हिन्दी तो बहाना है, देवनागरी में उर्दू जो पढ़ाना है

हिन्दी तो बहाना है, देवनागरी में उर्दू जो पढ़ाना है

मुरारी गुप्ता

हिन्दी तो बहाना है, देवनागरी में उर्दू जो पढ़ाना है

एनसीईआरटी की पांचवीं कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ में उर्दू शब्दों की अनावश्यक भरमार। सोचिए, बच्चे भला कैसे सीखेंगे हिन्दी के शब्द।

एनसीईआरटी की पुस्तकों को लिखने वालों ने बहुत बारीकी से हिन्दी की ही पुस्तक में हिन्दी के स्थान पर उर्दू और अंग्रेजी को जिस तरह से ठूंसा है, उससे ज्ञात होता है कि देश में विशेष प्रकार का नरैटिव चलाने वाले कितनी दूर की सोचते हैं। एनसीईआरटी की पांचवीं कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ के किसी भी अध्याय को उठाकर देख लीजिए। हर अध्याय में हर प्रचलित शब्द या तो उर्दू में हैं या फिर अंग्रेजी भाषा में। प्रत्येक अध्याय में कम से कम पंद्रह प्रतिशत शब्द उर्दू भाषा में हैं। हर पृष्ठ में पांच से दस लोक जीवन में प्रचलित शब्दों को उर्दू या फिर अंग्रेजी में ही लिखा गया है।

पांचवीं कक्षा की हिन्दी की पुस्तक रिमझिम के कुछ ही अध्यायों में उपयोग लिए कुछ शब्द देखिए- सिलसिले, मुश्किलें, सिर्फ, रोजाना, जिंदगी, प्रमोशन, इम्तिहान, काफी, ज्यादा, ऑफिस, रिटायर, इस्तेमाल, फर्क, बेहद, सफर, दिलचस्प, आखिर, जरूरत, सवालों, जवाब, खासकर, कोशिश, जिद, दाखिला, पास, मालूम, मजा, इत्मीनान, एहसास, अंदाज, फनकार, बेवकूफ, जुर्रत, बदहवासी, खयाल, इंतजार, बेशक, मुआयना, बाकी, इशारा, वक्त, बाकी, डिजाइन, शौक, स्कूल, तेज….। यह तो एक झलक मात्र है। पूरी पुस्तक में ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जो दैनिक जीवन में काम आते हैं, जिन्हें उर्दू या अंग्रेजी में लिखा गया है। ऐसा भी नहीं है कि इनके स्थान पर हिन्दी में प्रचलित और लोकप्रिय शब्द नहीं हैं। इनके स्थान पर कठिनाई, अंत, आवश्यकता, प्रश्न, उत्तर, विशेष रूप से, प्रयास, प्रवेश, उत्तीर्ण, ज्ञात होना, परीक्षा, अनुभव, तरीका, कलाकार, मूर्ख, हिम्मत, प्रतीक्षा, परीक्षण, शेष, संकेत, समय, विद्यालय जैसे सामान्य प्रचलित शब्दों का उपयोग किया जा सकता था। लेकिन वामपंथी नरैटिवकारों को तो हिंदी पर उर्दू को थोपना था।

NCERT की पांचवीं कक्षा की हिन्दी की पुस्तक रिमझिम में उर्दू शब्दों की भरमारहिन्दी की पुस्तक में उर्दू शब्दों की भरमार

हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ को पढ़ते हुए लगता है देवनागरी लिपि में उर्दू और अंग्रेजी को पढ़ रहे हैं। इन शब्दों को बलात डाला गया है, जबकि इनके स्थान पर हिन्दी के लोकप्रिय शब्द उपलब्ध हैं। लेकिन नरैटिव चलाने वालों के मस्तिष्क में हिन्दी है ही कहां?

प्रश्न यह है कि यदि छात्र को हिन्दी की ही पुस्तक में हिन्दी के शब्द सीखने को नहीं मिलेंगे, तो वह हिन्दी को कहां और कैसे सीखेगा। फिर एक से पांचवीं तक की पढ़ाई तो बच्चों की व्याकरण और भाषा की मूलभूत नींव तैयार करती है। ये वर्ष बच्चों को भाषा सीखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। यदि इन्हीं वर्षों में बच्चों के मस्तिष्क में प्रचलित हिन्दी शब्दों के स्थान पर उर्दू को ठूंस दिया जाएगा, तो वह अपनी मातृभाषा कैसे सीखेगा। ऐसा लगता है कि दुराग्रह से एनसीईआरटी (NCERT) की हिन्दी की इस पुस्तक में उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को ठूंसा गया है। उर्दू और अंग्रेजी को अलग से पढ़ाइए न, किसी को क्या आपत्ति होगी। लेकिन हिन्दी को तो हिन्दी ही रहने दीजिए।

बच्चों को उनकी मातृभाषा के शब्दों से वंचित रखकर हम नई पीढ़ी को किस दिशा में ले जा रहे हैं। क्या देश में हिन्दी के विद्वानों की कमी है कि बच्चों को हम हिन्दी के प्रचलित शब्द भी उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। विद्यालय जैसे प्रचलित शब्द के स्थान पर भी यदि हिन्दी की ही पुस्तक में स्कूल लिखा जाएगा या समय के स्थान पर वक्त का प्रयोग होगा तो यह निश्चित ही बच्चों का दुर्भाग्य है कि उन्हें उन्हीं की मातृभाषा के शब्दों के स्थान पर बलात अंग्रेजी व उर्दू थोपी जा रही है।

(लेखक परिचयः कथाकार हैं)

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