सुरक्षा परिषद में बहुमत से भारत के अस्थाई सदस्य चुने जाने के क्या मायने हैं?
प्रीति शर्मा
भारत को पिछले दिनों वर्ष 2021-22 के लिए आठवीं बार एशिया पैसिफिक कैटेगरी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारी मतों से चुन लिया गया।
भारत सदैव ही शांति का समर्थक राष्ट्र रहा है, जिसने अब तक पंचशील के सिद्धांतों का समर्थन करते हुए शांति का पालन किया है। ऐसे शांति परायण राष्ट्र की ओजस्विता का परिचय समय-समय पर वैश्विक मंचों पर भारत को प्राप्त समर्थन से स्पष्ट होता रहा है। भारत को पिछले दिनों वर्ष 2021-22 के लिए आठवीं बार एशिया पैसिफिक कैटेगरी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारी मतों से चुना गया।
संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों के राजनयिकों के मतों में से 184 मत भारत के पक्ष में रहे जो भारत की लोकप्रियता एवं भारतीय शांति एवं सौहार्द के सिद्धांतों के वैश्विक समर्थन का उल्लेख करता है। पूर्व में भारत 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 एवं 2011-12 में सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत की लोकप्रियता और भारतीय संस्कृति एवं सिद्धांतों की स्वीकार्यता निरंतर प्रगतिशील है। वर्तमान में कोविड काल में भारतीय संस्कृति, शिक्षा पद्धति एवं औषधीय तथा यौगिक शक्ति का सार्वभौमिक समर्थन विभिन्न देशों के राष्ट्र अध्यक्षों के उद्बोधनों में परिलक्षित होता रहा है।
हाल ही में रूस ने भारत की संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता का समर्थन किया है और रूसी विदेश मंत्री सर गईला वारो के शब्दों में भारत संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्य के रूप में एक मजबूत प्रतिनिधि राष्ट्र है। उक्त सभी उदाहरण भारत की प्रज्ञा एवं विवेकपूर्ण निर्णय क्षमता के समक्ष वैश्विक समर्थन को दर्शाता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है की भारत चीन सीमा विवाद में भारत की स्थिति को विश्व एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्वीकारता है। ऐसे सकारात्मक वातावरण में भारत के समक्ष चीन द्वारा उत्पन्न की गई चुनौती का शांतिपूर्ण समाधान कोई कठिन कार्य नहीं है।
भारत और चीन के बीच वास्तविक सीमा रेखा पर पिछले दिनों से निरंतर चल रहा गतिरोध जहां एक ओर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रहा है वहीं दूसरी ओर दोनों देशों के बीच आपसी कूटनीतिक वार्ता का एक दौर शुरू हुआ तो यह आशा की किरण जागी कि भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव में अब विराम की स्थिति आएगी। भारत और चीन दोनों पक्षों की कूटनीतिक बैठक में निर्णय भी लिया गया कि दोनों देश सीमा विवाद का कूटनीतिक एवं सैन्य स्तर पर शांतिपूर्ण समाधान करेंगे। यह निर्णय दोनों देशों की तरफ से एक विवेकपूर्ण प्रयास है। किंतु चीन एक ऐसा भ्रामक पड़ोसी देश है जिसके साथ कोई देश शांति स्थापना के प्रयास करे भी तो ये कितनी देर तक चलेंगे यह कहना बहुत कठिन है । ऐसा इसलिए क्योंकि शांति वार्ता के प्रयास के तुरंत बाद देपसांग में चीनी सैनिकों द्वारा वास्तविक सीमा रेखा के पास भारत की ओर 18 किलोमीटर तक सीमा पार कर वाई जंक्शन तक पुनः घुसपैठ की गई है जो भारत चीन सीमा विवाद के समाधान के संदर्भ में गंभीर चिंता का विषय है।
कोरोना काल में आर्थिक नुकसान के चलते चीन निश्चय ही अपने वैश्विक व्यापार को पुन: संगठित करना चाहेगा, जिसके लिए उसे अपने रेशम मार्ग को वन बेल्ट वन रोड के माध्यम से सुरक्षित करने की इच्छा है। अतः भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के पुनः गरमाने के पीछे चीन का आर्थिक हित भी एक कारण है। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी कूटनीतिक गतिविधियों में कुछ सारगर्भित परिवर्तन लाना होगा।
भारत द्वारा आंतरिक स्तर पर व्यापार को संबल देने के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के लिए आत्मनिर्भर भारत की नीति को अपनाना ही होगा। वैश्वीकरण के वातावरण में पूरी तरह से आयात संबंधी निर्भरता का उन्मूलन न भी हो पाए किंतु इस दिशा में यह सकारात्मक प्रयास कर घरेलू व्यापार तथा लघु व्यापार क्षेत्रों को संगठित करना होगा। इसी के साथ सामरिक दृष्टि से भारत वैश्विक समर्थन द्वारा धीरे धीरे चीन पर दबाव की स्थिति उत्पन्न कर सकता है जो इस समस्या का निश्चय ही समाधान करेगा।
Excellent
शानदार विश्लेषण
Good analysis of India’s stature and support in the international arena and the challenges/opportunities pertaining to the prevailing India China conflict!