हल्दीघाटी की माटी तो, चंदन है कुछ और नहीं…
“राष्ट्रीय तीर्थ प्रताप गौरव केंद्र, उदयपुर” की ‘महाराणा प्रताप जयंती समारोह समिति’ द्वारा आयोजित नौ दिवसीय महाराणा प्रताप जयंती समारोह के दूसरे दिन, 13 जून, रविवार को अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए।
प्रथम सत्र परिचर्चा में ‘मेवाड़ की वीरांगनाएं’ विषय पर चर्चा हुई। जिसमें इतिहास विभाग मोसुविवि की पूर्व विभागाध्यक्ष मीना गौड़ ने कहा कि मेवाड़ की धरा अपने शौर्य, पराक्रम, त्याग और बलिदान के लिए विश्व इतिहास में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। शक्ति के साथ भक्ति का योग यहां के इतिहास की अनूठी विशेषता है। मेवाड़ में पुरुष संतों के अलावा अनेक महिला संत भी हुई हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व व साहित्य द्वारा लोगों में भक्ति भावना विकसित करने के अलावा मानव मात्र को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। रमाबाई, भूरीबाई, मीराबाई के नाम से भारत ही नहीं विश्व भी परिचित है। आज जब अपने निहित स्वार्थों के लिए भारत तोड़ो तत्वों द्वारा समाजों को बांटने के प्रयास हो रहे हैं, ऐसे समय में महिला संतों की शिक्षा समाज के सामने लाने व उसे अपनाने की आवश्यकता है।
यूजीसी महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रतिभा पाण्डे ने कहा कि मेवाड़ की स्त्रियों ने क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासतों/ प्रतीकों के निर्माण के साथ-साथ उन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानान्तरित करने और संरक्षित- परिरक्षित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है, लोकोपकारी कार्यों विशेष रूप से जल-स्थापत्य में न केवल राजपरिवार से जुड़ी स्त्रियों बल्कि सामान्य, निर्धन, साधनहीन स्त्रियों ने भी योगदान किया। राजपरिवार की स्त्रियों में राणा रायमल की पत्नी श्रृंगार देवी ने घोसुण्डी की बावड़ी, उदयसिंह की झाली रानी ने झाली बाव, भटियाणी रानी अंजन कुंवर ने भटियाणी की बाव, सोनगरी रानी ने पनघट की बावड़ी व बड़ला वाली सराय तथा सहज कुंवर ने सहज कुंवर की बावड़ी बनवाई। राजसिंह की रानी रामरसदे ने त्रिमुखी बावड़ी, दूसरी रानी चारूमती ने राजनगर बावड़ी और महारानी खींचन ने अखै कंवर की बावड़ी बनवाई। ऐसे तालाबों, सरायों, मंदिरों के अनेक उदाहरण हैं। हकीकत बहीड़ा, संगीत प्रकाश तथा तत्कालीन चित्रों से मेवाड़ की प्रसिद्ध स्त्री संगीतकारों, गायिकाओं, कलाकारों जैसे जीवणी भगतण, जेंदी भगतण आदि की जानकारी मिलती है।
समाजसेवी एवं लेखिका राधिका लड्ढा ने कहा कि मेवाड़ की नारियाँ प्रतिभाओं की धनी रही हैं। सोलह हजार वीरांगनाओं के साथ जौहर करने वाली रानी पद्मिनी केवल सौंदर्य की देवी ही न थीं। राजनैतिक सूझबूझ और चारित्रिक गुणों की भी वो बेजोड़ मिसाल थीं। किरण देवी द्वारा नोरोजी के मेले में अकबर द्वारा छेड़खानी के दौरान हुआ प्रसंग सबके ध्यान में है। परिचर्चा सत्र का संचालन एडवोकेट भूमिका चौबीसा ने किया।
रात नौ बजे आयोजित ऑनलाइन एकल काव्य पाठ में केकड़ी के कवि उमेश उत्साही ने कहा कि महाराणा प्रताप चाहते तो राजमहलों का सुख भोग सकते थे। लेकिन उनके मन में मातृभूमि की रक्षा का संकल्प और भावना सर्वोपरि थी। प्रताप सामाजिक सद्भावना का प्रतीक हैं, उन्होंने सभी जाति बिरादरी का सहयोग लेकर युद्ध लड़ा। उन्होंने हल्दीघाटी की मिट्टी को चंदन बताते हुए काव्य पाठ किया तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने कहा-
हल्दीघाटी की माटी तो, चंदन है कुछ और नहीं
भारतवासी तिलक लगाकर, गौरव से भर जाते हैं
यहां विदेशी नहीं घूमने, तीर्थ करने आते हैं।
कवि उमेश ने स्वामी भक्त चेतक पर अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि
रक्त तलाई में चेतक ने, अरि का रक्त खींचा था
मानसिंह के हाथी का, मस्तक टांगों से भींचा था।
शस्त्र हाथ से गिर जाते थे, प्राण बचाना भारी था
शायद वह तो एकलिंग का, नंदी का अवतारी था।
संवाद सत्र में पुष्पेंद्र ने “इंडिया दैट इज भारत” विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आज युवा को तथ्यों के आधार पर ही बात को समझाया जा सकता है। इंटरनेट के युग में बात को तुरन्त वेरीफाइ किया जा सकता है। उन्होंने सबरीमाला पर भी अपने विचार रखते हुए कहा कि सबरीमाला की परंपरा वैज्ञानिकता से जुड़ी है, यह कोरी कल्पना या रूढ़िवाद नहीं है।
सभी कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित हुए।