सांस्कृतिक मार्क्सवाद के निशाने पर हमारी परिवार व्यवस्था

सांस्कृतिक मार्क्सवाद के निशाने पर हमारी परिवार व्यवस्था

डॉ. अजय खेमरिया

सांस्कृतिक मार्क्सवाद के निशाने पर हमारी परिवार व्यवस्थासांस्कृतिक मार्क्सवाद के निशाने पर हमारी परिवार व्यवस्था

सामाजिक गतिकी के संकेत बता रहे हैं कि भारत में परिवार व्यवस्था के विघटन की जो शुरुआत आधुनिकता के नाम पर हुई थी, उसने विकरालता ग्रहण कर ली है। बेंगलुरु के एक एआई इंजीनियर की आत्महत्या का शोर सोशल और अन्य मीडिया प्लेटफार्म से शांत हो चुका है। फिर कोई ऐसी ही घटना कुछ दिनों तक सुर्खियों में रहेगी और यह क्रम कहाँ जाकर थमेगा इसकी ओर किसी का ध्यान नही है। एकल परिवार की वकालत और आवश्यकता से शुरू हुआ कल्चरल मर्क्सिज्म का खेल लिव इन रिलेशनशिप, एकल अभिभावक, तलाक और गे जीवन की वैधानिकता के पड़ाव पार करता हुआ हिन्दू समाज के सनातनी मूल्यों को समाप्त करने के एजेंडे पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।

पारिवारिक जीवन सूत्रों से विचलन के परिणाम भविष्य के जीवन की एक ऐसी रेखा खींच रहे हैं कि न पति पत्नी सुखी हैं, न कुटम्बजन यहां तक कि मासूम बच्चों का बचपन भी।

नेशनल फैमिली एंड हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि भारत में तलाक के मामले 35 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं। यह ट्रेंड 2019 से 2024 के बीच का है। एक रिसर्च फर्म कैंटर के अनुसार, देश में लगभग 45 लाख दम्पति अलग रहने के लिए अदालतों में फंसे हुए हैं। इन हालातों के बीच प्रश्न यह है कि क्या भारत में सांस्कृतिक मार्क्सवाद अपने उद्देश्य में सफल हो रहा है और हमारे आने वाले परिवार क्या स्वयं को अपनी पहचान के साथ विद्यमान रख पायेंगे?

आधी जनसंख्या एकल परिवार

कभी संयुक्त परिवार भारत के सामाजिक जीवन की रीढ़ थे। आज ये बिखर गए हैं।1990 तक केवल 21 प्रतिशत परिवार एकल थे। यानी माता-पिता और उनके बच्चे जिनकी मानक संख्या 01 से 04 गिनी जाती थी, 2008 में यह बढ़कर 37 प्रतिशत पर आ गई है और 2022 के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में कुल चिन्हित परिवार में से आधे यानी 50 प्रतिशत एकल परिवार में बदल हो चुके हैं।यानी आधे परिवारों में दादा-दादी, काका-काकी, ताऊ-ताई, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा जैसे रिश्ते नाते चलन में ही नहीं रह गए हैं।

दक्षिण में सर्वाधिक एकल परिवार

एकल परिवार और उच्च शिक्षण या यूं कहें बेहतर जीवन स्तर का दुष्प्रभाव संयुक्त परिवार व्यवस्था पर पड़ रहा है। दक्षिण भारत के राज्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरीकरण, जनसँख्या स्थिरीकरण और प्रति व्यक्ति आय पर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि देश में सर्वाधिक 69 प्रतिशत एकल परिवार कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में हैं। दूसरे नंबर पर पश्चिम का भाग है, जिसमें महाराष्ट्र शामिल है। तीसरे क्रम पर पूर्वी भाग एवं सबसे नीचे उत्तरी भारत है, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरीकरण जैसे पैरामीटर अभी भी कमजोर हैं।

महाराष्ट्र में सर्वाधिक तलाक

महाराष्‍ट्र का उल्लेख आते ही मुंबई, पुणे, ठाणे ध्यान में आते हैं।शहरीकरण, आधुनिकता, ग्लैमर और सपनों की दुनिया। आपको जानकर अजीब लगेगा कि सम्पन्नता और आधुनिकता वाले इस राज्य में 18.7% की तलाक दर है। यह देश में सबसे अधिक है।

इस मामले में दूसरे स्थान पर कर्नाटक राज्‍य है, जहां यह दर 11.7% है। यह राज्य भी तुलनात्मक रूप से सम्पन्न और उच्च शहरीकरण के लिए जाना जाता है। तलाक के मामले में तीसरे स्‍थान पर पश्चिम बंगाल राज्‍य हैं जहां पर तलाक की दर 8.2% है। देश की राजधानी दिल्‍ली चौथे स्‍थान पर है। दिल्‍ली में पति-पत्नी के झगड़ों और तलाक की दर 7.7 प्रतिशत दर्ज की गई है। पांचवें नंबर पर तमिलनाडु राज्‍य है, जहां पर तलाक की दर लगभग 7.1 प्रतिशत है।

छठे नम्बर पर तेलंगाना ‍ है। जहां पर तलाक की दर लगभग 6.7% प्रतिशत है।

देश का सबसे साक्षर राज्‍य केरल तलाक के मामलों भी पीछे नहीं है। यहां तलाक दर लगभग 6.3% है।

दिल्ली, मुंबई में 30 प्रतिशत तलाक

दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु, पूना जैसे शहरों में तलाक की दर 30 प्रतिशत से भी अधिक है। स्पष्ट है शहरीकरण और इसके साथ आये कॉरपोरेट कल्चर ने परिवार व्यवस्था और इसके साथ जुड़े दायित्वबोध को खोखला कर दिया है। इन शहरों के लोक जीवन से जुड़े मैकेंजी के एक अध्ययन के अनुसार पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के बीच तलाक का प्रतिशत तेजी से बढ़ रहा है।कामकाजी महिलाओं में काम के बोझ और कतिपय आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उन्हें परिवार की परम्परागत भूमिकाओं से स्वतंत्रता की ओर उन्मुख किया है। परिणामस्वरूप मुंबई, पुणे, बेंगलुरू, हैदराबाद, दिल्ली एनसीआर में कामकाजी महिलाओं के बीच तलाक के प्रकरण तेजी से बढ़े हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2005 में भारत में तलाक लेने की दर 0.6 प्रतिशत थी। वहीं यह दर 2019 में बढ़कर 1.1 प्रतिशत हो गई है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कोरोना महामारी के बाद भारत के लगभग सभी राज्‍यों में पति-पत्‍नी के बीच तलाक के मामलों में तेजी से बढ़ोत्‍तरी हुई है।

40 वर्ष तक की महिला अधिक तनावग्रस्त

अमेरिकी रिसर्च एनालिटिक्स कम्पनी गैलप ने ग्लोबल वर्कप्लेस रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र में काम करने वाले 86 प्रतिशत कर्मचारियों के बीच उच्च तनाव की बीमारी घर कर रही है।

योर दोस्त नामक एक संस्था ने भारत के बड़े शहरों में 5000 प्रोफेशनल्स से बात कर यह दावा किया है कि 31 से 40 वर्ष की महिला कर्मचारियों में 72.2 प्रतिशत कर्मचारी भयंकर रूप से तनाव औऱ गुस्से का शिकार हैं।जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 53.64 पाया गया है। इमोशनल वैलनेस स्टेट ऑफ इम्पलाइज नामक इस विस्तृत रिपोर्ट में शहरीकरण और एकाकीपन से जूझते भारतीयों का खुलासा है।

इस रिपोर्ट का दूसरा पक्ष यह है कि भारतीय युवाओं विशेषकर कामकाजी युवाओं के बीच तनाव प्रबंधन का पारिवारिक तन्त्र बुरी तरह से छिन्न भिन्न हो गया है।कामकाजी तनाव और करियर की दुविधाओं के बीच भारतीय दम्पति स्वयं को अकेला पा रहे हैं। एक दौर में संयुक्त परिवार इन तरह की सभी परिस्थितियों में भावनात्मक हीलिंग का काम करते थे।

टूटते परिवार और बढ़ती आत्महत्याएं

परिवार के सिकुड़ते दायरे का दुष्प्रभाव चौतरफा नजर आने लगा है। बेहद चिंतनीय है कि विश्व भर में भारत ऐसा अकेला देश हो गया है, जहां सर्वाधिक लोग आत्महत्या कर रहे हैं। पिछले वर्ष लगभग 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 41 प्रतिशत लोग 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के थे। सेपष्ट है मानसिक रूप से हमारा युवा समाज एक उद्वेलित मनस्थिति में जी रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण मानसिक स्वास्थ्य का प्रतिकूल होना है। रिलेशनशिप कोच माधुरी शर्मा का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने का सबसे अच्छा उपचार अपने परिवार, मित्रों के साथ समय व्यतीत करना है।

यों टूट रही है दाम्पत्य की डोर?

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में पति-पत्‍नी में तलाक की सबसे बड़ा कारण घरेलू हिंसा और धोखा देना है। इसके बाद विवाह के बाद लगातार अपमान सहना और भावानात्‍मक समर्पण की कमी के कारण भी तलाक हो रहे हैं। वर्ष 2021 से 2022 के बीच 25 से 34 वर्ष की आयु वाले लोगों ने सबसे अधिक तलाक लिए। इसके बाद 18 से 24 वर्ष के लोगों ने तलाक के लिए सबसे अधिक कोर्ट का रुख किया। 35 से 44 और फिर 45 से 54 वर्ष की आयु वाले पति पत्नी भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। ग्रे तलाक यानी 50 वर्ष के बाद तलाक का चलन भी हमारे देश में बढ़ रहा है। यानी 25 से 30 वर्ष साथ गुजारने वाले दम्पति भी तलाक जैसे विकल्पों पर जा रहे हैं।

परिवार प्रबोधन और संघ

भारतीय समाज में आये इस विचलन के भावी खतरों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बहुत पहले ही समझ लिया था, इसलिए संघ के पदाधिकारियों ने इसे लेकर अपनी चिंताओं को लगातार अभिव्यक्त किया है। संघ ने शताब्दी वर्ष में जो प्रमुख कार्य अपने हाथ में लिए हैं, उनमें परिवार व्यवस्था विशेषकर बदलती परिस्थितियों में परिवार भाव की पुनर्स्थापना है। संघ के कार्यकर्ता कुटुंब प्रबोधन पर विशेष काम कर रहे हैं। इसके अंतर्गत स्वयंसेवक परिवार माह में दो बार अपने ही परिवार के साथ बैठना आरम्भ कर रहे हैं। इसी तरह एक दिन मित्र परिवारों के साथ चर्चा, भोजन, नाश्ता या अन्य अवसरों पर मिलन का काम किया जा रहा है। समाज में इस बात का जागरण किया जा रहा है कि मोबाइल, टीवी का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। क्योंकि मोबाइल ने नकली आभासी दुनिया का निर्माण कर परिवार में संवाद को समाप्त कर दिया है।

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