूँ कि मैं कई सालों तक कभी कांग्रेस के प्लेटफार्म पर भी नहीं गया था। मैं कभी व्याख्यान नहीं देता था और आज भी मुझे जब कोई व्याख्यान देना पड़ता है, तो मुझे कंपकंपी छूटती है। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी जवान से कोई भी ऐसा शब्द निकल जाए, जिससे किसी को चोट लगे, जिससे किसी को दर्द हो, जिससे किसी को नुकसान पहुँचे। मुँह से ऐसा व्यर्थ शब्द निकालना अच्छी बात नहीं है। यह सेवा का काम नहीं है। तो मैं यह कहता हूँ कि जो सिपाही है, वह धरती पर चलता है, इसलिए उसको गिरने का कोई डर नहीं है। मैंने कहा कि सिपाही सदा जमीन पर चलता है। लेकिन जो अधिकारी बन गया, अमलदार बन गया, वह उपर चढ़ गया, उसको तो कभी गिरना ही है। यदि वह अपनी मर्यादा न रखे और मर्यादा की जगह न संभाले तो वह गिर जाएगा, और उसको चोट लगेगी।
तो जो अधिकारी बनता है, उसको अधिकारी पद संभालने के लिए रात-दिन जागृत रहना चाहिए। यदि आप जागृत न रहेंगे, तो आप को जरूर गिरना है। मैं कांग्रेस के कार्यवाहकों से अपेक्षा रखूंगा कि हम अधिकार के पद की इच्छा न करें, मोह न करें, लालच न करें। जहाँ तक काम करने के लायक और लोग हमें मिल सकें, उन्हें हम आगे करें और उनसे काम लें। यदि खुद हमारे लिए इस जगह पर बैठना आवश्यक हो गया, तो हमारा हाथ साफ होना चाहिए, हमारा दिल साफ होना चाहिए, हमारी आँख साफ होनी चाहिए और हमारी जबान साफ होनी चाहिए। इस तरह से आप काम न करें तो आप अधिकार के योग्य नहीं हैं। तो आज तक जिनके पास सत्ता थी, उनकी हम टीका भी करते थे और सारा कसूर उन्हीं पर डालते थे। आज वह सारा बोझ हम पर आ गया है। अब राजपूताना भर में कहीं कुछ भी बिगाड़ होगा, तो उसका सब बोझ हमारे ऊपर पड़ेगा। उसमें यदि कोई भलाई होगी, तो उसके श्रेय का पहला हिस्सा उन लोगों को मिलना चाहिए, जिन्होंने सत्ता छोड़ी। आज से राजपूताना में यदि कोई बुराई होगी, तो कोई भी उसका दोष राजाओं को नहीं दे सकेगा। जितनी बुराई होगी, उसका सारा दोष कांग्रेस पर आएगा। इसलिए मैं आपके हृदय से अपील कर आपको जागृत करना चाहता हूँ । यदि सच्चा त्याग करना हो, तो मान-अपमान त्याग करने और निःस्वार्थ सेवा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।
आज हीरालाल शास्त्री ने जो प्रतिज्ञा ली है, वह प्रतिज्ञा उनकी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा नहीं है। वह सारी कांग्रेस की प्रतिज्ञा है। मैं उनको मुबारकबाद तो देता हूँ, क्योंकि वह आज राजपूताना के प्रथम सेवक बनते हैं। लेकिन इस जगह पर बैठने से उन पर जो जवाबदारी पड़ती है, उस जवाबदारी को जब मैं सोचता हूँ, तो उनके लिए मेरे दिल में कुछ दया का भाव प्रकट होता है। उन पर कितनी बड़ी जवाबदारी आ गई है। हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि इस जवाबदारी को पूर्ण करने के लिए ईश्वर इनके कंधों में शक्ति दे।
मैं आप लोगों से यह भी कहना चाहता हूँ कि हम लोग बहुत दिनों तक लड़े। हमें परदेसियों साथ लड़ना था, परदेसी ताकत के साथ लड़ना था। गुलामी काटने का वही एक रास्ता था। पर हमें आज किसी के साथ लड़ना नहीं है। आज हमें अपनी कमजोरियों के साथ ही लड़ना है। तभी हम राजपूताना को उठा सकते हैं, नहीं तो नहीं उठा सकते। आज तक जब हम लडते थे, तो हमारी लडाई का एक हिस्सा कानून भंग करने का था। उससे हमारे में एक आदत पड़ गई कि कानून का मान नहीं रखना। यह बहुत बुरी आदत है। हमें उसको निकालना है। गाँधी जी ने हमको यह सिखाया था कि जो स्वेच्छा से कानून का आदर करता है, वही कानून का अनादर कर सकता है। तो हमारी यह खासियत होनी चाहिए कि हम सत्ता के मान का और कानून का ख्याल रखें। आज कानून को भंग करने का समय नहीं है। आज हमें अपने कानून की प्रतिष्ठा बढ़ानी है। जिन व्यक्तियों ने आज अपने अधिकारों का त्याग किया है, उनकी प्रतिष्ठा किसी न किसी तरह से बढ़े, वह कम न हो, वह देखना हमारा कर्त्तव्य है । तो राजा-महाराजाओं की प्रतिष्ठा हम अवश्य करेंगे। राजाओं के प्रति हमारा ऐसा बर्ताव होना चाहिए कि हमारे प्रति उनकी प्रेम की भावना बनी रहे। हम चाहते हैं कि राजस्थान की प्रजा पुलिस के डंडे के डर से शान्ति न रखे, बल्कि राजधर्म और प्रजाधर्म को समझकर शान्ति रखे, तब हमारा काम चल सकेगा।
हमें राजपूताना की प्रजा को प्रजाधर्म सिखाना है। तो प्रजाधर्म तो यह है कि प्रजा अपना दरवाज़ा खुला रखे और गरीब अपनी झोपड़ी को अपना किला समझ लें। उसको भी पुलिस की ज़रूरत नहीं पड़े। इस प्रकार की हवा हम पैदा करें, तब हम राजपूताना को उठा सकते हैं और तन मन से अपना कर्त्तव्य पूरा कर सकते हैं। कांग्रेस में काम करने वाले जो लोग है, जिन्होंने आज तक इतनी कुर्बानी की है और काफी कष्ट उठाया है, उनकी परीक्षा का समय अब आया है। उनको तो अब दूसरे रास्ते पर चलना है। जिस तरह हमारे राजाओं ने स्वीकार कर लिया है कि वे स्वेच्छा से दूसरे रास्ते पर चलेंगे। उसी तरह जागीरदार लोगों को भी समझाने की कोशिश मैं कर रहा हूँ। उन्हें भी अब दूसरे रास्ते पर चलना है। इसी तरह हम राम समझ-बूझकर सच्चे रास्ते चलें, तब हमारा काम बन सकता है। आंखिर हमने राजपूताना का एकीकरण किया और हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता प्राप्त की, इस सब का मतलब क्या है आज हमारे मुल्क में हमें स्वेच्छा से काम करने का पहला अवसर मिला है, उसका हमें पूरा उपयोग करना है। ईश्वर की कृपा से गुलामी की इतनी सदियों में भी इस धरती में जो ऋद्धि- सिद्धि’ भरी पड़ी है, उसमें से कोई चोरी नहीं कर सका। तो उसको हमें निकालना है। जो धन हिन्दुस्तान के उदर में भरा है, उसको हमें निकालना है और यदि हम सच्चे दिल से काम करेंगे तो हमारे मुल्क में गरीबी नहीं रहेगी। लेकिन उसके लिए हमें शान्ति चाहिए। उसके लिए हम एक दूसरे से प्रेम करें और अपनी-अपनी मर्यादा को समझें । खाली पुलिस के डंडे से शान्ति नहीं चाहिए। इस तरह शान्ति रह जरूर सकती है, लेकिन वह काम की चीज़ नहीं है। असल चीज़ वह है, जब हमें कम से कम पुलिस का उपयोग करना पड़े।
राजपूताना में आज नये साल का प्रारम्भ है। यहाँ आज के दिवस साल बदलता है। शक बदलता है। यह नया वर्ष है। तो आज के दिन हमें नए महा-राजस्थान के महत्व को पूर्ण रीति से समझ लेना चाहिए। आज अपना हृदय साफ कर ईश्वर से हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें राजस्थान के लिए योग्य राजस्थानी बनाये। राजस्थान को उठाने के लिए, राजपूतानी प्रजा की सेवा के लिए, ईश्वर हमको शक्ति और बुद्धि दे। आज इस शुभ दिन हमें ईश्वर का आशीर्वाद माँगना है। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सब मेरे साथ राजस्थान की सेवा की इस प्रतिज्ञा में, इस प्रार्थना में, शरीक होंगे। जयहिन्द!