सावरकर, यातनाएं भी जिनसे हार गईं..
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भाग पाँच
अनन्य
जैसे ही विनायक सावरकर ने इस यातनागृह में प्रवेश किया, उनका परिचय जेलर बैरी से हुआ, जो अपनी विलक्षणताओं और यातना के अपने असाधारण कठोर तरीकों के लिए कुख्यात था। जेलर बैरी ने सावरकर से पूछा कि जब तक उनकी सजा पूरी होगी, तब तक वह जिंदा कैसे रहेंगे? उन्होंने उत्तर दिया कि क्या अंग्रेज मेरी सजा के अंत तक देश पर शासन कर पाएंगे?
सावरकर की कोठरी ऊपर के तल पर थी, कोठरियों की पूरी पंक्ति थी। पर एक के अतिरिक्त सभी को जानबूझकर खाली रखा गया। विनायक को वहाँ 6 माह के लिए एकांत कारावास में रहना था। उनके कष्ट को बढ़ाने के लिए, उनके सेल के सामने रणनीतिक रूप से फांसी का स्टेण्ड था। जिससे सावरकर वह दृश्य देखकर भयभीत हो सकें। किन्तु जेलर की सोच के विपरीत उन्होंने इस परिस्थति का दृढ़ता से सामना किया।
सावरकर के आने के एक सप्ताह के भीतर, एक रात जब वे सो रहे थे, एक पत्थर कोठरी की लोहे की सलाखों से टकराया। सावरकर ने तुरन्त कागज का टुकड़ा अपने मुंह में छिपा लिया था। यह एक चेतावनी थी कि सेल्युलर जेल में अत्यधिक यातनाओं को सहन न कर पाने के बाद कुछ कैदी ब्रिटिश जासूस बन जाते थे।
सावरकर की वर्दी पर भयंकर अक्षर “D” लिखा हुआ था। कैदियों को रात में अपनी कोठरी के फर्श पर शौच करने के लिए बाध्य किया जाता था। यदि कोई कैदी सफाईकर्मी से अपनी कोठरी की सफाई करने का अनुरोध करता था, तो उसे कोठरी में खड़े होने की सजा का सामना करना पड़ता था। हाथ जंजीरों से बांधकर जंजीर छत से बांध दी जाती थी। सावरकर को भी जंजीर बंधे हाथ लगातार ऊपर करके खड़ा होना पड़ा।
सेल्युलर जेल में तेल निकालने वाली घाणी के काम करने की प्रक्रिया में बैलों की जगह बन्दियों को चक्की में जोता था।कैदियों को प्रतिदिन 30 पाउंड नारियल का तेल निकालना पड़ता था। कैदियों को नारियल की सूखी जटाओं से रस्सियाँ भी बनानी पड़ती थीं, जिससे उनके हाथों से रक्त निकलता था।
सावरकर को एक राजनीतिक कैदी होने के कारण पुस्तकें और समाचार पत्र पढ़ने के सभी अधिकार थे, लेकिन उन्हें पूरी तरह से वंचित कर दिया गया था। सावरकर को आपराधिक बंदी की बजाय राजनैतिक बंदी की मान्यता प्राप्त करने में अंग्रेज अधिकारियों से बहुत संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष में वे विजयी हुए। उनके साथ बाद में राजनीतिक कैदी की तरह व्यवहार किया गया।