हिजाब: कुरान का पालन या फसाद की तैयारी (1)
प्रो. कुसुम लता केडिया
जिन छह बच्चियों को आगे करके हिज़ाब से शुरू कर मजहब तक की हिफाजत की बात कही जा रही है, उनके वास्तविक प्रयोजन और वास्तविक व्यक्तित्व तथा आचरण तीनों को अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है। क्योंकि जिस तरह से वे पूरे देश में इस विषय पर हल्ला मचाने का दावा कर रही हैं, उसे देखते हुए संपूर्ण राष्ट्र से इसका संबंध है। इसलिए कुछ बातें अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है।
पहली बात तो यह कि क्या सचमुच ये इस्लाम पर ईमान ले आती हैं? क्या इनको पैगंबर मोहम्मद साहब पर पूरा ईमान है? क्या वह अल्लाह ताला द्वारा हजरत रसूल जो आखिरी रसूल हैं, को भेजी गई आयतों यानी दिव्य संदेशों और बातों पर ईमान ले आती हैं और उसके अनुसार जीवन जीने को संकल्पित हैं? या ये यूं ही सड़क पर निकल कर कुछ शोरगुल या कोई हल्ला हुड़दंग किसी खास उद्देश्य से, किसी विशेष प्रयोजन से करने वाले एक बहुत बड़े तंत्र की एक झलक हैं। इसके लिए कुछ बातों की जांच आवश्यक है जिन पर हम क्रम से बातें करेंगे।
लेकिन सबसे पहले तो एक प्रश्न यह है कि ये यदि सचमुच मुस्लिम हैं, मोमिन हैं, उन्होंने केवल अपना नाम मुसलमानों जैसा नहीं रखा है बल्कि इनको कुरान शरीफ पर पूरी आस्था है, यह उस पर पूरा ईमान ले आई हैं और उसमें बताए गए कायदे से जिंदगी जीना चाहती हैं, तो फिर यह किस हिसाब से, किस आधार पर उस स्कूल में जाने की सोच भी सकती हैं जो सह शिक्षा वाला है यानी लड़कों के साथ लड़कियां पढ़ें। यह तो पूरी तरह इस्लाम के कायदे के बाहर की बात है।
हजरत पैगंबर साहब ने इस बात की कहीं कोई इजाजत नहीं दी है और ऐसी कोई भी आयत नहीं है जो यह इजाजत देती हो कि लड़कियों को लड़कों के साथ दूर कहीं किसी एक स्कूल में जाकर गैर मजहबी कोई पढ़ाई एक दिन को भी करें।
यह तो पूरी तरह गैर इस्लामिक है, गैर मजहबी है। किसी भी मोमिन स्त्री को इजाजत नहीं है कि वह दूर कहीं जाकर गैर मर्दों या लड़कों के साथ गैर मज़हबी बातें साथ साथ पढ़े। (क्रमशः)
बिल्कुल सत्यता से पूर्ण आलेख हैं