अनुसूचित जाति के छात्र की मौत का मामला : सुराणा गॉंव बना प्रदेश की राजनीति का केंद्र
दीप सिंह दूदवा
अनुसूचित जाति के छात्र की मौत का मामला : सुराणा गॉंव बना प्रदेश की राजनीति का केंद्र
13 अगस्त को दैनिक भास्कर में समाचार छपा कि सवर्ण अध्यापक की मटकी को छूने व उससे पानी पीने पर अध्यापक छैलसिंह दहिया ने अनुसूचित जाति के छात्र को इतना मारा कि उसकी 23 दिन बाद इलाज के दौरान मौत हो गई। समाचार पढ़ते ही लोग इस घटना व उस अध्यापक के प्रति उद्वेलित हो गये, जो कि स्वाभाविक ही था। एक मासूम को इतना मारना कि उसकी मौत ही हो जाए अमानवीयता की श्रेणी में ही माना जाएगा। जिसने भी इस समाचार को पढ़ा, भावुक हो गया। सोशल मीडिया पर बच्चे का मासूमियत से नाचते हुए (तारातरा वाला वीडियो) और पिटते हुए (पटना कोचिंग सेंटर में किसी अन्य बच्चे का) वीडियो वायरल होने लगा। लिबरल गैंग को अपना मनपसंद एंगल “दलित” बनाम “सवर्ण” मिल गया। बिना देर किए पूरा इको सिस्टम सक्रिय हो गया। अचानक सुराणा गॉंव प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन गया।
क्या था मामला
बच्चे के चाचा ने रिपोर्ट दर्ज करवाई, जिसमें लिखा था कि छात्र इंद्रकुमार ने प्यास लगने पर स्कूल में रखे शिक्षक के विशेष मटके से पानी पी लिया, अध्यापक को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। इस पर अध्यापक ने बच्चे की अपशब्द कहते हुए पिटाई कर दी। पिटाई इतनी ज्यादा थी कि बच्चे का इलाज कराना पड़ा और इलाज के दौरान 23 वें दिन उसकी मौत हो गई।
लिबरल गैंग ने जब मामले को “दलित” बनाम “सवर्ण” बनाकर हवा देनी शुरू की तो नेता से लेकर मीडिया तक सब मुखर हो गए। जिला प्रशासन, पुलिस, पत्रकार, राजस्थान सरकार के खुफिया विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी, जनप्रतिनिधियों, छात्र के रिश्तेदारों व अनुसूचित जाति समाज के लोगों ने अपने अपने स्तर पर उस मटकी को ढूँढने का प्रयास किया। स्कूल के 80% अध्यापकों (जो अनुसूचित जाति समाज से आते हैं) व 350 छात्रों से एक-एक कर पूछताछ की गई, लेकिन उस अदृश्य मटकी (रहस्यमयी मटकी) का पता नहीं चल सका। हॉं, जब पड़ताल होनी शुरू हुई तो नए नए खुलासे जरूर होने लगे।
भास्कर की पड़ताल में ही स्वर्गीय छात्र के पिता देवाराम (समाजसेवी व स्थानीय भीमसेना, कोषाध्यक्ष) ने कहा कि उनका बेटा स्कूल की बजाय अध्यापक के निजी निवास से पानी पीकर आया था। इससे आगे उन्होंने कुछ कहने से मना कर दिया।
उठते सवाल
यहॉं ध्यान देने वाली बात यह है कि एक ऐसा शिक्षक व स्कूल संचालक जो अपने साथी स्टाफ भील (अनुसूचित जाति) के साथ रहता था, साथ मिलकर खाना बनाता और खाता भी था (स्वयं उस शिक्षक का यह कहना है)। उसके स्कूल में 80% से अधिक स्टाफ अनुसूचित जाति का है, 150 के लगभग छात्र भी अनुसूचित जाति के हैं। फिर भी क्या वह तीसरी कक्षा के मासूम छात्र इंद्रकुमार से उसके अनुसूचित जाति का होने के कारण घृणा कर सकता है? घटना पर कई लोगों से बात हुई। अनेक लोगों का कहना था कि सच्चाई जानने के लिए घटना की सीबीआई जाँच व घटना से जुड़े सभी लोगों का नार्को टेस्ट होना चाहिए। तभी इस रहस्यमय घटना की सच्चाई सामने आयेगी। तब ही दोषियों को कडी़ से कडी़ सजा दी जा सकेगी।