आर्थिक स्वतंत्रता का मूल मंत्र स्वदेशी आंदोलन
कौशल अरोड़ा
स्वदेशी आंदोलन के दौरान 22 अगस्त 1921 को विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। इस नाते यह दिन आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी आंदोलन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
किसी भी राष्ट्र के लिये आत्मनिर्भर होना अनिवार्य है। यह आत्मनिर्भरता उसके विचार, व्यापार व व्यवहार से जानी जाती है। जो राष्ट्र अपनी वस्तुओं पर जितना अधिक निर्भर होगा उतना ही वह विकसित भी होगा। यह उस राष्ट्र की आंतरिक संचित परिपक्वता को भी दर्शाता है। अंग्रेजों के भारत आगमन से पूर्व हमारा व्यापार आत्मनिर्भर था। भारत की रियासतों पर किसी बाहरी का ऋण नहीं था। इसी कारण भारत वर्ष स्वंसिद्ध विकसित और स्वतंत्र था। इसी व्यापारिक आचरण के कारण भारतीय व्यापार व्यवहार की ख्याति अन्य राष्ट्रों तक फैलने लगी। इन सभी को जानने के लिये विदेशियों ने भारत में व्यापार, शिक्षा, आध्यात्म के सहारे भारत में आना प्रारम्भ किया।
भारत सूती कपड़ों, जूट, मसाला, खनिज आदि का सबसे बड़ा निर्यातक था। भारतीय इतिहास में 31 दिसम्बर, 1600 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत से कच्चे माल को खरीद कर विदेशी ब्रिटिश कम्पनियों को देकर तैयार कराने का काम प्रारम्भ किया। इस तैयार माल को भारत की सभी रियासतों के साथ-साथ अन्य देशों को भी बेचा जाता था। अंग्रेजों की इस व्यापारिक नीति से भारत के कच्चे माल पर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया का कब्जा हो गया। अंग्रेजी अर्थव्यवस्था ने इस तरह भारतीय लघु और कुटीर उद्योगों को गहरा आघात पहुँचाया। जिससे आर्थिक स्थिति निम्न स्तर तक पहुंचने लगी।
ब्रिटिश इण्डिया ने आर्थिक स्तर पर भारत के व्यापार, खनिज, फसल व कच्चे माल पर प्रभुत्व जमाकर भारत को आर्थिक गुलाम बना दिया। जहाँ भारतीय रियासतों के राजा अपने रजवाड़ों की सीमा को बढ़ाने के लिये लड़ते रहे, वहीं दूसरी ओर कुटिल अंग्रेज भारत के राजाओं को लड़वाकर भारत की सीमाओं को अपने कब्जे में लेते चले गये। जिससे भारत भौगोलिक व आर्थिक दोनों स्तरों पर गुलाम बन गया। अंग्रेजों द्वारा दी गई इस गुलामी से भारत को स्वतंत्र कराने के लिये महात्मा गाँधी ने 1906 में स्वदेशी आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन को पूरे राष्ट्र में फैलाने में वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपतराय, अरविन्द घोष, रवीन्द्र नाथ टैगोर जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सर्वस्व योगदान मिला। इस आन्दोलन द्वारा जनता से विदेशी समान, खासतौर से कपड़े, मसाले, दैनिक उपयोग की वस्तुयें व उपयोगी सामान का बहिष्कार करने का आह्वान किया।
बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन को सफल बनाने के लिये विदेशी सामान का पूरी तरह बहिष्कार किया गया। इस आन्दोलन के कर्मवीरों ने बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात राज्यों में घर-घर जाकर विदेशी सामान एकत्र किया और बीच चौराहे पर 22 अगस्त, 1921 को इसकी होली जलाई। नागरिकों ने संकल्प लिया कि वह देश में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग करेंगे। जिससे ब्रिटिश सरकार की आर्थिक संरचना को धक्का लगा। स्वदेशी आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को आर्थिक हानि पहुंचाना व भारतीय कुटीर उद्योगों को पुनः आत्मनिर्भर बनाना था।