हमें गीता का ज्ञान सम्पूर्ण दुनिया को देना है- डॉ. मोहन भागवत

हमें गीता का ज्ञान सम्पूर्ण दुनिया को देना है- डॉ. मोहन भागवत

हमें गीता का ज्ञान सम्पूर्ण दुनिया को देना है- डॉ. मोहन भागवतहमें गीता का ज्ञान सम्पूर्ण दुनिया को देना है- डॉ. मोहन भागवत

  • ज्ञान नगरी कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का लोकार्पण

कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र में गुरुवार को भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का लोकार्पण किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विराट स्वरूप प्रतिमा का लोकार्पण किया।

सरसंघचालक ने कहा कि गीता किसी एक संप्रदाय का ग्रंथ नहीं है। भारत में हिन्दू परंपरा में गीता है। यहां गीता का उद्गम हुआ, इसलिए हिन्दू समाज उसका ट्रस्टी है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ने के लिए गीता का उपदेश दिया, परंतु गीता में अहिंसा का उपदेश है। सद्भावना का उपदेश है। श्रीकृष्ण तो युद्ध लड़े ही नहीं, केवल रथ के पहिए ही दौड़ाए। भगवान की रीति है कि वो माध्यम से करवाता है। गुरु नानक देव जी ने कहा कि आप ही दोष न लिवे कर्ता। कर्ता अपने पर दोष नहीं लेता। वह किसी न किसी को माध्यम बनाता है। अपने कर्म, अपनी नियति से हम माध्यम बन जाते हैं। महाभारत के युद्ध के बाद जब बर्बरीक से पूछा गया कि युद्ध किस ने लड़ा तो बर्बरीक ने भी कहा कि लड़ तो कृष्ण ही रहे थे, बाकि तो सब पात्र थे।

गीता में यह स्पष्ट है कि जब कोई भी कर्म करते हैं तो उसे दुश्मनी से नहीं, निर्मल मन से करना चाहिए। जब तक अच्छा करने की बात आती है तो सब आगे रहते हैं। लेकिन जिस कर्म से निंदा होने की संभावना है, ऐसा कर्तव्य सामने आता है तो फिर कर्तव्य को कठोर बनकर करने की बजाय मोह में फंस जाते हैं। उन्होंने कहा कि संहार करना अच्छी बात नहीं है, परंतु दुनिया की रचना ऐसी ही हुई है कि संहार करना पड़ता है। तभी जीवन आगे बढ़ता है। यही गीता में बताया गया है। मोहन भागवत ने कहा कि जब तक सृष्टि है, तब तक गीता की प्रासंगिकता है। संपूर्ण विश्व से अपना जीवन बनता है। हम जो कुछ करते हैं, संपूर्ण जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए गीता में सबके जीवन विद्या का विचार किया है। मानवता, समूह, सृष्टि तीनों में संतुलन बिगड़ गया, तो सृष्टि में पर्यावरण बिगड़ गया। सृष्टि बिल्कुल डोल रही है। ऐसे ही सामूहिक जीवन में कट्टरता है। इसके कारण से कलह है, द्वेष है, ऐसी कई बातें कई जगह दिखती हैं। मनुष्य का मन संकुचित हो रहा है। संपूर्ण मानवता की एकता की बात तो करता है, परंतु पड़ोस में ही गुट बनाकर लड़ता है। लेकिन इस तरह के मामले अभी भारत में कम हैं क्योंकि भारत के पास गीता है। भारत के लोगों को समय-समय पर गीता का स्मरण होता रहता है। हमें गीता का ज्ञान सम्पूर्ण दुनिया को देना है। यही विश्व धर्म है। धर्म जो धारणा करता है, जोड़ता है, बिखरने नहीं देता। यही हिन्दू धर्म है।

उन्होंने कहा कि आज संस्कार लोप हो गया है। स्कूल में पढ़ने वाला लड़का बंदूक लेकर जाता है और अपने ही साथी को भून डालता है। कैसी-कैसी घटनाएं जीवन में हो रही हैं। व्यक्तिगत जीवन में समस्याएं आएंगी तो हमें समस्याओं से भागना नहीं है। समस्या के बीच जाना पड़ता है, उसका भेद करना पड़ता है। इसलिए अपनी बुद्धि को स्थिर करो। अच्छे कर्म में लगो, अच्छे कर्म में मरोगे तो अच्छा होगा। अपना जीवन कैसा होना चाहिए, शक्ति के साथ सुशील की जोड़ी कैसे बनानी चाहिए, कर्तव्य का पालन कैसे करना चाहिए। इसके बारे में 12वें अध्याय में बताया गया है। कभी अपना-पराया करके मत लड़ो, क्रोध के अधीन मत हो। यह सभी संकट का मूल है। इनमें कभी नहीं फंसना चाहिए। आज तक दुनिया में जितने आध्यात्मिक प्रयोग हुए, उन सबका निचोड़ गीता में है। गीता में सामूहिक जीवन के लिए भी उपदेश है, लोक संग्रह करने का भी उपदेश है। लोक संग्रह करने वाले व्यक्ति को क्या करना चाहिए, इसके बारे में भी बताया गया है। अपना जीवन योगदान करने वाला बने, इसके लिए व्यक्तिगत आचरण भी बनाना चाहिए। सृष्टि तीन गुणों का खेल है। सात्विक, राजस, तामस। इन तीनों गुणों की पहचान कर, तीनों से ऊपर उठकर अपने जीवन को सफल करना, यह उपदेश गीता में है। इंद्रियों के भोग में रमने वाला पाप के अधीन है। हमने अपने लोभ के कारण सृष्टि के चक्र को तोड़ा है। इसके परिणाम हम भुगत रहे हैं। हम सृष्टि से लेते हैं, लेकिन देते कुछ नहीं। जो देता नहीं केवल भोग करता है, वह चोर है उसको दंड मिलना चाहिए। 5000 साल पहले इस धरती पर गीता के माध्यम से यह सब बताया है।

उन्होंने कहा कि हमें दुनिया को गीता देनी है। गीता हमें पुस्तक के रूप में तो देनी ही है, पर आचरण में भी सिखानी है और सीखनी है। भगवान श्रीकृष्ण ने जब गीता का उपदेश दिया तो वह यह सब अपने जीवन में अपना चुके थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अधर्म आचरण को बंद करवाया। इसके आड़े आने वाली रुकावटों को दूर किया। राजा व प्रजा के संबंध कैसे हों, यह सब उन्होंने करके दिखाया। यह सब करने के बाद ही उन्होंने उपदेश किया। कर्म योग, भक्ति योग, राज योग इन सब योगों का आचरण किया। गीता को हमें अपने जीवन में लाकर एक सामाजिक व वैश्विक समाज खड़ा करना है। समय-समय पर उद्बोधन देने वाले केंद्र खड़े हो जाएंगे और गीता का प्रचार-प्रसार होगा तो समाज परिवर्तन भी होगा। आज भगवान से प्रार्थना करते हुए ऐसी शक्ति खड़ी करने का संकल्प करेंगे तभी यह कार्यक्रम सफल होगा।

कुरुक्षेत्र को दुनिया के नक्शे में स्थान मिलेगा

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि हरियाणा हरि का है। हरियाणा देवों की भूमि है। हरियाणा गीता का केंद्र है। कुरुक्षेत्र को न केवल देश में बल्कि दुनिया के मानचित्र में स्थान मिलेगा। पूरे मानव जीवन को संदेश देने वाली है गीता। मानव समाज जब तक रहेगा, तब तक गीता रहेगी।

गीता ज्ञान संस्थान के ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि कहीं न कहीं बुराई से भी अच्छाई निकल सकती है। धृतराष्ट्र की वाणी से पहला शब्द अधर्म नहीं निकला, बल्कि धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे निकला। भगवद् गीता का अवतरण स्थल ज्योतिसर अपनी पहचान खो रहा था। गीता भारत का गौरव है। सभी स्थान लुप्त होने की कगार पर थे। आज कुरुक्षेत्र को नई पहचान मिली है। कुरुक्षेत्र को महाभारत के नाम से जाना जाता था। भगवान श्री कृष्ण ने पूरे विश्व के लिए शांति का उद्घोष दिया। गीता के माध्यम से उपदेश दिया। इसलिए कुरुक्षेत्र की पहचान लैंड ऑफ द भगवद् गीता से होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को द्वापर युग में इसी धरती पर अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे। हमारा प्रयास उसी ऐतिहासिक घटना को 21वीं सदी में जीवंत करने का है। आज गुप्त नवरात्रि का महत्वपूर्ण दिन भी है। इस दिन किए जाने वाला कोई भी कार्य फलदायी होता है। भगवान श्री कृष्ण की विराट स्वरूप प्रतिमा का अनावरण हुआ है। भगवान श्री कृष्ण ने जो संदेश अर्जुन को सुनाया था, वह पूरे विश्व के लिए था। भगवान श्री कृष्ण का रथ ब्रह्मसरोवर में बनाया गया तो आकर्षण बना।

आज से लैंड ऑफ द भगवद् गीता से एक कदम आगे लैंड ऑफ श्री कृष्ण बनाना है। भगवान श्री कृष्ण को जानने के लिए मथुरा, वृंदावन जाते हैं, परंतु अब जानने के लिए कुरुक्षेत्र आना चाहिए। लीलाएं सभी स्थानों पर मिलती हैं, ज्ञान तो यहीं दिया।

प्रतिमा सहित पूरे परिसर पर 200 करोड़ का खर्च आएगा। महाभारत का थीम होगा। विश्वस्तरीय संग्रहालय बनाया जाएगा। जब वह बनेगा तो देश और दुनिया के लिए संदेश होगा। स्वदेश दर्शन योजना पूरे देश के लिए बनेगी। कुरुक्षेत्र को दुनिया के आकर्षण का केंद्र बनाएंगे। यहां पर रिसर्च और शिक्षा पर भी काम होगा।

प्रभु के विराट स्वरूप की विशेषताएं

भगवान श्री कृष्ण का यह विराट स्वरूप 40 फीट लंबा और 35 टन वजनी है। विख्यात मूर्तिकार डॉ. राम सुतार और उनके पुत्र अनिल सुतार ने 80 कारीगरों की सहायता से लगभग 3 साल में इसे तैयार किया है। इस पर लगभग 13 करोड़ 63 लाख रुपये खर्च हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप को उत्तर प्रदेश के नोएडा में तैयार किया गया। इसके बाद इसे ट्रक ट्रालों की सहायता से कुरुक्षेत्र में लाया गया। विराट स्वरूप के चेहरे का ही वजन 6 टन से ज्यादा है। विराट स्वरूप में 9 चेहरे हैं। श्री कृष्ण के साथ इसमें श्री गणेश, ब्रह्मा जी, शिव जी, भगवान विष्णु का नरसिंह रूप, हनुमान जी, भगवान परशुराम, अग्नि देव और पांव से लेकर मूर्ति से लिपट कर सिर के ऊपर छांव करते शेषनाग के दर्शन होंगे।

4 धातुओं से मिलकर बना विराट स्वरूप

विराट स्वरूप की ऊंचाई 40 फीट से ज्यादा है। इसको 10 फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्थापित किया गया है। विराट स्वरूप 4 धातुओं से मिलकर बना है। 85 प्रतिशत तांबा और 15 प्रतिशत अन्य तीन धातुओं का उपयोग हुआ है। प्रतिमा को पवित्र ज्योतिसर स्थली पर लाइट एंड साउंड शो के ठीक सामने पूर्व-दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके स्थापित किया गया है। इस विराट स्वरूप को देखने के लिए दुनिया के कोने-कोने से पर्यटक पहुंचेंगे।

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