सेवा के रूप में पाठशाला संचालन एक व्रत- डॉ. मोहन भागवत
सेवा के रूप में पाठशाला संचालन एक व्रत- डॉ. मोहन भागवत
चंद्रपुर, 27 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि पाठशाला चलाना कोई आसान काम नहीं रहा। शिक्षा तथा आरोग्य ये दोनों अब महंगे हो चुके हैं। और तो और, कुछ लोग धन कमाने की अभिलाषा से स्कूल चलाते हैं। सेवा के रूप में पाठशाला संचालन एक व्रत ही है। व्रत को निग्रहता पूर्वक तथा निष्ठा से निभाना होता है। सन्मित्र सैनिकी शाला उस दिशा में प्रयासरत है, यह आनंद तथा अभिनन्दन की बात है। बुधवार, 25 दिसंबर को सन्मित्र सैनिकी शाला के वार्षिकोत्सव के अवसर पर सरसंघचालक ने ये उद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम के अध्यक्ष सन्मित्र मंडल के अध्यक्ष डॉ. परमानंद अंदनकर, सचिव निलेश चोरे, शाला की प्राचार्या अरुंधती कावडकर, कमांडेंट सुरेंद्र कुमार राणा मंच पर उपस्थित थे।
सरसंघचालक ने कहा कि सेवा के रूप में शाला चलाना केवल शाला व्यवस्थापन का दायित्व नहीं, अपितु समाज का भी है। उदरभरण हेतु शिक्षा प्राप्ति यह संकुचित परिभाषा है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य मानव को विचारशील बनाना है। सुबुद्धि देने वाली, संवेदना निर्माण करने वाली शिक्षा हो। दूसरों का विचार करने वाली शिक्षा हो। स्वयं सीख कर अपने परिवार का जीवन उन्नत करने वाले को अच्छा माना जाता है। परिवार के साथ ही गांव के लिए भागदौड़ करने वाले को उस से अधिक मान मिलता है। अपने देश के लिए कार्यरत रह चुके लोगों की जयंती, पुण्यतिथि मनाई जाती है। जो समूचे विश्व के लिए प्रयासरत रहते हैं, उनका विश्व वंदन करता है. स्वामी विवेकानंद जैसा जीवन हो तो वह सार्थक होता है।
डॉ. परमानंद अंदनकर ने कहा कि सन्मित्र मंडल‘सर्वे भवन्तु सखिनः सर्वे सन्तु निरामया’के उद्देश्य से कार्यरत है। प्रस्तावना निलेश चोरे ने रखी, आभार प्रदर्शन अरुंधती कावडकर ने किया। समारोह में ‘सन्मित्र बेस्ट कंपनी अवार्ड’ से नेताजी सुभाष कंपनी को पुरस्कृत किया गया। ‘सन्मित्र बेस्ट कॅडेट से नायक श्रीकांत वाडणकर का सत्कार हुआ।
डॉ. मोहन भागवत के सम्मुख सन्मित्र सैनिकी शाला के बाल सैनिकों ने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। व्यायाम योग, योगासन, नियुद्ध, मल्लखंब तथा घोष प्रात्यक्षिक के साथ अन्य प्रस्तुतियां दीं।