स्वागत, स्वागतम, स्वागतम् और सुस्वागतम्

कमलेश कमल
स्वागत, स्वागतम, स्वागतम् और सुस्वागतम्
स्वागत लिखें या ‘स्वागतम’? जानना चाहिए कि शुद्ध शब्द है– स्वागतम् या ‘स्वागत’। ‘स्वागतम’ अशुद्ध है। दरअस्ल (अरबी भाषा में शुद्ध रूप ‘दरअस्ल’ है; हिंदी में ‘दरअसल’ भी लिखा जाता है।) हिंदी में ‘स्वागत’ लिखना पर्याप्त है; स्वागतम लिखने पर संस्कृत का नियम लगेगा और तदनुसार इसे हलंत (स्वागतम्) किया जाना अनिवार्य है।
आइए, स्वागतम् शब्द को समझते हैं :– यह बना है– ‘सु+ आगतम्’ से। ‘सु’ का अर्थ है, अच्छा। आगत शब्द ‘आ’ उपसर्ग, ‘गम्’ धातु और ‘क्त’ प्रत्यय के योग से बना है; जिसका अर्थ है, आगमन को शुभ या अच्छा करना। [सु + आ + गम् + क्त = स्वागतम्]।
कुछ लोगों को लगता है कि सुस्वागतम् लिखने या कहने से अधिक आदर-सत्कार का बोध होता है, जबकि ऐसा नहीं है। वस्तुतः, भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता सदृश माना जाता है। यही कारण है कि उनके सम्मान में हम कोई कमी या कस्र (कसर) नहीं छोड़ना चाहते; लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि भाषा और व्याकरण को भूल जाएँ। यहाँ यह जान लेना उचित होगा कि अरबी भाषा के कस्र को हिंदी में मुखसुख की दृष्टि से ‘कसर’ भी लिखा जाता है और इसका अर्थ न्यूनता, कमी, त्रुटि, ख़ामी इत्यादि है।
अब सुस्वागतम् शब्द को देखते हैं : सु + सु + आगतम्। निश्चित ही, यह बेढंगा लग रहा है; क्योंकि पुनरावृत्ति-दोष स्पष्टतः परिलक्षित हो रहा है। अतः, सुस्वागतम् शब्द व्याकरणिक रूप से ग़लत है। हमें इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। आपको यदि कोई ‘सुस्वागतम्’ कह रहा है तो यह समझें कि भाव अच्छा है, आवभगत अच्छी होगी; लेकिन भाषा दूषण-सहित है। आवभगत के बारे में जानना चाहिए कि किसी के आने के पश्चात् किया जाने वाला ऐसा आदर-सत्कार या ऐसी ख़ातिरदारी, जिसमें भक्ति जैसा भाव हो, वह आवभगत है। भाव के बारे में भी यह जानना चाहिए कि ‘भू’ धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय जोड़कर ‘भाव’ शब्द की निर्मिति है।