युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानंद

युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानंद

प्रीति भाटी

युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानंद
युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व प्रत्येक युवा के लिए आज मार्गदर्शक बन सकता है। वर्तमान में भारत के युवा पश्चिमी सभ्यता के प्रति अधिक आकर्षित हैं। ऐसे में हम सभी को विवेकानंद के विचार व उनके जीवन की अनेक घटनाएं अपनी संस्कृति की ओर जाने व उसे समृद्धशाली बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।

ऐसी ही एक घटना है, जब स्वामी जी अपने कक्ष में बैठे हुए थे, वहॉं मेज पर बहुत सी पुस्तकें रखी हुई थीं। उन पुस्तकों में सबसे नीचे श्रीमद्भग्वद गीता तथा उसके ऊपर बहुत सी अंग्रेजी लेखकों की पुस्तकें रखी हुई थीं। उसी समय एक अंग्रेज मित्र ने व्यंग्य करते हुए कहा कि, स्वामी जी आप भी मान गए कि, हमारा साहित्य आपकी श्रीमद्भग्वद गीता से कहीं ऊपर है? तभी उन्होंने सबसे नीचे रखी हुई गीता को खींच लिया, जिससे समस्त पुस्तकें नीचे आ गिरीं। तब उन्होंने कहा कि इन सभी पुस्तकों का आधार तो श्रीमद्भग्वद गीता ही है। इसी से सब संस्कृतियों की पहचान है। हमारी भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है जो सब का आदर करना सिखाती है।

उनका मानना था कि, “हम वेदांत के बिना सांस नहीं ले सकते। जीवन में जो कुछ भी हो रहा है सब वेदांत का ही प्रभाव है।”

वर्तमान भारतीय वातावरण में धार्मिक कट्टरता व विद्वेष का जो आवरण दृष्टिगत है, उसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी। उन्होंने कहा कि “मैं ऐसा धर्म चाहता हूं जो हर व्यक्ति को अन्न, वस्त्र और शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें अपने सभी दुख दूर करने की शक्ति प्रदान करे।”

वह कहते थे कि “उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि तुम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते।” उनका दूसरा विचार था कि “पढ़ने के लिए आवश्यक है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए आवश्यक है ध्यान और ध्यान से ही इंद्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त की जा सकती है।” यदि उनके सुझावों और विचारों को औपचारिक रूप से हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में लागू कर दिया जाए तो देश का युवा भारत निर्माण व आर्थिक निर्माण में बराबर का सहयोगी बन सकता है।

वे अपनी ओजस्वी वाणी में कहते हैं कि  “संसार का इतिहास उन थोड़े से व्यक्तियों का ही इतिहास है, जिनमें आत्मविश्वास था।” वे आत्मशक्ति की अभिव्यक्ति तथा कर्म योग में विश्वास करते थे, जो वर्तमान शिक्षा प्रणाली व प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में कई मायनों में सार्थक सिद्ध होती है।

उन्होंने एक बार युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि  “हे मेरे युवा बंधु गण! बलवान बनो, यही तुम्हारे लिए मेरा उपदेश है। गीता पाठ करने के साथ ही एकाग्रता से विद्या अध्ययन करो, खेलों से पुष्ट बनो। बलवान शरीर व पुट्ठों से तुम गीता अधिक समझ सकोगे।”
इस तरह उनका प्रत्येक विचार युवा शक्ति को प्रेरित करता है तथा उन्हें ओजस्वी बनाता है।

Share on

1 thought on “युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानंद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *