सोशल मीडिया के माध्यम से नारी सम्मान के संस्कार का संचार कर रहे हैं शिक्षक
सोशल मीडिया के माध्यम से नारी सम्मान के संस्कार का संचार कर रहे हैं शिक्षक
जयपुर, 05 अक्टूबर। सूचना तकनीक के दौर में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए राजस्थान के सैकड़ों शिक्षक पिछले 8 वर्षों से एक अनूठे अभियान का संचालन कर रहे हैं। यह अभियान है छात्र जीवन से ही बच्चों को नारी सम्मान का प्रशिक्षण देने का और इसका व्यावहारिक तरीका अपनाया है नवरात्र में कन्या पूजन के आयोजन से। निर्भया कांड के बाद बने वातावरण में राजस्थान के जालौर के एक विद्यालय से प्रारंभ हुआ यह अभियान सोशल मीडिया के सहारे राज्यव्यापी हुआ और अब राज्य की सीमाओं के बाहर भी कई राज्यों के विद्यालयों में यह आयोजन होने लगे हैं।
आयोजकों का मानना है कि छात्र जीवन से नारी सम्मान का प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाए तो बच्चे बड़े होकर अपने जीवन में अनैतिक आचरण से बचे रहेंगे। कन्या पूजन कोई धार्मिक आयोजन नहीं होकर नारी सम्मान के प्रशिक्षण की मनोवैज्ञानिक पद्धति है। कन्या पूजन के इस अभियान के संचालन के लिए व्हाट्सएप पर 12 समूह बनाए गए हैं। ये समूह संभाग अनुसार बनाए गए हैं। जिन जिलों में अधिक कार्यक्रम हो रहे हैं उनके जिले अनुसार भी व्हाट्सएप समूह बनाए गए हैं। पूरे अभियान की मॉनिटरिंग करने के लिए एक नोडल व्हाट्सएप ग्रुप भी बना है जिसमें राज्य के विभिन्न जिलों के शिक्षक, शिक्षाविद, शिक्षा अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार एवं साहित्यकार जुड़े हुए हैं।
इन 12 व्हाट्सएप समूह में लगभग 60 एडमिन हैं। सभी 33 जिलों में सैकड़ों शिक्षक जुड़े हैं। विशेष बात यह भी है कि सात साल से चल रहे ये व्हाट्सएप समूह कार्यक्रम समाप्त होने के बाद साल भर के लिए लॉक कर दिए जाते हैं, अर्थात इन्हें ओनली एडमिन मोड पर कर दिया जाता है ताकि समूह के सदस्य अप्रासंगिक संदेशों से परेशान न हों। व्हाट्सएप के साथ-साथ फेसबुक, यूट्यूब आदि का भी इस अभियान में सार्थक प्रयोग किया जा रहा है। इस अनूठे अभियान के लिए एक विशेष कन्या पूजन मनुहार गीत की रचना भी की गई है।
इस अभियान को प्रारंभ करने वाले शिक्षक संदीप जोशी बताते हैं कि टीवी, इंटरनेट, विज्ञापन, धारावाहिक, फिल्मी गाने बहुत सारी चीजें हैं जो बालकों की मन और मस्तिष्क को प्रदूषित कर सकती हैं और कर भी रही हैं। सार्वजनिक और सामूहिक कन्या पूजन एक मनोवैज्ञानिक तरीका है जिससे यह गंदगी मन और मस्तिष्क से बाहर निकले, मन में नारी सम्मान का भाव जागृत होता है। विद्यार्थी काल संवेग, आवेग और तूफान की अवस्था मानी जाती है। इस उम्र में जीवन को सही दिशा मिल जाए तो व्यक्ति को नैतिक पतन की मानसिकता से बचाया जा सकता है। कन्या पूजन कार्यक्रम मे कन्या के पैरों का मैल ही नहीं धुलता, बल्कि पैर धोने वाले के मन का मैल भी साफ होता है। ऐसे आयोजन से जातीय भेदभाव की बजाय सामाजिक समरसता का भाव जागृत होता है। बालिकाओं में भी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान जागृत होता है। और यही इस कार्यक्रम का उद्देश्य है।
अजमेर के शिक्षक दिनेश पिछले पांच साल से इस मुहिम के साथ हैं, उनका मानना है कि लगातार और व्यापक रूप से होने वाले ऐसे आयोजनों से सार्थक वातावरण बनेगा और यह सात्विक वातावरण ही संस्कार देगा, ये संस्कार ही नारी सम्मान की गारंटी हैं, सब प्रकार के भेदभावों की समाप्ति की गारंटी है।
वर्ष 2019 में राज्य के सभी 35 जिलों के 1500 से अधिक विद्यालय में यह आयोजन हुए जिसमें 22 हजार 200 शिक्षकों और 2 लाख 25 हजार छात्रों ने मिलकर कक्षा एक से पांच तक की 45 हजार छात्राओं का पूजन कर जीवन पर्यंत नारी सम्मान का, लैंगिक और जातीय भेदभाव से मुक्ति का संकल्प लिया।
कोरोना काल में जब विद्यालय बंद थे तब यह कन्या पूजन अभियान ‘मोहल्ले की बेटियां’ नाम से संचालित किया गया। इसमें शिक्षकों ने अपने अपने मोहल्ले में छोटे समूह में इन कार्यक्रमों का आयोजन किया। इस वर्ष भी पूरे प्रदेश में नारी सम्मान का संस्कार सिखाता यह अभियान सफलता पूर्वक चला। अंतिम रूप से डाटा कलेक्शन अभी नहीं हुआ है। किन्तु राज्य के सारे जिलों में सैकड़ों विद्यालयों में इस वर्ष भी कन्या पूजन के कार्यक्रम हुए हैं।
इस अभियान से जुड़े सेवानिवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी संतोष कुमार का मानना है कि कानून का अपना एक बड़ा पक्ष है, पर उसकी अपनी सीमाएं भी हैं। व्यापक समाधान शिक्षा से ही होगा, चरित्रवान बनने की शिक्षा संस्कारों के संचार से साकार होगी, उसी दिशा का एक प्रयास यह ‘कन्या पूजन’ कार्यक्रम है।