सुहागिनों का पर्व है करवा चौथ
रमेश सर्राफ धमोरा
आज के नये जमाने में भी हमारे देश में महिलायें हर वर्ष करवा चौथ का व्रत पहले की तरह पूरी निष्ठा व भावना से मनाती है। आधुनिक होते समाज में भी महिलायें अपने पति की दीर्घायु को लेकर सचेत रहती हैं। इसीलिये वो पति की लम्बी उम्र की कामना के साथ करवा चौथ का व्रत रखना नहीं भूलती हैं। पत्नी का अपने पति से कितने भी गिले-शिकवे रहें हो लेकिन करवा चौथ आते-आते सब भूलकर वो एकाग्र चित्त से अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना से व्रत जरूर करती है।
यह व्रत लगातार 12 अथवा 16 वर्ष तक हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियां आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। इसीलिये सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करती है।
भारत एक धर्म प्रधान व आस्थावान देश हैं। यहां साल के सभी दिनों का महत्व है तथा साल का हर दिन पवित्र माना जाता है। भारत में करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब का पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चन्द्रमा दर्शन के बाद सम्पूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलायें करवा चौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं।
किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। जो सुहागिन स्त्रियां अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे व्रत रखती हैं।
शास्त्रों के अनुसार पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। करवा चौथ में दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरान्त ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवा चौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं। लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
करवा चौथ के बारे में व्रत करने वाली महिलाएं कहानी सुनती हैं और रात को पूजन कर चंद्रमा को अर्ध्य देकर फिर भोजन ग्रहण करती हैं। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है। जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं।
कहानी के अनुसार इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी। तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पिया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है। पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी। तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा। तब इंद्राणी ने बताया कि तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। आज भी हिन्दू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है। तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है। भारत देश में चौथ माता का सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गांव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गांव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। यहां के चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने करवाया था।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)